मोड़
मोड़
संजय दत्त का स्टाइल उन दिनो मे चलन मे था, लम्बे बाल और एक कान मे बाली। उसकी तब 16-17 साल की उम्र रही होगी। उस उम्र मे हीरो सा दिखने की चाहत, उसके के मन मे भी भरपूर थी।अजीत , बनारस का ,गोरा, तीखे नैन नक्श वाला,लम्बा और पढने मे होशियार अच्छे घर का इकलौता लड़का था। उसे जुनून सा हो गया,अपने कानो मे उसी तरह का कुछ पहनने का।अपनी दादी और माँ के करीब था मगर उम्र ही ऐसी थी की उनकी भी नही सुन रहा था।सब समझा के थक गये।
एक दिन जब उसने जिद ही पकड़ ली तो उसके पापा ने उसे पास बुला कर समझाया की अभी तो तुम शौक मे कान मे छेद कर के पहन लोगे, कुछ समय बाद शायद उतार भी दो। मगर इस छेद का क्या करोगे जो कानो मे रह जायेगा। कभी काबिल और इज्जतदार अफसर बने और बड़े लोगों के बीच मे उठे बैठे तो लोग इस छेद को देख कर तुम्हारे बारे मे क्या राय रखेंगे की इसकी लाइफ कैसी रही होगी।इस बात ने जैसे उसके दिलो दीमाग पर असर किया और ये फ़ितूर एक झटके मे उतर गया।इस के बाद वह अपने पापा की सलाह सुन ने लगा।
फिर वो मौसम भी जल्द ही आया जो इस उम्र मे नॉर्मली आना ही होता है। उसका दिल उसकी ही कॉलोनी की सबसे खूबसूरत लड़की,सन्ध्या पर आ गया। दोनो मे अच्छी छनती भी थी। दोनो साथ कॉलेज जाते ,घण्टों बातें करते। अपने अपने भविष्य मे एक दूसरे की कल्पना करते। रूठना-मनाना, चिढना-चिढाना,प्यार से एक दूसरे को देखना वगैरह वगैरह सब कुछ था उनके बीच मे।एक दूसरे के बगैर होने की कल्पना से ही दिल घबराते थे । अजीत और सन्ध्या ने मैडिकल और आई आई टी दोनो के साथ-साथ एंट्रेंस एग्ज़ाम दिये थे और यकीं था की दोनो का होगा। इसी बीच पहले आई आई टी का रिजल्ट आ गया।अजीत का आई आई टी रूड़की मे सिलेक्शन हो गया। उसके घर मे जैसे सबका ही सिलेक्शन हो गया। किसी के भी पैर जमीन पर नही थे।दादी-माँ, मंगल-शनि को मन्दिरों मे भंडारे का आयोजन कराने की योजना मे लग गईं ,पापा को ऑफिस के साथी घर आ-आ कर बधाईयां देने लगे। मगर अजीत और सन्ध्या एक दूसरे के साथ गंगा किनारे गुमसुम से बैठे थे। सन्ध्या का कुछ अंको से नाम रह गया।इधर अजीत का आई आई टी मे हुआ, उधर सन्ध्या के लिये जिस बैंक के पी ओ का रिश्ता आया था उसने संध्या के मना करने के बावजूद 'हाँ' कर दी थी। संध्या को अजीत का साथ भी चाहिये था और हर हाल मे डॉक्टर भी बनना था। बड़ी देर दोनो एक दूसरे से बातें करते रहे।संध्या ने कहा की अगर अजीत साथ देने का वादा करे तो वो अड़ जायेगी और ये शादी नही करेगी। दोनो एक साथ बढेंगे जिधर भी चलेंगे।अजीत उस शाम तेज़ कदमों से घर लौटा। आते ही उसने कहा की वो रूड़की नही जायेगा, मैडिकल करेगा ।घर मे जैसे भूचाल आ गया। अजीत की पापा ने उस रात उसे अपने पास सुलाया। उन्हे अजीत और सन्ध्या का कुछ-कुछ पता था।उन्होने अजीत से बात की ,तुम अगर अभी आई आई टी जोइन कर लोगे तो जल्दी अपने पैरों पर आ जाओगे फिर सन्ध्या के घर वाले भी एतराज़ नही करेंगे। जो रीजल्ट अभी आया नही उसके भरोसे बैठना बेवकूफी न होगी?!।
सुबह अजीत ,संध्या के पास पहुंचा और उसे कहा कि वो जोइन करेगा ताकी जल्दी काबिल बने बस वो भी जी लगा कर तयारी करे और डॉक्टर बने । फिर दोनो एक दूसरे के हैं ही।उनको कोई तब अलग कर ही नही सकेगा।अजीत ने जोइन कर लिया मगर संध्या का सलेक्शन कहीं न हुआ। अजीत के मन मे सन्ध्या के लिये प्यार मे कमी न आई।उसका और सन्ध्या का इस कदर प्यार गहराता गया की अब जब शादी होती तो वो रस्म मात्र एक औपचारिकता होती ।
ईश्वर की कृपा थी की अजीत को इंटर्नशिप के दौरान ही हरिद्वार मे एक स्टार्ट अप से कॉल आ गयी । इंटरव्यूअर ने उसी समय बता दिया की उसे हायर टेक्निकल सुपरविजन और एक अन्य प्रतिभागी को कंप्यूटिंग सपोर्ट के लिये सलेक्ट कर लिया गया है। अजीत ने इंटरव्यू हाल से बाहर आते ही माँ-पापा और संध्या को कॉल किया, 20,000/ प्रति माह की पहली नौकरी!!!माँ-पापा बहुत खुश हुए और सन्ध्या ने उसे मुबारक बाद दी।हालांकी वो उतनी संतुष्ट नही थी। "इस से बढिया तलाशो अजीत!!"।
पढ़ाई पूरी कर बनारस पहुंच कर, अजीत ने साथ सेलिब्रेट करने सन्ध्या को गंगा किनारे बुलाया।वो बैठा इन्तज़ार कर रहा था मगर संध्या की जगह उसकी 9 साल की बहन आई । उसने चहकते बताना शुरु किया "दादा पता है , जीजी की दो हफ्ते पहले राजस्थान मे ऊंचे घराने के सर्जन जीजा से सगाई हो गई है।पता है ?! वे रजवाड़ों से हैं,उनके अपने बड़े-बड़े हॉस्पिटल हैं। जीजी और जीजा जी की जोड़ी जैसे चाँद-और सूरज, जीजा इतने-इतने-इतने खूबसूरत और लम्बे- चौड़े है की क्या बताऊँ । जानते हैं जीजी को रोज फोन करते हैं और जीजी भी बहुत लजाती हैं । अरे ,कैसे भूल गयी!!! दादा, जीजी ने कहा की आपको, आपका एक जरूरी कागज देना है ।" फिर वो एक चिट्ठी पकड़ा कर भाग गयी।
मजमून बस इतना था की वो अब अपने माँ-पापा को हर्ट नही कर सकेगी। ये भी की उनकी बिरादरी भी अलग है कहीं छोटी बहन के लिये दिक्कत न खड़ी हो मगर ये लड़कपन का प्यार उसके दिल मे हमेशा बना रहेगा और वो उसकी अच्छी दोस्त बनी रहेगी और भी कई समझदारी भरी बडी-बडी बातें । अजीत ने कागज को गंगा जी मे बहा दिया, बनारस से बाहर निकल कर इतना समझदार तो हो ही गया था की समझ सके की जद्दोजहद की जिंदगी और ऐश आराम की जिंदगी मे किसका पड़ला भारी होना था .....।
"हाय एवरी बडी, मीट अवर न्यू एम्प्लोयीज़ , मिस विनीता चंदोला ऐण्ड मिस्टर अजीत शर्मा ।" नये नोडल ऑफिस मे सबने अजीत और उसकी नई कलीग का स्वागत किया। अजीत मेहनती तो था ही अच्छे स्वभाव से सबका चहेता भी हो गया।विनीता, शांत अपने काम से काम रखने वाली, साधारण घर से लगती थी।
अजीत के लिये हरिद्वार नया नहीं था मगर विनीता, पौड़ी के पास के एक गाँव से पहली बार इतनी दूर हरिद्वार नौकरी करने आई थी । एक पहाड़ी लड़की, जिसे आत्मीयता से बोलने वाला हर व्यक्ति अपना सा लगता । उसने बहुत जिद करी थी घर वालों से पढ़ाई और फिर जौब के लिये। यहां, जौब लगने के बाद किस्मत से उसके गाँव के पधान जी की बेटी का पता मिल गया था इसलिये घर वालों ने उसे उसके छोटे भाई के साथ यहां भेज दिया । वह कुछ दिन उनके घर रही फिर ऑफिस के पास 2 किलोमीटर दूर किराये का मकान ले लिया। छोटे भाई का भी उसने पास के कॉलेज मे दाखिला कर दिया ।
संयोगवश विनीता और अजीत एक ही कॉलोनी के दो छोरों पर किराये के मकानों मे थे। विनीता को अजीत का ऑफिस मे व्यवहार , कभी-कभार प्रभात की याद दिलाता था। प्रभात उसके पास के गांव का लड़का था ,उसी के स्कूल मे उससे पांच कक्षा आगे पढता था।उसकी माँ विनीता की माँ की सखी थी। सो उसी के साथ उसका हाथ थामे आधे रास्ते से वो खाल के उस पार स्कूल जाती।प्रभात, हसमुख, मेहनती और बेहद महत्वकांक्षी था। प्रभात ने ही उसे आगे पढ़ने को प्रेरित किया था।छुटपन से उसे सपने दिखाये थे की आगे पढ़ेगी ,नौकरी करेगी तो दुनिया देखेगी। प्रभात छुट्टियोँ मे अपने फौजी मामा के पास बाहर चला जाता था। उसके मामा की पोस्टिंग अलग-अलग जगह होती थी सो उसके पास नये-नये शहर की बातें होतीं जिन्हे वो विनीता को बताता। इस से विनीता के मन मे घूमने, दुनिया देखने के अरमान जागने लगे थे। प्रभात के लिये लक्ष्य उसके मामा से निर्धारित हो चुका था, और उसने अपनी मेहनत से एन डी ए निकाल लिया था। पहली छुट्टी मे वह मामा के यहां चला गया था ।दूसरे बरस जब वह छुट्टियोँ मे घर आया तो उसका रंग-रूप और आभा और निखर गयी थी ।वह सबसे अलग नजर आता था। इधर दो साल मे विनीता भी सखियों के संग से निखर गयी थी। प्रभात के आने की खबर पर उसकी सखियों ने उसे स्कूल मे ही छेड़ना शुरु कर दिया। विनीता के मन मे कुछ हलचल सी हुई जब उसने स्कूल से लौटते समय प्रभात को रास्ते मे उसके दोस्तों संग खड़ा देखा। प्रभात उसे देखता रह गया।दो सालों मे ही विनीता कितनी आकर्षक हो गयी है।विनीता उसे ऐसे देख झेंप गयी।जितने दिन प्रभात गांव रहा वो रोज विनीता से मिलता, उसे किस्से सुनाता।ऐसे ही साल बीतने लगे। हर छुट्टी मे वह विनीता के लिये तोह्फे लाता ,और विनीता भी उसको कभी टूपला, कभी जर्सी वगैरह बुनकर देती। विनीता प्रखर बुद्धि की थी।12 वीं बहुत अच्छे नम्बरों से हो गयी तो प्रभात ने उसे कंप्यूटर मे आगे पढ़ाई करने को कहा। उसकी माँ, विनीता की माँ सखी थी तो समझा बुझा कर मना लिया। प्रभात ने उसे सिखाया ,मैं भी कुछ दिन मे देहरादून आ जाऊंगा तू भी पिताजी से कहना की देहरादून मे तेरा दखिला करा दें। मगर पिताजी नही माने। पौड़ी मे ही उसे एक सेंटर मे पढाया।रोज उसके साथ आते जाते। इधर जब प्रभात देहरादून आया और छुट्टी मे गांव आया तो विनीता को एक दो बार उसके सेंटर छोड़ने और लेने गया । प्रभात अब बेहद कोमल बातें भी करने लगा था, जिसका विनीता पर जादू सा असर होता ।विनीता और प्रभात , प्रभात के लौटने से एक दिन पहले काफी करीब आ गये।
दो महीने बाद जिस दिन प्रभात की दून मे पी ओ पी हुई, उसके अगले दिन विनीता की माँ ने उसके रिश्ते की बात गांव मे प्रभात की माँ से छेड़ी।प्रभातकी माँ तो पहले से ही विनीता को अपनी बहू मान चुकी थी। सब तुरंत तैयार हो गये ,विनीता सातवें आसमान मे थी। सब कितना सुखद, सुन्दर ,स्वप्न सा ।इधर उसका कंप्यूटर का कोर्स भी पूरा हो गया था ।और उसे उसी सेंटर मे जौब भी ऑफर हो गयी थी।
अगले दिन सुबह वाग्दान होना था,विनीता के घर रौनक थी ,उसकी सहेलियां उस से चुहल कर रही थी। उसने देखा, प्रभात के पिता जी और मामा जी चले आ रहे है।विनीता लजा गयी। वो धीरे से छन्नी मे गायों के बीच चली गयी। छन्नी बैठक की दीवार से लगी थी।वह दीवार मे कान लगा कर सुन ने लगी। उसके पिताजी और माँ जी खुशी से फूले नही समा रहे थे ," भैजी बल , प्रभात , विनीता के लिये तैयार नही है, उसे अपने सी ओ कर्नल साहब की बिटिया पसंद है ।वह उस से शादी करना चाहता है ।" विनीता को मामा जी का भारी स्वर सुनाई दिया। उसे यकीं नही हुआ और वह चक्कर खा कर वहीँ गायों के बीच गिर पड़ी।
हफ्ते भर बाद उसकी सहेलियों ने उसे पौड़ी ले जा कर इक बडी विपदा से बाहर निकाला।विनीता सारा दिन दर्द मे लेटी ,सोचती रही।अगले दिन उसने जिद पकड़ ली की वो बाहर नौकरी करने जायेगी।उसके पिताजी पहले तैयार नही हुए ,मगर माँ के कहने पर फिर उसे फॉर्म भरवाने लगे , साल भर तक जगह-जगह इंटरव्यू के लिये ले जाने लगे । बीते तीन सालों मे पौड़ी सेंटर मे काम करते हुए अपनी कम्पीटन्सी और क्वलिफीकेशन भी अच्छी कर ली थी और आज हरिद्वार मे थी।
तकरीब 3 महिने से अजीत कार से ऑफिस जाते समय कॉलोनी के मोड़ पर रोज ही विनीता को तेज कदमों से आगे जाते देखता था। विनीता भी कई बार उसकी कार को देख राह से एक ओर हो जाती थी। एक ऑफिस मे होते हुए भी दोनो के बीच कुछ खास संवाद नही होता था। ऑफिस अब एक नई जगह पर शिफ्ट हो रहा था । विनीता इस बात से परेशान थी। नई जगह उसके लिये बहुत दूर हो रही थी ।आने-जाने मे समय और रुपये दोनो बहुत लगते।उसे घर भी मा- पापा के लिये कुछ रुपये भेजने जरुरी थे। फिर भाई की पढ़ाई और बाकी खर्चे।ऑफिस शिफ्ट हो गया। अजीत ने नोटिस किया की अब विनीता लंच मे भी काम मे लगी रह्ती है। उसका रंग भी कुछ कुम्ह्लाने लगा था। फोन पर अक्सर किसी से बहस करती दिखती ।एक दिन ऑफिस के बाद सीढियों से नीचे उतरते समय उसने विनीता को फोन पर किसी को कह्ते सुना " ऐसे परेशान करोगे तो हम यहांं नही रह पायेंगे, मत करो ऐसा ।" अजीत को सामने से उतरता देख वो सर झुका कर एक कोने हो गयी। अजीत भी अनदेखा करके नीचे उतर गया। उसने कुछ नीचे जाकर पलट कर देखा विनीता की आँखों से आँसू बह रहे थे।इस दृश्य ने उसे कुछ असहज कर दिया मगर वो फिर अपनी कार की ओर बेस्मेंट मे चला गया। बेस्मेंट मे उसकी सहकर्मी अंकिता अपनी कार के पास परेशान खड़ी थी पता चला की कार मे कुछ खराबी आ गयी थी।अंकिता का घर भी उसी ओर था जिधर अजीत रहता था ।उसने उसे लिफ्ट दे दी। वे दोनो बेस्मेंट से बाहर निकल कर सड़क पर आये।देखा विनीता तेज़ कदमो से घर की ओर चली जा रही थी। अंकीता ने कहा " ये विनीता चंदोला भी न , पुअर गर्ल, उसी ओर रह्ती है न ?!" अजीत ने अंकित के कह्ने पर विनीता के करीब कार लाकर उसे बैठने को कहा" चंदोला मैडम !! प्लीज कम" । विनीता पहले झिझकी मगर अंकिता को भी कार मे अन्दर बुलाता देख राज़ी हो गयी। उस दिन दोनो के बीच औपचारिक बात हुई। अगले दिन सुबह फिर अजीत को विनीता अपने आगे तेज़ कदमों से जाते हुई दिखी वो आगे निकला फिर कुछ सोच कर कार धीमी करी, विनीता के पास आते ही उसने धीरे से होर्न बजाया। उस दिन दोनो साथ ऑफिस आये। लौटते समय फिर अजीत को विनीता जाती दिखी उसे देख कर उसने फिर कार उसके पास लाकर रोकी, विनीता कुछ सोच कर बैठ गई। बीच मे पैट्रोल पम्प पड़ा जहाँ अजीत के पेमेंट करने से पहले विनीता ने पेमेंट कर दी। अजीत को यह अच्छा नही लगा लेकिन वो कुछ बोला नहीं। इस तरह दोनो के बीच आने-जाने को ले कर एक मूक स्वीकृति बन गयी।
ऑफिस मे वे आपस मे ज्यादा बात नही करते मगर कार मे दोनो एक दूसरे से रास्ते भर, दुनिया भर की बातें करते । कुछ एक महिनो मे इस तरह आते-जाते बात करते वे एक दूसरे के नज़रिये को समझने लगे। धीरे-धीरे अजीत को उसके गम्भीर स्वभाव के पीछे छिपी स्निग्ध कोमलता दिखने लगी। हालांकी विनीता ने कभी उसके जीवन के बारे मे न जानना चाहा और ना कभी उसे अपने बारे मे कुछ बताया मगर अजीत खुलने लगा था ।अजीत वैसे तो हसमुख था मगर बीते कुछ समय से अपने निजी जिंदगी को बन्द रखता था । उसके पास इस शहर मे माँ-पापा तो साथ नही थे सो जब विनीता मिली तो जैसे उसे सुनने, समझने वाला कोई मिल गया। वो विनीता से धीरे-धीरे काफी खुल गया था"विनीता मैडम ,मैं जिंदगी मे बहुत आगे जाना चाहता हूँ, इतना की जमाने मे मेरी भी कोई पहचान हो,मुकाम हो। " , विनीता उसे रास्ते भर गौर से सुनती रह्ती, उसे उस वक्त विनीत 'प्रभात' के जैसे लगता और वो शांत पड़ जाती। फिर भी अब अजीत और विनीता ऑफिस कलीग से दोस्त हो रहे थे। अजीत उसे जितना जान रहा था उसके के मन मे उसके लिये उतना अपनापन बढ़ रहा था।विनीता का उसके साथ क्षण के लिये उभरता अल्हड़ पन भी उसे अच्छा लगने लगा था ।उसने अपने पापा से विनीता का जिक्र किया । उसके पापा खुश थे की अजीत फिर नॉर्मल हो रहा है, उन्होने विनीता के बारे मे उससे डिटेल पता कर देने को कहा। अजीत ने कहा "पापा चिंता मत करिये।अब मैं, इंसानी फितरत को समझने लगा हूँ ।","फिर भी बेटा जब तक मैं उधर हो कर न आऊँ तब तक बस दोस्ती रखना।"
इधर अब विनीता भी अजीत के व्यक्तिव से परिचित हो रही थी, उसकी दोस्ती का ख्याल रखने लगी थी। अजीत को एक दिन बातों-बातों मे पता चला की विनीता को घूमने का शौक भी था । सो वह कभी-कभी उसके साथ शहर मे,कभी शहर से बाहर, मन्दिर दर्शन के बहाने चले चलता।विनीता इससे बहुत सुकून महसूस करती। इसी तरह दिन बीत रहे थे कि कुछ समय बाद उसे विनीता के पडोसियों से पता चला की विनीता का छोटा भाई बेवजह की फरमायशों से विनीता को बेहाल किये रहता है।उसने विनीता को इस बारे मे पूछ्ना चाहा की अगर वो कुछ कर पाये।पर विनीता के बर्ताव ने उसे हैरान कर दिया " शुक्रिया , पर ये मेरे और मेरे परिवार की बात है शर्मा जी। प्लीज यू स्टे आऊट औफ़ ईट। " अजीत चुप हो गया।
इसी तरह साल बीत गया।विनीता मेहनती थी सो सही समय पर उसका प्रोमोशन हो गया। अजीत उसके लिये बहुत खुश था ,अब वो थोड़ा रिलैक्स रहेगी। उसने पापा और माँ को विनीता को दूर से दिखा भी दिया था ,सबको विनीता पसंद थी। विनीता और उसका छोटा भाई भी अजीत के साथ सहज हो गये थे। लेकिन उसके कुछ दिन बाद उसने विनीता को फिर परेशान देखा, उसने पूछना चाहा मगर विनीता की बात "स्टे आऊट।" उसे याद थी सो वो चुप रहा।
अगले दिन विनीता ने ऑफिस मे आते ही रेजीग्नेशन लेटर दे दिया। अजीत को पता चला तो वो समझ नही पाया की इतना अच्छा हाईक मिलने के बाद वो ये क्यूँ कर रही है। उस दिन वो विनीता को विवाह प्रस्ताव भी देना चाह रहा था। उस दिन शाम को विनीता ने अजीत से कहा की वो गंगा आरती देखने जाएगी सो आज वो अकेले घर को चला जाय।पर अजीत को कुछ इन्ट्यूशन सा हो रहा था की कुछ तो गलत है, इसलिये वो नही माना। उसके साथ चल पड़ा।
रास्ते भर विनीता कुछ नही बोली और न ही अजीत। हर की पैड़ी पर कार पार्किंग के लिये जाते समय विनीता ने कहा की वो कार पार्क कर ले,वो यहीं उतर जायेगी, बाद मे पैड़ी पर मिलते हैं।
अजीत ने देखा, नीचे पैड़ियों पर विनीता के सामने कोई खडा है और विनीता उससे नाराजगी मे दिख रही है दोनो के बीच कुछ बात हो रही है । वो पैड़ियों पर धीरे-धीरे उतरते उन दोनो के करीब आने लगा। विनीता को उस इन्सान ने कुछ कहा जिसे सुन कर विनीता ने उसकी ओर पीठ कर दी।अब तक अजीत ठीक पीछे आ चुका था। उसने सुना की वह इन्सान विनीता को अपने साथ कहीं चलने को लेकर धमका रहा है, " बड़ी सती सावित्री बन रही हो, तब शर्म नही आई जब मेरे साथ जंगलों में.. "सुनते ही विनीता पलटी और " बस , प्रभात ।" चीखते हुए एक जोर का थप्पड़ उस आदमी को मारा। प्रभात के पीछे अजीत को देखते ही उसकी आँखें भर आईं । प्रभात ने पलट कर विनीता पर हाथ उठाना चाहा मगर अजीत ने पीछे से हाथ पकड़ लिया। उसने अजीत को पलट कर देखा, और कहा "हाव डेयर यू" , अजीत ने देखा वो बहुत रोबिला और गठीले शरीर का था, अजीत ने बेहद गम्भीर आवाज मे कहा "जस्ट गेट लॉस्ट प्रभात, वर्ना इतना बुरा हाल होगा की पहचाने नही जाओगे"। प्रभात ने गुस्से मे एक नजर विनीता को देखा और फिर अजीत को और चलता बना।
लौटते समय अजीत ने विनीता के हर सवाल का जवाब बिना उसके पूछे दे दिया। उसे प्रभात के बारे मे उसके पापा ने बता दिया था। अजीत के पापा, रिश्ते की बात लेकर बनारस से पहाड़ों पर उसके गांव गये थे।जहाँ उनको विनीता और प्रभात के रिश्ते की बात टूटने का पता चला था ,यही नही विनीता का फिर अपने पैरोंं पर खड़े होने की जद्दोजहद का भी पता चला था ।विनीता चुप चाप सुन रही थी। "तुमने अच्छा किया , जो जोर का लगाया। मगर डीयर रेज़ाईन?! नोट अ गुड डीसिजन।"," मेरे पास कोई और चारा नही है। उसकी पोस्टिंग देहरादून हो गयी है।वो बार-बार परेशान करेगा।" वो रुआन्सी हो गयी। "मुझसे एक बार अपनी मुश्किल कह कर तो देखतीं, खैर तुम्हारा लेटर मेरे पास ही है", कह कर उसने विनीता को उसका लेटर पकड़ा दिया और दोनो के रिश्ते के लिये उसकी रज़ामंदी को पूछा। "मैं आपके परिवार के लायक नहीं हूँ अजीत जी, आपको बहुत अच्छी जीवनसाथी मिल सकती है।", अजीत ने कार रोक दी" क्यँ तुम क्यूँ नहीं?" एक सन्नाटा कार मे पसर गया,"जवाब दो विनीता ", " आप बहुत अच्छे हैं पर मैं नही......." कहते ही विनीता की बुरी तरह हिच्कियां बंध गईं। रोते रोते उसने प्रभात के कई साल पहले उसको यूज़ करने की बात बतायी।अजीत ने उसे सुना ,संभाला और रोने दिया। जब वह थोड़ा शांत हुई " अतीत, अतीत होता है विनीता। मेरा भी रहा है मगर मैं उसमे नही अटका ,आगे बढ़ा हूँ । मेरे आगे जीवन मे बहुत कुछ है, जिसे मुझे करना है। तुम भी निकलो अपने अतीत की कडवी यादों से, प्लीज सब भूल कर अब मेरे साथ चलो ।" विनीता से कुछ न कहा गया। सारी राह वो चुप रही, उसके जहन और दिल ने प्यार के गुलाबी रंग को स्याह होते देखा था, ये सब आसान नहीं था , आज हीतो प्रभात ने प्रेम में उसके समर्पण और विश्वास को बेइज्जत किया था।फिर अभी अजीत भी भावनाओं के आवेग में है ,कल वो प्रभात की तरह....।कॉलोनी का मोड़ आ गया, विनीता कार से उतर गई।अजीत ने कहा " "विनीता मैं प्रभात नही हूँ,तुम्हे लगता होगा कि मैं कभी तुम पर कोई दोष लगाऊंगा मगर यकीन करो ,मैं ऐसा नही ।" विनीता ने बड़ी ही कातर नजरों से उसकी ओर देखा मानो कह रही हो " में यकीन करना चाहती हूं मगर कर नही पा रही "।
अजीत ने फिर कहा "सोचना विनी !! क्या हम दोनो का कुछ नही हो सकता?! " विनीता की आंखें रोने से लाल हो चुकी थीं, उसमे अभी भी आँसूं थे। वे आँसूं ऐसे जैसे भीगे मनके हों।विनीता ने अजीत को देखा ,अजीत की आँखें भी जैसे विनीता की आँखों को 'मिरर' कर रहीं थीं। संभलते हुए अजीत ने कहा " विनीता, अगर तुम कल मोड़ पर मिली तो मैं इसे तुम्हारी मंजूरी मानूँगा।" कह कर वो आगे बढ़ गया।
अगले दिन सुबह अजीत मोड़ पर कार मे बैठा उसका इन्तज़ार कर रहा था। विनीता बहुत पंक्चुअल थी मगर आज अभी तक नही आई थी। अजीत ने घड़ी में देखा ।ऑफिस का समय लगभग हो गया था उसने रीअर मीरर मे देखा, दूर दूर तक विनीता नही दिखी।उसने गाड़ी स्टार्ट की और तेज़ी से ऑफिस की ओर चला गया।
ऑफिस मे अजीत बुझा-बुझा सा पहुंचा था, देखते ही अंकिता ने पूछा "हे अजीत , आज अकेले ? वेयर इज़ विनीता?" ," शी लेफ्ट "। कह कर अजीत अपनी सीट पर चला गया। उसने सन्ध्या के बाद विनीता से ही इतना लगाव महसूस किया था। क्या-क्या सोच बैठा था, वो अपने आप से खिन्न सा हो गया।क्या पापा सही थे? क्या मुझे अब भी इंसानों की पहचानना नहीं आया? अब वो जल्द से जल्द अपने मन से विनीता को भी झटक कर निकाल देना चाहता था।
" शर्मा जी, आपने मुझे आने को कहा मगर इन्तज़ार नही किया ?", अजीत ने देखा सामने विनीता खड़ी थी, थकान उसके चेहरे पर साफ दिख रही थी।" आज ताले की चाबी नही मिल रही थी, इसलिये देर हो गयी।" विनीता ने अपना रेजीग्नेशन लेटर उसकी ओर बढ़ा दिया। अजीत ने बिना देर किये उसे फाड़ कर रद्दी की टोकरी मे डाल दिया और विनीता की ओर सवाल भरी आँखों से देखते हुए हाथ बढाया "वेलकम विनीता.....अजीत शर्मा!!? " तो विनीता ने भी मुस्करा कर अजीत का हाथ थामा और कहा "जी शर्मा जी, विनीता अजीत शर्मा हेयर"।