मोची, बौने और आकांक्षा
मोची, बौने और आकांक्षा
मेरे घर के सामने वाले घर से मेरे पड़ोसी और छोटे भाई तुल्य मित्र गौरव की बेटी आकांक्षा मेरे पास पेन और कॉपी लेकर आई ।उस समय मैं सुबह का अखबार पढ़ते हुए चाय पी रहा था। हमेशा की तरह उसने आते ही हाथ जोड़कर मुझे और श्रीमती जी को नमस्ते कहा और मेरे इशारा करने पर धन्यवाद कहते हुए कुर्सी पर बैठ गई। श्रीमती जी ने जब उसे पीने के लिए जब दूध दिया तो वह मना करने लगी।
मैंने उससे कहा-" बेटी आकांक्षा तुम तो अभी बच्चे हो खेलते-कूदते हो।दूध तो स्वास्थ्य के लिए बहुत ही अच्छा होता है। दूध को एक सम्पूर्ण भोजन कहा जाता है क्योंकि इसमें भोजन लगभग सभी आवश्यक तत्व उपलब्ध रहते हैं। संकोच जैसी बात भी तुम्हारे मन में बिल्कुल नहीं होनी चाहिए क्योंकि यह भी तो घर तुम्हारा अपना ही घर है।"
"मैं तो आपके पास एक काल्पनिक कहानी पूछने आई थी"-आकांक्षा ने अपने मन की बात मुझे बताई।
मैंने मुस्कुराते हुए उससे कहा -"फिर तो तुम्हें आंटी की शरण में जाना चाहिए क्योंकि तुम्हारी आंटी का नाम कल्पना है। तो कल्पना से बेहतर काल्पनिक कहानियां कौन बनाएगा ?अब तुम आंटी का लाया हुआ दूध पीने में तो संकोच कर रही हो तो अगर तुम आंटी की इच्छा ध्यान नहीं रखोगी तो आंटी तुम्हारी मनोकामना कैसे पूरी करेंगी। अब सबसे पहले तो तुम इस दूध को फटाफट खत्म करो। तुम्हारी आंटी तुम्हें चाय नहीं दे सकती क्योंकि तुम्हें याद है न कि जब तुम थोड़ी छोटी थीं। तब कहती थीं कि चाय पीने से काले हो जाते हैं। तो हमारी आकांक्षा बिटिया काली ना हो बल्कि दूध पीकर पीकर हृष्ट पुष्ट हो जिससे कि वह अपनी पढ़ाई -लिखाई, खेलकूद और सारे क्रियाकलापों में सबसे आगे रहे।"
श्रीमती जी ने मुझे आड़े हाथों लेते हुए कहा-" क्यों बेचारी को भटका रहे हो ?कल्पना आंटी काल्पनिक कहानी बताएगी। आंटी के पास इतनी फुरसत कहां है कि बैठकर कहानी गढ़े।ये कहानियां गढ़ने जैसे बेकार के काम तुम्हें ही मुबारक हो। घर का कोई एक कोई काम तो तुमसे ढंग से होता नहीं।बस कहानी लिखवा लो, कविता लिखवा लो।"
आकांक्षा दूध पीने लगी। मैंने कहा- "हमारी कहानी की पूछ तो हमारी आकांक्षा बिटिया के पास ही है। दूसरे किसी को हमारी कविता या कहानी सुनने समझने का समय ही कहां है। समाज के लोगों को नेता ही अपनी नित नई नई कहानियां सुनाते रहते हैं। हमारे यहां इतने सारे नेता हैं। हर नेता एक से एक बढ़कर कहानियां गढ़ता है। आज के सबसे बड़े कहानीकार नेता ही तो हैं। जो हर चुनाव में नई नई कहानियां गडकर जनता जनार्दन को सुनाते हैं। भोली भाली जनता को कल्पनालोक की सैर कराते हैं। जब चुनाव आते हैं तब तो ऐसी कहानियों की बाढ़ सी आ जाती है। एक नेता एक कहानी सुनाता है दूसरा उससे चार कदम आगे बढ़कर एक और नई सी अपनी कहानी सुनाता है। भोली भाली जनता इनकी इन काल्पनिक कहानियों में के जाल में फंसती है। जिस नेता की कहानी जनता को ज्यादा अच्छी लगती है। वह उसी के कल्पना जाल में फंस कर उसे वोट देती है। उसके बाद जो जीतता है। वह उन्हें नित्य एक नई के माध्यम से उसे झांसे में बनाए रखता है। दूसरा नेता जो विपक्ष में बैठा है। वह सत्तापक्ष द्वारा किए जा रहे अच्छे काम को भी अपनी कल्पना शक्ति से गरीब विरोधी बताने लगता है। जब भी अक्सर होता यही है कि चुनाव लड़ते समय उसने भी जनता को उसी कल्पना लोक में घुमाया हो जिसे जीतने वाला आज साकार कर रहा है। आज जब वह विपक्ष में है तो उसने ऐसी ही एक अन्य काल्पनिक कहानी गढ़ कर जनता को सुनानी है जिससे जनता बहके और उसे किया जा रहा अच्छा काम भी बुरा लगे। जो जीता है तो वह अपने किए जाने वाले जन विरोधी कार्य को भी जन कल्याणकारी बताता है। तो नेताओं से बेहतर काल्पनिक कहानियों का सृजन बड़े से बड़े कहानीकार के पसीने छूटे जाएंगे जो एक छुट भैया नेता के बाएं हाथ का खेल है। नेता लोग तो हैं जो साहित्यकारों को कहानी लिखने के प्रेरित करते हैं।"
इतनी देर में आकांक्षा अपना दूध समाप्त कर चुकी थी।
मैंने कहा - "चलिए, आकांक्षा बेटी मैं तुम्हें ' मोची और बौनों' की कहानी सुनाता हूं। किसी कस्बे में एक मोची और उसकी पत्नी रहते थे। मोची बहुत अच्छे जूते बनाता था। उसके बनाए हुए जूते सुंदर और टिकाऊ होने के कारण बहुत ही लोकप्रिय थे। वह जूते बनाता था उनको बाजार में ले जाता और वहां उसके जूते अच्छी कीमत में बिक जाया करते थे। समय बीतता गया और एक ऐसा समय आया जब जूतों की फैक्ट्रियों से नए-नए डिजाइन के जूते आने लगे। ये फैक्ट्रियों में बने हुए जूते हाथ के द्वारा बनाए गए जूतों से सस्ते होने के साथ-साथ सुंदर होने के कारण कम और मध्यम आय वर्ग के लोगों के बीच ज्यादा पसंद किए जाने लगे। फैक्ट्रियों में बनने वाले जूते देखने में सुंदर और कम कीमत के होते थे। इसका असर यह हुआ कि मोची के द्वारा बनाए गए जूते अधिक कीमत पर बिकते नहीं थे। मोची अपने घर का खर्च चलाने के लिए अपने जूतों की कीमत कम करनी पड़ी।घर के खर्चे को जूते बनाने में प्रयोग होने वाली सामग्री जैसे जूते बनाने के लिए चमड़ा और दूसरा संबंधित सामान खरीदने के पैसे कम पड़ने लगे। अपनी जीविका चलाने के लिए तेजी से काम करना पड़ा और जूतों की गुणवत्ता में भी गिरावट आने लगी।जिससे उसके सामने एक बड़ा संकट आ गया।अब वह सीमित मात्रा में जूते बनाने का चमड़ा और दूसरे सामान लेकर आता इससे जूते बना कर बेचता उसकी आर्थिक स्थिति बद से बदतर होती चली गई। कभी-कभी मोची बहुत ज्यादा परेशान हो जाता था। वह जब भी निराशा से भरी बातें करता तो उसकी पत्नी उसे ढांढस बंधाते हुए कहती कि हिम्मत मत हारो। ईश्वर हमारी अवश्य ही मदद करेंगे। जिंदगी में एक जैसे दिन कभी नहीं रहते। सुख और दुख आते जाते रहते हैं। मनुष्य को हिम्मत कभी नहीं खोनी चाहिए। जिस तरह से सुखमय दिनों के बाद दुखमय समय आया है तो यह भी वक्त बीत जाएगा और फिर खुशहाली के दिन अवश्य आएंगे।हां, आकांक्षा बेटी तुम्हें क्या लगता है कि मोची की पत्नी सही कहती थी।"
"अंकल जी मोची की पत्नी बिल्कुल सही कह रही थी। अच्छे वक्त के बाद बुरा और बुरे वक्त के बाद अच्छा वक्त आ जाता है। यह दुनिया लगातार बदलती रहती है। रात के बाद दिन, दिन के बाद रात ,यह क्रम अनवरत चलता ही रहता है। जिस तरीके से रात और दिन आते जाते रहते हैं, धूप छांव आती जाती रहती है। इसी तरीके से जीवन में सुख और दुख आते जाते रहते हैं। जीवन में ना तो सुख स्थाई है और न ही दुख। कभी -कभी दुख की इस घड़ी में दुख की तीव्रता इतनी ज्यादा आती है कि व्यक्ति विचलित होकर हिम्मत हारने लगता है। ऐसे में उसे एक सहारे की जरूरत होती है। घर में सभी सदस्य एक दूसरे का उत्साहवर्धन करते रहें इससे जो भी समस्या आई है तो उसका समाधान भी अवश्य ही निकलेगा। हमें संयत रहते हुए ध्यान रखना होता है। अपने कार्य को पूरी लगन ,उत्साह और अनुशासन के साथ करते रहना चाहिए। भले ही कुछ समय लग जाए लेकिन यदि हमारा नियोजन और कार्यान्वयन सही है तो सफलता निश्चित रूप से मिलेगी। मार्ग में कुछ बाधाएं आती हैं लेकिन इन बाधाओं का जब हम डटकर मुकाबला करते हैं तो यह बाधाएं हमें अपने अपने उद्देश्य तक पहुंचने से नहीं रोक सकती।"-आकांक्षा ने एक कुशाग्रबुद्धि बच्चे के समान अपने विचार रखते हुए कहा।
आकांक्षा के ऐसे बुद्धिमतापूर्ण भरे विचारों को सुनकर मैंने उसकी प्रशंसा करते हुए कहा"हमारी बिटिया रानी तो अपने विचार बहुत अच्छे तरीके से रखती है। तुम्हारी यह विचार शक्ति बताती है कि तुम्हारी कल्पना शक्ति भी बहुत शक्तिशाली है।हम कभी मुसीबत में भी हो तभी हमें अपनी उदारता और सहृदयता कभी नहीं छोड़नी चाहिए हमें अपनी शक्ति के अनुसार हर समय दूसरे लोगों का उपकार करने वाले कार्यों के लिए सदैव उद्यत रहना चाहिए। एक दिन मोची वर्कशॉप में काम कर रहा था। उसे जूतों का चमड़ा काटने में विलंब हो गया तब तक शाम हो चुकी थी। वह चमड़ा काटकर सोने चला गया ।उसने सोचा कि कल सुबह उठ करके इनको बनाऊंगा लेकिन यह क्या ?अगले दिन सुबह उठकर जब वह अपनी वर्कशॉप में गया तब उसने बहुत ही सुंदर तरीके से सिले हुए तैयार किए गए जूते देखे। उसे बड़ा आश्चर्य हुआ कि रात में जूते अपने आप कैसे बन गए। वह उन जूतों को लेकर बाजार में गया और यह जूते काफी सुंदर लग रहे थे इसलिए उन जूतों की उसे अच्छी कीमत मिल गई।वह अपने घर का आवश्यक सामान और पहले की तुलना में अधिक चमड़ा खरीद कर लाया उस फिर चमड़े को काटा और जूते अगले दिन सुबह तैयार करने का विचार मन में रखकर वह सो गया लेकिन यह क्या आज भी जितने जूतों का उसने चमड़ा काट कर रखा था। उतने ही जोड़ी जूते उसी तरीके से बहुत ही सुंदर ढंग बने जूते तैयार मिले। इन जूतों को लेकर फिर बाजार में गया और अच्छी कीमत पर वह सभी जूते बिक गए। अब तो यह क्रम लगातार जारी रहा। वह शाम को चमड़ा जितने जूतों का चमड़ा काट कर रखता और अगली सुबह बड़ी सुंदर ढंग बने सारे जूते तैयार मिलते ।धीरे-धीरे उसकी आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी हो गई ।वे दोनों ही प्रसन्नता पूर्वक रहने लगे। एक दिन मोची ने अपनी पत्नी से कहा कि हमें यह देखना चाहिए कि रात में जूते कौन बना जाता है मोची और उसकी पत्नी रात में छुप कर बैठ गए। उन्होंने देखा कि खिड़की के रास्ते से दो बौने नाचते -खेलते आए और उन्होंने उस चमड़े से सुंदर जूते बनाने शुरू कर दिए और सारे जूते बनाने के बाद फिर से वे भी खिड़की से ही नाचते गाते चले गए।"
कहानी को आगे बढ़ाते हुए मैंने आकांक्षा को आगे बताना शुरु किया-"मोची ने अपनी पत्नी से कहा कि इन दोनों बौनों ने दुख के समय हमारी बहुत मदद की। ये तो सचमुच ईश्वर के द्वारा भेजे गए देवदूत है ।मैं सोचता हूं कि मैं इन दोनों के लिए दो जोड़ी बहुत ही सुंदर जूते बनाता हूं। यह जूते पहनकर वे बहुत ही प्रसन्न होंगे।"
अपने पति द्वारा किए गए संकल्प के साथ-साथ मोची की पत्नी ने भी अपने विचारों से पति को अवगत कराया। मोची की पत्नी बोलीं कि मैं भी उन दोनों के लिए उनकी नाप के छोटे छोटे बहुत ही सुंदर कपड़े बनाऊंगी। मोची ने पत्नी के इस प्रस्ताव से पूर्णतया सहमत होते हुए ऐसा ही करने की बात कही।"
"अर्थात एवमस्तु"-आकांक्षा ने वरदान देने की मुद्रा बनाते हुए कहा।
"वैसे यह वरदान मोची की पत्नी द्वारा दिया जाना चाहिए क्योंकि गृह संचालन में प्रवीण होने के कारण घर में पुरुषों की तुलना में उन्हें अधिकार मिलने चाहिए।
"मोची और उसकी पत्नी ने आज जूते बनाने का कटा हुआ चमड़ा न रखकर उन दोनों दोनों के लिए सुंदर से छोटे-छोटे जूते और सुंदर से छोटे छोटे कपड़े बनाए उस रात बने आए उन्होंने देखा कि जूते बनाने का कटा हुआ चमड़ा कहीं नहीं ह उन्होंने देखा आज कटा हुआ चमड़ा नहीं बल्कि उसकी चमड़े दो जोड़ी सुंदर से छोटे-छोटे जूते और सुंदर से दो जोड़ी कपड़े रखे हुए हैं। सदैव की भांति वे दोनों बहुत प्रसन्न लग रहे थे। उन्होंने छोटे छोटे जूते और कपड़े पहने वे दोनों ही बड़ी खुशी से वहां नृत्य करते रहे और रोज ही की नृत्य करते-करते सवेरा होने से पहले रोज की भांति खिड़की के रास्ते से बाहर चले गए। मुझे की आर्थिक स्थिति काफी अच्छी हो गई थी वह अपना काम पहले की तरह ही बहुत ही सुबह बस इस तरीके से करते हुए एक समृद्धशाली जीवन व्यतीत करने लगा।"
"अंकल जी, वैसे तो यह एक काल्पनिक कहानी है लेकिन यह कहानी हमें बहुत बड़ी शिक्षा देती है कि हमें बुरे समय में घबराना नहीं चाहिए और जो व्यक्ति हमारा उपकार करता है। जिसके मन में हमारे प्रति उपकार की भावना है। हमें सदैव ही उसके प्रति साथ ही साथ सभी के साथ भी यथासंभव अपनी पूरी शक्ति भर उपकार करने का मौका गंवाना नहीं चाहिए। यह संसार एक दूसरे की मदद करके ही चलता है अगर हम सब सहयोग पूर्ण तरीके से रहते हैं। तो हमारा समाज एक सुखी समृद्ध और मारामारी की विचारधारा के मुख्यत सहयोगी समाज बनेगा। आज संसार में जो मारामारी दृष्टिगोचर हो रही है इस तरीके की भावना इस मारामारी का रामबाण उपचार है।"-आकांक्षा ने अपनी बात रखते हुए प्रणाम किया और अपने घर की ओर प्रस्थान किया।