Ram Binod Kumar 'Sanatan Bharat'

Abstract Classics Inspirational

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Ram Binod Kumar 'Sanatan Bharat'

Abstract Classics Inspirational

मेरी 'श्यमा

मेरी 'श्यमा

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जैसे ही मेरी आंखें खुली, कुछ पल पश्चात में उठ बैठा। आज मैं काफी ताजगी महसूस कर रहा था। ऐसा मानो 8 घंटे की नींद पूरी कर के जगा हूं

मैंनने घड़ी पर नजर दौड़ाई। यह क्या-

 अभी 2:20 ही हो रहा था।

अब मेरी बूढ़ी मस्तिष्क में स्मृति लौटी। मेरा मन खुशी से फूल उठा।

आज श्यामा घर आ रही है। कल उसने आने को लिखकर मैसेज किया था, तब मुझे याद आया कि आज मेरा जन्मदिन भी है।

वैसे भी मेरे लिए ,मेरे जन्मदिन के मायने थोड़े कम ही हैं। पर मेरे बच्चों को इस दिन का विशेष इंतजार रहता है। खासकर मेरी बेटी "श्यामा", वह तो आज का दिन कभी नहीं भूलती ।

मुझे याद रहे ना रहे,उसे आज का दिन जरूर याद रहता है।

मुझे आज भी वह दिन याद है, जब श्यामा 11 वर्ष की थी। उसने मुझसे मेरा जन्मदिन पूछ कर, पहली बार अपनी मां को मना कर, मेरा जन्मदिन मनाया।

जबकी आज तक भी, हमने अपने परिवार में, अपने किसी भी बच्चे की विशेष रुप से जन्मदिन मनाने की परंपरा नहीं रखी थी।

हां ! अपने चारों बच्चों का जन्मदिन एक ही दिन, रामनवमी को ही, श्रीराम के जन्मदिन के साथ-साथ, घर पर अपने बच्चों के लिए उत्सव के बीच जन्मदिन की भावना करता था ।

पर उसके लिए अलग से कोई विशेष तैयारी नहीं होती ,ना तो किसी मेहमान को बुलाया जाता ,नहीं कोई अन्य तामझाम। त्योहार के दिन हंसी खूशी और भगवान श्रीराम जन्मदिन के साथ बच्चों को जन्मदिन की शुभकामनाएं दे दिया करता था।

आज तक भी वह परंपरा कायम है। परिवार में सात पोते-पोतियों का का जन्मदिन भी किसी खास दिन में खास आयोजन के साथ नहीं बनाई जाती है।

आज भी सारे बच्चों का जन्मदिन इकट्ठे रामनवमी को दिन मनाया जाता है।

पर मेरा जन्मदिन तो अपवाद है। इसमें भी एकदम सादगी है ,केवल परिवार के लोग शामिल हो पाते हैं।

श्यामा 32 वर्ष की हो गई है। दो बच्चों की माता भी है।

फिर भी उसकी 11 साल की बच्ची वाला जिद अभी भी कायम है। मेरे जन्मदिन का आयोजन हर साल किए बिना नहीं मानती है।

आज भी जब मैं सवाल पूछता हूं, कि तुम चार भाई-बहनों ,और 7 बच्चों का जन्मदिन रामनवमी को मनाया जाता है ,तो फिर मेरा जन्मदिन एक खास दिन को क्यों मनाया जाता है।

तो उसका आज भी एक ही जवाब होता है जो वह 21 साल पहले देती थी।"बाबू जी ! जब मेरे बच्चे बड़े होंगे उनको मेरी जन्मदिन मनाने की इच्छा होगी वे जन्मदिन मनाएंगे, मैं उन्हें नहीं रोकूंगी ।"मेरी चार सन्तानों में श्यामा सबसे छोटी है। पर अभी तो अब वह बड़ी सयानी हो गई है।

दिन रात मेरी नानी की तरह मेरा ख्याल रखती है। कहती है उसकी मां के बाद, मेरा ख्याल रखने वाला और है कौन ?

आज की व्यस्तता भरी जीवन में, श्यामा अपने परिवार और बच्चों के साथ मेरा भी ख्याल रखती है। जबकि मैं समझता हूं ,उसका एक- एक वक्त कितना कीमती है। शिक्षण के साथ-साथ वह लेखन का कार्य भी करती है। मुझे वह दिन याद है, जब मैं उससे कुछ, लिखने को प्रेरित करता,

तो वह कहती"बाबूजी ! मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा, आपकी कविता कहानी मैं कैसे पूरी कर सकती हूं ? पता नहीं आप क्या सोचते हैं, मैं क्या सोचूंगी ?"

मैंने कहा- यह कठिन नहीं है। बस उस पात्र को, अपनी जगह रख कर देखो। पिता- पुत्र, पुत्री -माता मित्र-दुश्मन, चोर- सन्यासी, सब की भूमिका में खुद को रख कर देखो, आखिर कल्पना करो आपका जीवन कैसा है? कैसी होगी? और उस परिस्थिति में आप कौन से कार्य करोगे ? उसी को शब्द अपनी लेखनी से कॉपी पर उतार दो , फिर आप बन गए लेखक !

एक दिन अचानक उसकी रुचि जगी, वह बोली"बाबूजी ! मैं आपके बारे में कहानी लिखना चाहती हूं, मेरी कहानी में नायक आप ही हैं।"

फिर उसने अपनी पहली कहानी " बाबूजी"लिखा । जिसे पढ़कर मेरी आंखों में खुशी के आंसू आ गए। एक वह दिन और एक का आज का दिन, आज भी वह बिल्कुल नहीं बदली, उसकी प्रेरणा और आदर्श मुझ तक ही पूरी होती है। मेरी एक-एक शिक्षाओं को उसने, अपने जीवन में उतारा है। मेरे शब्द ही उसके लिए मंत्र और आदर्श है।

आज भी बच्चों जैसी किसी बात को ,मुझसे शेयर करती और सलाह लेती है।

पर हां ! मैं अपने खानपान में अगर कोई मनमर्जी करना चाहूं , तो उसके सलाह और सुझाव सदा ,मेरी मां की तरह तर्कशील होती है।

वह हमारे खान-पान के एक-एक चीजों का ध्यान रखती है, सुबह नाश्ते से लेकर शाम के भोजन तक मुझे उसी के अनुरूप ही अपनी डाइट लेनी होती है।

श्यामा बचपन से ही ,वैसे चंचल स्वभाव की थी।

परंतु वह थोड़ी शर्मीली थी, बचपन में वह मुझसे भी खुलकर बातें नहीं करती थी।

पर किशोरावस्था में मैं उसके लिए उसके मित्र के समान था। हर बातें जो उसे समझ न आती, मुझसे पूछती, और शेयर करती थी।

जिसमें परिवर्तन आज भी नहीं हुआ, आज भी हम पिता- पुत्री के साथ साथ मित्रवत भी हैं।

उसके दिन मुझसे ही शुरू और खत्म होते हैं।

मैं सोचता हूं ,उसे कितनी बड़ी जिम्मेदारी है। अपना परिवार, पति और बच्चों के साथ -साथ उससे मेरी भी फिक्र रखनी होती है। मुझे समझ नहीं आता, वह इतना कुछ ,सब एक साथ कैसे व्यवस्थित कर लेती है।

सचमुच , हमारी श्यामा ! मुझे पता ही नहीं चला, कब वह बच्ची से इतनी बड़ी हो गई।

अगर मैं पहले से समझता, की बेटियां अपने पिता का इतना ख्याल रखती है, तो मैं बेटे की आस नहीं करता।

किशोरावस्था के शुरुआत ,में श्यामा एकाग्र नहीं थी।

मैं उसकी पढ़ाई में जो कुछ भी गृह- कार्य देता, और से पूर्णतया कभी पूरा नहीं कर पाती थी।

इस बात को लेकर, मैं थोड़ा चिंतित था। पर मैं इस बात से अस्वस्त था, कि हमारे मोटिवेशन से कुछ दिनों में उसमें आवश्य ही सुधार होगा।

ऐसा हुआ भी, पर उसके संस्कारों को पक्का करने के लिए, मुझे कई तरह के प्रयोगों से होकर गुजरना पड़ा।

उसका मन कभी उचट जाता, कहती "बाबूजी पाठ याद नहीं हो रहा है, मैं क्या करूं ?"

मैंने कहा- पाठ को केवल पढ़ना है रटना नहीं है , पाठ को याद करने का सही तरीका केवल उसे समझना है और समय-समय पर उसकी पूर्णावृत्ति करनी है, बार बार पढ़ना है।

यदि आप ऐसा कर पाते हैं तो आपको पाठ  याद हो जाएगा ,और समझ में आ जाएगा।

फिर भी अगर किसी चीज में कभी दुविधा बनी रहती हो तो, आप उसको किसी चीज से जैसे कहानी या अन्य किसी घटना से जोड़ दें।

उस पाठ को आप कभी भूलेंगे नहीं । कभी वह अक्सर दु:खी हो जाती, कहती अच्छा नहीं लग रहा है, मूड ऑफ हो गया है।

मैं हंसकर कहता -ऐसा कभी-कभी, आपकी उम्र के बच्चों के साथ होता है।

आप बहुत ज्यादा सोचते हो, सोचना कम और करना अधिक है।

आप एकाग्र होकर, मन लगाकर कोई काम करें।

उस काम में आप अवश्य सफल होंगे।

हर चीजें हमें समय पर मिल जाती है, जब हम उसके लिए लगन से प्रयास करें।

आपका कार्य अवश्य ही दिखेगा।

कहीं खोदेंगे तो ,अवश्य ही गड्ढा बनता चला जाएगा। और कहीं मिट्टी डालेंगे वहां वह अवश्य ही दिखाई देगा।

हमारा कार्य बिना बताए अवश्य ही दिखने लगता है, आपकी बदलाव आपको एक पल में दिखने लगेगी।

बस आप अच्छा सोचें, और उसे कार्य रुप में परिणत करें।

और कभी भी सकारात्मक सोचे।

हमारे पास जितने संसाधन है उसी में बेहतर करने का प्रयास करें,

नए संसाधन की प्रयास में तो मैं खुद लगा ही हूं।

आधुनिक जमाने की कौन सी ऐसी सुविधा है, जो आपके पास नहीं है।

मगर हां ! हमें इसका सदुपयोग करना चाहिए।

मध्यम मार्ग ठीक है, कछुआ चाल से भी सफलता मिलती है, क्योंकि खरगोश तो यह सोच कर सो जाता है कि मैंने बहुत कर लिया।

और वह हार जाता है, जीतने के लिए अनवरत लगातार कोशिश की जरूरत पड़ती है।

अगर किसी कार्य में हमें सफलता नहीं मिलती हो, और हम उस कार्य को अधूरा छोड़ देते हैं, तो हमारी अब तक की गई मेहनत व्यर्थ जाती है।

माना हमें किसी गंतव्य स्थान पर पहुंचना है, और हमने आधे रास्ते के बाद, पीछे लौटने को सोचा, तो उस परिस्थिति में भी हमें पुनः आधा रास्ता तो तय करना ही पड़ेगा। उतनी ही परेशानी से हम मंजिल तक पहुंच सकते थे।

शुरुआत में मैं उसे कुछ कहानियां और कविताएं लिखने को कहता, तो वह टाल देती, कहती मुझे समझ में नहीं आ रहा, ऐसे सोचते रहूंगी, तो मेरा समय बर्बाद हो जाएगा। मेरे इतने सारे पाठ अधूरे पड़े हैं, मेरे पास समय की बहुत कमी है।

मैं समझता-शिक्षा का असली उद्देश्य हमें अपनी भाषा का विकास, एवं अभिव्यक्ति की उत्कृष्टता को भी सीखना है।

जैसे बच्चे कक्षा में खड़े होते ही अपनी याददाश्त भूल जाते हैं, असेंबली में कभी कुछ बोल नहीं पाते हैं।

लिखने से आपकी कल्पना शक्ति बढ़ेगी भाषा का ज्ञान विकास होगा,

आप समाज को समझ पाओगे, विभिन्न तरह से सोचोगे, जैसे कि एक मित्र - दुश्मन की तरह माता- पिता की तरह,

बच्चें और बड़ों की तरह, किसान मजदूर और धनवान की तरह, अच्छा और बुरा, फिर इन सब बातों से आपका चरित्र भी बनेगा, कोई किरदार या पात्र आपका नायक होगा।

फिर आपका जीवन कुछ वैसा ही अनुरूप होगा,। आपको अपने भले - बुरे का भी ज्ञान हो जाएगा।

कोई भी कार्य करने से पहले आप हर एंगल से सोचेंगे, इस तरह आगे आपको जीवन में सफलता मिलेगी।

और इसमें समय की बर्बादी नहीं है,हां जरूरत है रूटीन बनाकर कार्य करने की और समय से बंधने की, अपने समय की पाबंद बनें, समय के साथ साथ कदम से कदम मिलाकर चलें।

आज का थोड़ा-थोड़ा किया हुआ कार्य देखकर आप भविष्य में अचंभित हो जाएंगे। जानते हैं बूंद -बूंद से तलाब भर जाता है। एक-एक दिन जीते -जीते जिंदगी गुजर जाती है। हर साहित्य रचना अमर कृति होती है ,जो कभी मरती नहीं है।आज हम जो हमारे महान लेखकों के जो कृतियां पढ़ते हैं, आज वे लेखक और विचारक हमारे बीच नहीं है। मगर उनकी कृति अमर है उनके विचार हमारे पोते- पोतियो तक और उनके आगे आने वाली पीढ़ी तक, भी समाज और राष्ट्र में अपनी प्रेरणा देती रहेगी।

इस तरह उसकी लेखन प्रेरणा जगी थी।

और आज लेखन ही उसका जीवन है। वह अपने मन की हर बात को जो सबको बताना चाहती है अपनी रचनाओं में बोल देती है।

आज अपनी रचनाओं के माध्यम से, एक समाज सुधारक की तरह अपने विचारों को रखती है , और बड़े निडरता के साथ हर पहलुओं पर अपनी स्पष्ट राय देती है, उसकी रचनाओं से मैं भी प्रभावित हुए बिना नहीं रह पाता हूं आज मेरे लिए भी उसकी रचनाएं प्रेरणादायक होती है।

मुझे गर्व होता है कि, मैं "श्यामा" का पिता हूं।


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