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Ram Binod Kumar

Romance Inspirational

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Ram Binod Kumar

Romance Inspirational

काश ! वह लौट आता

काश ! वह लौट आता

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आज इस साल का आखिरी दिन है। यह वर्ष जाते-जाते अपने आखिरी सप्ताह में दिव्या को एक बड़ा सा गम दे गया था। दिव्या अब अपने अतीत के पलों को याद करती हुई सोच रही थी, काश ! वह लौट आता। परन्तु आज भी देव की कोई खबर नहीं थी।

जाने से पहले देव दिव्या से मिलने आया था। दिव्या को समझाते हुए उसने कहा था, " दिव्या ! तुम हिम्मत रखो और इस बात की चिंता बिल्कुल ही छोड़ दो कि मेरे पिताजी तुम्हें नापसंद कर देंगे। मैंने तुम्हें कहा न, मेरी पसंद ही उनकी पसंद है। तुमसे और तुम्हारे पापा से उनकी मुलाकात बस औपचारिक है। मैंने उन्हें तुम्हारे बारे में सब कुछ बता दिया है।"

" नहीं देव ! मैं तुम्हारे पापा का सामना नहीं कर सकती हूं। उनके सामने कैसे जाऊंगी, इसी तरह चलते हुए ? कैसे कहूंगी कि मैं उनकी बहू बनने के योग्य हूं ?"

" तुम्हें उन्हें कुछ कहना नहीं है। मैंने तुम्हें बताया न, मैंने उन्हें तुम्हारे बारे में सब कुछ मालूम है। मैंने उन्हें यह बात भी बता दिया है कि एक दुर्घटना में तुम्हारे पैरों में चोट लग गई है, जो अभी भी नाजुक है। इसे पूरी तरह ठीक होने में कुछ समय लगेगा।"

" नहीं देव ! पापा का सामना करने से मुझे डर लग रहा है। मैं ऐसे चलकर कैसे उनके सामने जाऊंगी ? क्या तुम अपने पापा से मेरी इस मुलाकात को कुछ दिन के लिए और टाल नहीं सकते हो ?"

" काश ! मैं इसे टाल सकता। लेकिन अब यह संभव नहीं है। अगर तुम्हें मुझ से प्रेम है , मैं तुम्हें पसंद हूं तो फिर तुम्हारा मेरे पापा से आज मिलना जरूरी है। तुम तो जानती हो न, रश्मि के माता-पिता किस तरह मेरे और मेरे पापा से रश्मि के रिश्ते के लिए पीछे पड़े हुए हैं ? यही कारण है कि पापा तुमसे जल्दी में मिलना चाहते हैं ?"

" हां, मैं यह जानती हूं। लेकिन मुझे लगता है कि शायद यह सब श्यामलाल अंकल की ही चाल है। वे मुझे जानबूझकर ऐसी स्थिति तुम्हारे पापा के सामने करना चाहते हैं जिससे कि तुम्हारे पापा मुझे नापसंद कर दें। तब रश्मि का तुम्हारे साथ रिश्ते के लिए रास्ता साफ हो जाएगा।"

" नहीं-नहीं ! ऐसा कुछ भी नहीं है। क्या तुम्हें मुझ पर विश्वास नहीं ? तुम मेरे पापा के बारे में ऐसी अविश्वास की बातें कैसे सोच सकती हो ? शायद तुम रश्मि को लेकर अपने मन में अब भी सशंकित हो ? तुम्हें मैं कैसे भरोसा दिलाऊं ऐसा कुछ नहीं है ? तुम बस इतना समझ लो, हर हाल तुम मुझे सदा ही अपने साथ खड़ी पाओगी। मेरे पापा कभी भी मुझ पर मेरी इच्छाओं के विरुद्ध तुम्हें छोड़कर किसी और से भी विवाह करने को जोर नहीं डालेंगे , क्योंकि वे मेरे पापा हैं। मैं उन्हें अच्छी तरह जानता हूं। अगर कभी ऐसा हुआ तो भी यह तुम्हारे लिए चिंता की कोई बात नहीं ! मैं हर हाल में तुम्हारे साथ खड़ा रहूंगा।"

" नहीं देव ! मैं बाप-बेटे की बीच में दीवार खड़ी करना नहीं चाहती हूं। मेरे पैर का क्या भरोसा , अगर यह पूरी तरह से नहीं ठीक हुआ तो ?"

" तो क्या होगा क्या, मैं केवल तुम्हारे हाथ या पैर से प्रेम करता हूं ? अरे नहीं ! मुझे केवल तुमसे, तुम्हारी अंतरात्मा से प्रेम है। क्या कभी मेरे हाथ-पैर को कुछ हो जाए तो तुम मुझे छोड़ कर चली जाओगी, नहीं न ? इसी तरह मैं कैसे तुम्हारा साथ छोड़ दूं ? "

" नहीं देव ! मुझे खुद पर भरोसा नहीं। जब तक मैं ठीक नहीं हो जाती, तब तक मैं खुद को तुम्हारे योग्य नहीं समझती हूं। राय परिवार की बहू क्या मेरे जैसे लंगड़ी लड़की होगी ?"

" तुमसे किसने कह दिया तुम लंगड़ी हो ? इस दिल्ली में सबसे बड़े डॉक्टर से तुम्हारा इलाज चल रहा है न ? तुम बस भरोसा रखो तुम जल्दी ठीक हो जाओगी ‌।

"नहीं देव ! तुम कुछ दिन के लिए पापा के साथ मेरी इस मीटिंग को टाल दो।" दिव्या एक बार फिर अपनी पुरानी बात दुहराई।

" मैं तुम्हें कब से समझा रहा हूं , पर तुम एक ही बात की जिद कर बैठी हो। आज पापा यहां आएं हैं। तुम्हें उनसे मिलना चाहिए क्योंकि वे तुमसे मिलना चाहते हैं। मैं जानता हूं वे तुमसे मिलकर बहुत खुश होंगे। वे तुम्हारे बारे में मेरे द्वारा बताए जाने के बाद ही तुमसे मिलने मुंबई से यहां आए हैं।

वे मुंबई से वापस इंदौर ही लौट जातें। श्यामलाल अंकल तो उनके मित्र हैं। रश्मि को लेकर उनसे उनकी पुरानी पहचान है।

वे भले ही श्यामलाल अंकल के जोर देने पर वे उनके घर उनसे मिलने चले गएं, जिसकी चर्चा राज तुमसे कर रहा होगा। मगर मैंने उन्हें उनके दिल्ली आने से पहले ही तुम्हारे बारे में सब कुछ बताया था। उनके दिल्ली आने कारण रश्मि से नहीं, तुमसे मिलना है। अगर तुम उनसे नहीं मिलोगी तो उन्हें अच्छा नहीं लगेगा।"

" देव ! तुम उन्हें कुछ भी कह कर मना लो न। मेरे बारे में कह देना मेरी तबीयत ठीक नहीं है। मैं उनसे फिर कभी मिल लूंगी।"

"ठीक है , तुम अपनी जिद पर अड़ी रहो , परंतु इसका परिणाम क्या हो सकता है तुम जानते हो ? अब मैं उनके सामने तुम्हारे बारे में क्या कहूंगा ? जो लड़की उनसे मिलने को तैयार नहीं हुई वे उसे अपनी बहू बनाने के लिए कैसे तैयार होंगे ? अगर उन्होंने रश्मि से मेरे रिश्ते की मंजूरी दे दिया, तो मैं उन्हें तुम्हारे लिए कैसे मनाऊंगा , जरा सोचो ?" देव ने गुस्से में कहा ‌ परंतु दिव्या चुप ही रही। वह अपने मन को देव के पिताजी से खुद को मिलने के लिए तैयार नहीं कर पा रही थी।

देव कुछ देर तक चुप होकर दिव्या को देखता रहा ,फिर आपने हॉस्टल जाने के लिए उठ खड़ा हुआ।

"ठीक है, मैं चलता हूं। तुम्हारे पास कल दोपहर तक का आखिरी वक्त है, अगर तुम्हारा मन बदल जाए तो मुझे बता देना। शाम को पापा के साथ मेरी भी फ्लाइट है। मैं भी नए साल पर घर जा रहा हूं।" इतना कहकर देव जाने को तैयार होगा तो दिव्या भी कुछ दूर उसके साथ चलकर उसे मुख्य सड़क तक छोड़ने के बाद उससे विदा लेकर वापस अपने घर आ गई थी।

दिव्या दूसरे दिन भी अपना मन नहीं बदली। वह सोच रही थी, देव घर जाने से पहले उसे कॉल जरूर करेगा ,लेकिन शाम तक जब देव का कोई कॉल नहीं आया तब दिव्या परेशान हो गई और देव को कॉल करने लगी थी।

परंतु देव का कॉल लग नहीं रहा था।उसका नंबर अनरीचेबल बता रहा था। दिव्या ने सोचा शायद वह भी अपने विमान में होगा इसीलिए कॉल नहीं लग रहा है। उस दिन देर रात तक वह देव को कॉल करने की कोशिश करती रही थी, लेकिन देव का कॉल नहीं लगा था।

रात को देव को कॉल करने की कोशिश करते हुए न जाने कब उसे नींद आ गई थी। सुबह जागते ही एक बार फिर देव को कॉल करने की कोशिश करती रही परंतु देव के नंबर पर कॉल नहीं लग रहा था।

दिव्या ने जब देव की बहन सविता से देव के बारे में पूछा, तो वह भी तीन दिनों से अपने भाई से कोई संपर्क न होने के बाद बतायी।

" वे दोनों अच्छी तरह घर तो पहुंच गए हैं न ?" दिव्या ने सविता से पूछा।

सविता कहने लगी," हां, कल ही बड़े पापाजी से मेरी बात हुई है। दोनों अच्छी तरह से घर पहुंच गएं हैं। जब मैंने भैया के बारे में पूछा तो यह कह रहें थे, कि मुझे नहीं मालूम उसके नंबर का क्या हुआ है।जब शाम को घर जाऊंगा तो उससे तुम्हारी बात कर आऊंगा। "

" फिर देव से मेरी बात कैसे होगी ?" दिव्या चिंतित होकर बोली।

"अब मैं क्या कहूं , इसके लिए तुम्हें शाम को बड़े पापा के नंबर पर कॉल करना पड़ेगा। मेरे पापा तो कल ही दिल्ली आ गएं हैं ,अन्यथा मैं तुम्हें उनके द्वारा देव भैया से बात करवा देती।"

" और मम्मी जी का कोई नंबर ?" दिव्या ने आशापूर्ण उत्साह के साथ पूछा।

" हां,उनका नंबर है मैं भेज देती हूं।" सविता ने बड़ी माता जी का नंबर भेज दिया था। दिव्या उस पर भी कॉल करने कोशिश किया। लेकिन इस नंबर पर कॉल करने के बाद दिव्या की कॉल का कोई जवाब नहीं मिलता था।

ऐसा देखकर दिव्या चिंतित हो गई थी। वह सोचती, आखिर देव का नंबर बंद क्यों है ? क्या उसने अपना फोन बंद करके रख दिया है, जिससे कि मैं उसे कॉल न करू? उसकी माता जी के नंबर पर कॉल करने पर कोई कॉल रिसीव क्यों नहीं करता है ? क्या अब मुझे पापा जी के नंबर पर कॉल करना पड़ेगा ?' ऐसी ही उधेड़बुन में तीन दिन गुजर गया था। आज साल की आखिरी तारीख थी।

दिव्या को पिछले वर्ष का आखरी दिन याद आने लगा। उस दिन वह देव के साथ कितना खुश थी। देव अपनी बहन के साथ उसके घर आया था। वह, उसके पापा, देव और सविता चारों ने वर्ष की आखिरी संध्या को खुशी के साथ साथ-साथ संध्या भोजन करके आनंद लिया था।

देव उस रात अपने हॉस्टल लौट कर भी रात एक बजे तक दिव्या के साथ व्हाट्सएप पर ऑनलाइन था। दोनों ने नए वर्ष मु एक-दूसरे के साथ अपने नवजीवन की सपने बुनते हुए खूब आनंद लिया था।

*****

करीब डेढ़ वर्ष पहले की बात है। देव से दिव्या की पहली मुलाकात हॉस्पिटल में हुई थी। दिव्या के पिता समीर जोशी कई दिनों से काफी बीमार थे। वह भी कई दिनों से अपने पिता के साथ हॉस्पिटल में ही रह रही थी।

अपने पिता की बीमारी और उनके इलाज काफी पैसे खर्च हो जाने के कारण वह बेहद चिंतित और परेशान थी। उसके बड़े भाई रमेश की भी कोई खबर नहीं थी। कई बार कॉल करने पर उसके नंबर से कोई जवाब नहीं आया था। दरअसल दूसरी ओर से कोई कॉल रिसीव ही नहीं करता था।

दिव्या उस नंबर पर कॉल करके और संदेश भेजकर थक चुकी थी। अंत में वह अपने परिचित के रिश्तेदारों से भी मदद लेने की कोशिश की, मगर उस वक्त किसी ने उसकी सहायता नहीं किया। सभी अपने हाथ खड़े कर चुके थे। उन दिनों उसके पिता के किसी मित्र या कोई रिश्तेदार भी उनकी खबर लेने के लिए हॉस्पिटल में नहीं आएं।

दूसरे दिन डॉक्टर ने दवाओं की पर्ची देकर दिव्या को उसे जल्द से लाने को कहा था। पर दिव्या के पास दवाएं लाने के लिए पर्याप्त पैसे नहीं थे। वह दवा का पर्चा लेकर वार्ड से बाहर आई और हॉस्पिटल के अंदर के ही सड़क के किनारे एक पीपल की पेड़ की जड़ में बने हुए चबूतरे पर बैठकर चिंतित होते हुए रोने लगी थी। उसे अपनी परेशानियों से निकलने का कोई भी मार्ग नहीं सुझ रहा था, इसलिए वह लगातार रोये जा रही थी।

तभी एक सुंदर सा युवक उसके पास आकर उसके रोने का कारण पूछने लगा था। यह देव था। वह उसे क्या बताती , उसी पूरा विश्वास था कि ऐसी स्थिति में कोई भी उसकी सहायता नहीं करेगा। सब लोग बस उसकी लाचारी सुनकर अपनी मुंह मोड़ कर चले जाएंगे।

ऐसा ही सोच कर वह देव की बात अनसुनी करके एक बार फिर डॉक्टर से मिलने और दवा न ला पाने की अपनी असमर्थता की विनती करने चली गई थी। उसे यह अंदाजा भी नहीं था कि वह युवक उसे ढूंढता हुआ डॉक्टर के केबिन तक पहुंच जाएगा।

जब वह डॉक्टर से दवा लाने की अपनी असमर्थता की बात बता रही थी ,तभी वह युवक डॉक्टर की केबिन के अंदर आ गया और दवा लाने की बात को बोला। डॉक्टर से दवा की पर्ची लेकर जैसे ही वह बाहर निकला दिव्या भी उसके पीछे हो गई थी।

वह सीधा दवा की दुकान पर पहुंचा और सारी दवाइयां खरीद कर डॉक्टर के पास लेकर आया। उसके पिता का ट्रीटमेंट होने लगा। दिव्या की पिता समीर जोशी की चिकित्सा कार्य पूरी होने के दौरान दोनों ने एक- दूसरे के बारे में थोड़ा बहुत जानकारी हासिल कर लिया था।

कुछ देर बाद जब देव वापस जा रहा था तो दिव्या भी ऊपर की मंजिल से उसकी बहन से मिलने के लिए उसके साथ नीचे तक आई। दरअसल उसी हॉस्पिटल में देव के चाचा जी का भी इलाज चल रहा था। उनसे मिलने के लिए देव और उसकी बहन सविता उसी हॉस्पिटल में आए हुए थे। उसी दिन से उन दोनों की घनिष्ठता और बढ़ती गई। दिव्या से मिलकर सविता भी बहुत खुश हुई थी।

सविता और दिव्या की दोस्ती भी बढ़ती ही गई थी। उसने देव और दिव्या दोनों के मन में एक-दूसरे के प्रति अटूट प्रेम उत्पन्न करने में अपनी बड़ी भागीदारी भी दिया था। कुछ ही दिनों में देव और दिव्या का प्रेम इतना अटूट हो गया था कि दोनों खुद को एक-दूसरे के लिए बना होना समझने लगे थे।

दिव्या और सविता की एक दोस्त रश्मि थी। उस रश्मि की कुटिल चाल भी देव और दिव्या दोनों के प्रेम में दरार न डाल सकी थी। एक समय ऐसा आया जब रश्मि भी देव को पसंद करने लगी थी। देव के प्रेम में वह इतनी अंधी हो गई थी ,कि वह उसे हर कीमत पर पाना चाहती थी। इन्हीं दिनों एक दु:खद दुर्घटना हुई, जिसमें दिव्या के बायें पैर मैं काफी चोट आई थी। उसका वह पैर पूरी तरह क्षतिग्रस्त हो गया था।

उन्हीं दिनों रश्मि ने अपने भाई के साथ मिलकर एक खेल रचा। वह अपने भाई राज के द्वारा दिव्या को प्यार के जाल में फंसाने का नाटक करके दिव्या को देव से दूर करने की कोशिश कर रही थी और देव के पीछे जी जान से पड़ी हुई थी।

देव को वश में करने के लिए उसने एक समय सम्मोहन का सहारा भी लिया। इसके लिए पहले देव के मन में ऐसा दिखाने में कामयाब हो गई कि दिव्या उसके भाई राज से प्रेम करती है और जल्द ही दोनों की सगाई होने वाली है। दिव्या को भी इस बात का भरोसा दिलाने कि कोशिश किया गया कि देव को उससे नहीं रश्मि से प्रेम है। किंतु समय रहते देव और दिव्या दोनों की आंखें खुल गई थी।

एक बार फिर सारी बाधाओं से लड़कर देव और दिव्या दोनों एक हुए थे। परंतु फिर भी रश्मि हार नहीं मानना चाहती थी।वह दिव्या की अपने भाई राज से झूठी सगाई कि नाटक रचने से अभी भी बाज नहीं आ रही थी।

अंततः देव ने दिव्या से अपने प्रेम की सारी बातें अपने पिता को बताया। उन्हें दुर्घटना में दिव्या के पैर में गहरी चोट लगने के बाद भी बताया। वे अपने पुत्र देव की पसंद के कारण एक बार दिव्या और उसके पिता से मिलना चाहते थें। परंतु दिव्या की जिद के आगे वे उनसे मिल न सकें। वे उनसे मिले बगैर ही वे देव के साथ अपने शहर लौट गए थे।

कहते हैं - 'अब पछताए होत क्या जब चिड़िया चुग गई खेत' देव और उसके पिता के अपने शहर लौट जाने के बाद दिव्या चिंतित रहती थी, क्योंकि यहां से जाने के बाद देव ने अपना फोन ही बंद कर दिया था।

इसी तरह उन्नीस दिन बीत चुका था। दिव्या को देव से बात नहीं हो पाती थी। उसकी खबर तो उसे सविता के कारण मिल जाती थी, परंतु दिव्या देव के मन की बात जानने के लिए वह बहुत तड़प रही थी।

इतने दिनों में दिव्या की सखी सविता की भी अपने भाई देव से बातें नहीं होती थी। शायद वो अपनी बहन से भी नाराज था, क्योंकि दिव्या उसकी सहेली थी। अपनी बहन के कहने पर ही वह दिव्या से प्रेम करने लगा था। दिव्या के अपने पिता से मिलने को मनाने के लिए देव ने सविता से भी कहा था।

" मैं तो उसे सारी बातें समझा कर थक गया हूं , अब अपनी सहेली को तुम ही मनाओ। अगर वह ऐसी ही जिद किए हुए रही तो फिर मैं पापा को क्या कहूंगा कि उनकी होने वाली बहू उनसे मिलना नहीं चाहती है ? और अगर चुप रहूं तब तो वे मेरी चुप्पी को मेरी सहमति जानकार श्यामलाल अंकल को दिव्या के साथ मेरे रिश्ते की सहमति दे देंगे।"

अपने भाई की ऐसी बात सुनकर सविता भी अपने बड़े पापा से मिलने के लिए दिव्या को मनाने की काफी कोशिश की थी , तो उसकी भी सारी कोशिशें बेकार गई थी।

अगले दिन पन्द्रह जनवरी को दिव्या बैठी हुई देव के बारे में ही सोच रही थी। तभी उसे अपने फोन में मैसेज एक बीप सुनाई दिया। दिव्या अनमने से उसे देखने लगी। यह देव का संदेश आया। वह देव का संदेश देखकर खुश हुई। पर अगले पल संदेश पढ़कर उसे थोड़ी निराशा हुई।

'हमारी सगाई की आप बधाई नहीं देंगे ?' देव ने लिखा था।

'आपकी सगाई ?' दिव्या ने संदेश लिखकर पूछा।

'केवल मेरी नहीं हमारी !'

" किसके साथ ?"

" किसके साथ होना चाहिए, ‌आप ही बताइए न ? " देव ने पूछा ‌।

"मैं कैसे जानूंगी ?"

" समय आने पर जान भी जाएंगे।बस अभी केवल बधाई दे दीजिए।"

यह पढ़कर दिव्या निराश हो गई। अगले ही पल वह सविता को कॉल करने लगी।

" दीदी ! क्या आपको मालूम है ,देव जी की सगाई हो रही है ?"

" अरे हां, मैं अभी तुम्हें कॉल करने वाली थी। तुम्हें भी आमंत्रण देती हूं। यह जिम्मेवारी मुझे ही मिला है।" यह सुनकर दिव्या रो पड़ी। वह धीरे-धीरे ही सुबक रही थी ,क्योंकि बगल के कमरे में उसके पिताजी अराम कर रहें थें। वह अपनी रुलाई उन्हें सुनाना नहीं चाहती थी।

"अरे दिव्या ! तुम रो क्यों रही हो ? यह तो तुम्हारे लिए खुशी की बात है !" सविता ने पूछा।

" खुशी की बात.... " दिव्या कुछ कहना ही चाह रही थी, तभी अगले ही पल उसके घर की डोर बेल बजने लगी।

" एक मिनट ! देखती हूं शायद दरवाजे पर कोई है।" दिव्या मुख्य द्वार खोलने के लिए आगे बढ़ गई। जैसे वह दरवाजा खोली, उसने  पीछे मुड़कर खड़े हुए देव जैसे कद-काठी वाले एक लड़की को को देखा।

दिव्या ने सोचा, देव यहां कैसे आएगा ? अभी तो कुछ देर पहले वह चैटिंग कर रहा था। जरूर इसी लड़के ने डोरबेल बजाया है।'

" हेलो लिसिन मिस्टर ! " परंतु वह लड़का सुना नहीं।

" हेल्लो.... सुनिए !" परन्तु अब भी कोई प्रतिक्रिया नहीं थी।

" ठीक है मैं जाती हूं फिर से दरवाजा बंद करने, तुम अपने कान में तेल डालकर खड़े रहो।" दिव्या घर के अंदर जाकर दरवाजा बंद ही करने वाली थी, कि वह लड़का दरवाजे की ओर मुड़ा।

दिव्या ने देखा यह देव था जो खड़ा होकर मुस्करा रहा था ‌। दिव्या के हाथ रूक गएं। देव आगे बढ़कर दिव्या के पास आया और उसकी आंखों में देखने लगा। दिव्या की आंखें डबडबा गईं। अगले ही पल दोनों ने एक-दूसरे को गले लगा लिया।

दिव्या देव के पीठ पर अपने दाएं हाथ के मुक्के से प्रहार करती हुई कह रही थी," इन दिनों में बहुत परेशान किया है आपने ! मैं आपसे बहुत नाराज हूं।"

" अब तो तुम्हें मुझसे और नाराज होना पड़ेगा क्योंकि मेरी सगाई हो रही है।" देव के ऐसा कहते ही दिव्या से अलग होकर गुस्से में उसे देखने लगी।

" हां, सच कह रहा हूं। बहुत विचारने के बाद तुम्हारी और बात भी मैंने पापा को बता दिया। क्योंकि वे मुझसे यह पूछ रहे थे कि मैंने अपना फोन बंद करके अपनी मां का फोन क्यों ले रखा है ?' फिर मैंने उन्हें साफ-साफ कह दिया अब मैं कॉलेज तभी जाऊंगा जब वे अपनी बहू से मिलने चलेंगे। तुम क्या सोचती हो, तुम मना कर दोगी तो मैं पापा को तुम्हारे घर नहीं लाऊंगा ? आज सबको लेकर आया हूं, मम्मी-पापा, चाचाजी , सुरेश अंकल, प्रिया आंटी, सविता और तुम्हारे सामने खड़ा मैं पूरे परिवार को लेकर आया हूं। रविवार का दिन है चाचा जी और भैया जी भी घर पर होंगे अब आज तुम्हारा कोई बहाना नहीं चलेगा। " देव की बात सुनकर दिव्या एक बार फिर उसके गले लग गई तभी गाड़ी की हॉर्न सुनाई दिया। देव दिव्या से अलग हुआ।

" अरे ! लगता है सब लोग आ गएं हैं।" देव के घर के सभी सदस्य पहुंच चुके थे। तभी दिव्या का भाई रमेश अपने साथ सामान के कुछ पैकेट से लेकर घर आ गया।

दिव्या के पिता समीर जोशी ने कहा, " बिटिया ! मुझे तो इस बात की जानकारी कल ही हो गई थी। परंतु देव बाबू ने तुम्हें बताने से मना किया था। कह रहे थे एक बार वे तुम्हारी सगाई की बात जानकर बहुत दु:खी हुए थे आज तुम्हें भी ...."

कुछ ही पल में दिव्या के घर में खुशियां ही खुशियां थी। देव और दिव्य खुश थे। दिव्या की लंबे इंतजार की घड़ी खत्म हो गई थी जो कई दिनों से सोच रही थी 'काश ! वह लौट आता।' अब वह लौट आया था।


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