पशु-पक्षियों की अलौकिक दुनिया
पशु-पक्षियों की अलौकिक दुनिया
प्रस्तुत लेख गुरुदेव पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य जी की लिखित पुस्तक," जीव जंतु बोलते भी हैं और सोचते भी हैं "से लिया गया है। जानें जीव जंतु के रहस्य को।

शरीर बुद्धि भावनाएं उनकी अभिव्यक्ति और भाषा की दृष्टि से मनुष्य का अन्य प्राणियों की तुलना में बढ़ा- चढ़ा होना मात्र यह एक भ्रम है। यह आभास जरूर होता है कि वह अन्य प्राणियों से बढ़ा चढ़ा और उन्नत है। संभव है यह भ्रम अन्य प्राणियों में भी हो। जिस आधार पर मनुष्य की श्रेष्ठता सिद्ध की जाती है वह तो झूठ ही है, परंतु उसका अर्थ यह नहीं कि वस्तुतः मनुष्य अन्य प्राणियों के समान ही है ।निसंदेह मनुष्य अन्य प्राणियों की तुलना में श्रेष्ठ और परमात्मा का सबसे बड़ा पुत्र है क्योंकि मनुष्य जीवन एक अवसर है। जिसमें वह सिद्ध किया जा सकता है कि परमात्मा ने हमें जो वस्तुएं जो विशेषताएं, और जो अधिकार दिए हैं हम उसका सदुपयोग कर सकते हैं। और अपनी प्रामाणिकता कर्तव्य परायणता के आधार पर और अधिक ऊंची स्थिति को प्राप्त करने योग सिद्ध कर सकते हैं।
क्या सचमुच मनुष्य सर्वश्रेष्ठ प्राणी है ?
मनुष्य के द्वारा अपने सर्वश्रेष्ठता के ढेरों प्रमाणों एवं अनेक तथ्यों के आधार पर चाहे जिस ढंग से सिद्ध कर लिया जाए, पर इसमें कोई तथ्य है भी अथवा नहीं भी यह भी विचार किया जाना चाहिए।
मनुष्य की सर्वश्रेष्ठता का आधार यही तो माना जाता है कि उसमें बुद्धि और विवेक की तत्त्व विशेष है ।उसमें कर्तव्यपरायणता, परोपकार, प्रेम सहयोग सहानुभूति सह्रदयता तथा संवेदनशीलता के गुण पाए जाते हैं, किंतु इस आधार पर वह सर्वश्रेष्ठ तभी माना जा सकता है जब सृष्टि के अन्य प्राणियों में इन गुणों का सर्वथा अभाव हो और मनुष्य इन गुणों को पूर्ण रूप से क्रियात्मक रूप से प्रतिपादन करें ।यदि इन गुणों का अस्तित्व प्राणियों में भी पाया जाता है तो इसका प्रतिपादन भी करते हैं तो फिर मनुष्य को सृष्टि का सर्वश्रेष्ठ प्राणी मानने का अहंकार का क्या अर्थ रह जाता है।
शेर, हाथी, गैंडा चिता ,बैल, भैंस ,गिद्ध शुतुरमुर्ग ,मगर, मत्स्य आदि न जाने ऐसे कितने थलचर ,नभचर और जलचर जीव परमात्मा की सृष्टि में पाए जाते हैं ,जो मनुष्य से सैकड़ों गुना अधिक शक्ति रखते हैं। मछली जल में जीवन भर कर सकती हैं । पक्षी दिन-दिन भर आकाश में उड़ते रहते हैं। क्या मनुष्य इस विषय में उसकी तुलना कर सकता है ?परिश्रम शीलता के संदर्भ में हाथी ,घोड़े, बैल ,भैंस आदि उपयोगी घरेलू जानवर कितना परिश्रम करते हैं, और उपयोगी सिद्ध होते हैं उतना शायद मनुष्य नहीं हो सकता,
जबकि इन पशुओं तथा मनुष्य के भोजन में बहुत बड़ा अंतर है।
पशु पक्षियों के समान स्वावलंबी तथा शिल्पी तो मनुष्य हो ही नहीं सकता, पशु पक्षी अपने जीवन, तथा जीवन उपयोगी सामग्री के लिए किसी पर भी निर्भर नहीं रहते, वे जंगलों, पर्वतों ,गुफाओं और पानी में अपना आहार खोज लेते हैं। उन्हें ना तो किसी पथप्रदर्शक की आवश्यकता होती है ,न ही किसी संकेतक की, पशु- पक्षी स्वयं एक दूसरे पर भी इस संबंध में निर्भर नहीं रहते। अपनी रक्षा तथा आरोग्यता के उपाय भी बिना किसी से पूछे ही कर लिया करते हैं ।जीवन के किसी भी क्षेत्र में पशु- पक्षियों जैसा स्वालंबन मनुष्य में कहां पाया जाता है? यहां तो मनुष्य एक दूसरे पर इतना निर्भर है, कि यदि वे एक दूसरे की सहायता न करते तो जीना ही कठिन हो जाए। विलक्षण बौद्धिक क्षमता है आदि काल से ही वैज्ञानिकों और जीव शास्त्रियों के लिए एक प्रकार की चुनौती रही है, बुद्धि, ज्ञान, चिंतन की क्षमता -यही वह तत्व है जो मृत और जीवित का अंतर स्पष्ट करते हैं, अथवा जीवन को बौद्धिक क्षमता में केंद्रित कर वैज्ञानिक प्रयोगों की प्रणाली अपनाई गई। इस दिशा में मस्तिष्क की जटिल संरचना एक बहुत बड़ी बाधा है, इस कारण रहस्य अभी तक रहस्य ही बने हुए हैं यद्यपि अब तक जितना भी जाना जा सका है ,उसमें वैज्ञानिक यह अनुभव करने लगे हैं बुद्धि एक सापेक्ष तत्व है अर्थात सृष्टि के किसी कोने में मस्ती मस्ती काम कर रहा हो तो आश्चर्य नहीं जीवन जगत उसी से जितना पा लेता है उतना ही बुद्धिमान होने का गौरव अनुभव करता है।
वैज्ञानिक इस बात को अत्याधिक गंभीरता से विचार ने लगे हैं कि मानव मस्तिष्क और उसकी मूलभूत चेतना का समग्र इतिहास अपने इस कम विकसित समझे जाने वाले जीवो की मस्तिष्क की प्रक्रियाओं से ही माना जा सकता है इसके लिए आप तरह-तरह के प्रयोग प्रारंभ किए गए हैं।
मनुष्य की तरह ही देखा गया है कि कई बार एक कुत्ता अधिक बुद्धिमान पाया गया ,जबकि उसी जाति के अन्य कुत्ते निरे बुद्धू निकले। चूजें अपने मां-बाप मुर्गे की अपेक्षा अधिक बुद्धि -चातुर्य का परिचय देते हैं। डॉल्फिन मछलियों की बुद्धिमता की तो कहानियां भी गढ़ी गई है। बुद्धि परीक्षा के लिए कोई बहुत संवेदनशील यंत्र तो अभी तक नहीं गढ़े जा सके हैं। किंतु स्वादिष्ट भोजन की पहचा,न जटिल परिस्थितियों के हल आदि के लिए जो विभिन्न प्रयोग किए गए, उनमें पहले दृष्टि में स्पष्ट हो गया कि बंदर, डॉल्फिन ,काली की अपेक्षा लाल लोमड़ी अधिक चतुर होते हैं ।नीलकंठ, संघकाक और कौवे की बुद्धि स्वार्थ प्रेरित जैसी होती है -विवेक जनक नहीं। रूस के प्रसिद्ध वैज्ञानिक प्रोफ़ेसर लियोनिद क्रुशिन्स्का ने अपने विभिन्न प्रयोगों से सिद्ध किया कि जिस तरह चिंतन से मानवीय शक्ति का ह्रास होता है ,पशु पक्षियों में भी आ प्रक्रिया यथावत होती है इनमें कुछ तो डर जाते हैं, कुछ बीमार पड़ जाते हैं, संभवत इन्हीं कारणों से जीवन की गहराइयों में नहीं जाकर प्राकृतिक प्रेरणा से सामान्य जीवन यापन और आमोद प्रमोद की क्रियाकलापों तक ही सीमित रह जाते हैं।
प्रोफ़ेसर के अनुसार तर्क ,विवेक और प्राकृतिक हलचलों के अनुरूप अपने को समायोजित करने की बुद्धि अन्य प्राणियों में भी अपना अस्तित्व बनाए हुए हैं, जबकि मनुष्य उसमें बुरी तरह जकड़ता जा रहा है। उसके अपने कारनामे चाहे एक विशाल औद्योगिक प्रगति हो या अनु आयुध हो का निर्माण उसके अपने ही विनाश के साधन बनते जा रहे हैं।
पेट ही मनुष्य का साध्य हो तो उससे अच्छा करकट है जो रहता तो समुद्र में है किंतु आज नारियल वृक्ष पर चढ़कर फल तोड़ लाता है।
जीवों की बुद्धिमता अपने विकसित रूप में तब अभिव्यक्त होती है,जब उसके सामने कोई संकट आ जाता है। और आत्मरक्षा की आवश्यकता पड़ती है। हिरण ,खरगोश, चीते, कंगारू बहुत तेज दौड़ते हैं ,किंतु जब इन्हें अपने सामने कोई संकट आता दिखाई देता है, तब वह जानते हैं कि उसी स्थिति में सामान्य गति से बचा नहीं जा सकता अतएव वे अपनी गति को अत्यधिक तीव्र कर देते हैं। चीता उसी स्थिति में 100 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से दौड़ जाता है। कंगारू उसी स्थिति में हवा में जोरदार कुलांचे लगाता है। जिससे उसकी मध्यम गति अपनी प्रखरता तक पहुंच जाती है। यदि भागने में भी जानना बचे तो खड़े होकर अपना शक्ति प्रदर्शन करते हैं, बिल्ली अपने बाल फुलाकर तथा गुर्राकर कर यह प्रदर्शित करती है कि उसकी शक्ति कम नहीं ।कुछ जानवर दांत दिखा कर शत्रु को डराते हैं। तो कुछ घुड़कर, कुछ पंजों से मिट्टी खोदकर, इस बात के लिए भी तैयार हो जाते हैं कि ,आओ अब नहीं मानते ,तो दो-दो हाथ कर ही लिए जाए। साहील तो मुंह विपरीत दिशा में करके अपने नुकीले तेज कांटे इस तरह फर्राकर फैला देती है, कि शत्रु को लौटते ही बनता है। अमेरिका में पाई जाने वाली स्कंक नामक गिलहरी अपने शरीर से एक विलक्षण दुर्गंध निकालकर शत्रु को भगा देती है। ऑस्ट्रेलिया के कंगारू रैट तो सचमुच ही आंखों में धूल झोंकना जो कि बुद्धिमता का मुहावरा है ,जानता है ।कई बार सांप का उससे मुकाबला हो जाता है, तो यह अपनी पिछली टांगों से इतनी तेजी से धूल झड़ता है कि कई बार सर्प अंधा तक हो जाता है, उसे अपनी जान बचाकर भागते ही बनता है।
कछुआ, कर्कट तथा अमेरिका में पाए जाने वाले पैंगोलिन आर्माडिलो शत्रु- आक्रमण के समय अपनी सुरक्षा कवच में दुबक कर अपनी रक्षा करते हैं। तो बारहसिंघा युद्ध में दो-दो हाथ की नीति अपनाकर अपने पैने सींगों से शत्रु को पराजित कर देता है।
कहते हैं कि भालू मृत व्यक्ति पर आक्रमण नहीं करते, इसकी पहचान के लिए नथुनों के पास मुंह ले जाकर यह देखते हैं कि अभी सांस चल रही है या नहीं ।चतुर लोग अपनी सांस रोक कर उसे चकमा दे जाते हैं यह बात कहां तक सच है कहा नहीं जा सकता। किंतु ओप्पोसम सचमुच ही विलक्षण बुद्धि और धैर्य का प्राणी है ,वह संकट के समय अपनी आंखें पलट कर जीभ लटका कर मृत्यु होने का ऐसा कुशल अभिनय करता है, जैसे 'सिनेमा के नायक' इसी तरह अपनी सूझबूझ से अपने को मृत्यु के मुख से बचा लेता है।
चींटियों की बुद्धिमता और उनकी संगठन शक्ति की तो मिसाले दी जाती है, कई ऐसे पशु पक्षी होते हैं जो अपने जोड़े के बिरह में प्राण तक त्याग देते हैं।
कई 10 किलोमीटर दूर तक अपनी केंद्र द्वारा अपने संदेश पहुंचा देते हैं।