Ram Binod Kumar 'Sanatan Bharat'

Inspirational

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Ram Binod Kumar 'Sanatan Bharat'

Inspirational

मेरी बेटी अवनी

मेरी बेटी अवनी

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जून का उमस भरा हुआ महीना, मैं बस से उतर कर जल्दी घर पहुंचना चाहता था। पर जैसे ही आइसक्रीम कॉर्नर के सामने से गुजरा मैं ठिठक गया। मुझे याद आया मैं कुछ भूल रहा हूं।

अरे हां ! आइसक्रीम भी तो लेनी है ।मैं जल्दी से आइसक्रीम कॉर्नर में पहुंचना चाहता था । पर मेरे हाथ में दरवाजे की पट्टी की ठोकर लगी और मेरी नींद खुल गई

अरे यह ! क्या आज मैं फिर सपना ही देखा रहा हूं।यह कार्य हमारे दिनचर्या का अंग था। इसीलिए मैं कभी -कभी सपने में भी आइसक्रीम खरीदने चला जाता था।इस छोटे से स्वप्न के बाद भी मैं ताजगी महसूस कर रहा था। मैं उठ बैठा आंखें बंद कर गहरी सांस ली।तभी मेरी स्मृति लौटी, आज तो नये "बाल आश्रय गृह " के भवन का उद्घाटन है।कल भी मैं बाल आश्रय गृह गया था।बच्चें " अवनी " एवं आश्रय गृह के काउंसिलरों से मिला था।

मेरी बेटी अवनी ने बच्चों की सेवा, उनका सर्वांगीण विकास, भटके हुए बच्चों को घर तक पहुंचाना ,उनकी शिक्षा -संस्कार चरित्र निर्माण, प्रेरणा और विश्वास से उनके मन को समझ कर उनका मार्गदर्शन आदि सारे कार्य खुद ही बड़े लगन से करती है।काउंसिलरों से भी हमारी बातें हुई।

एक ने बताया -

" जी ! आज बच्चों में घर से भागने की समस्या बहुत आम हो गई है। जहां कहीं भी हमें अनाथ -बेसहारा, भटके हुए बच्चें मिलते हैं । हम सब विश्वास में लेकर उन्हें घर पहुंचाने या फिर जो घर नहीं जाना चाहे उन्हें अपने पास शिक्षा -दीक्षा देने की सुविधा बता कर, और उन्हें गलत हाथों में पड़ जाने पर, इस दुखद और बुरे जिंदगी की बातें बता कर ,हम इन्हें बाल आश्रय गृह ले आते हैं। यहां इनका स्वास्थ्य परीक्षण करते हैं ! पुण: इनकी साफ- सफाई के साथ नए कपड़े दिए जाते हैं।

इसके बाद हम लोग इन्हें समझाते -बुझाते हैं । अपने विश्वास में लेते हैं ।और इनकी बैक हिस्ट्री स्टडी की जाती है । कुछ बड़े बच्चे जो समझदार होते हैं। फिर जो जानबूझ कर भी कुछ बताना नहीं चाहते हैं। पर कुछ बच्चें सारी बातें बताते हैं । हम उन्हें विश्वास में लेते हैं। घर से भागने के दुष्परिणामों को बताते हैं। और घर में रहने के फायदे को बताते हैं ।उन्हें परिवार से जुड़ने का लालच देते हैं । और तरह हमारा लक्ष्य यही होता है ,कि हम उन बच्चों को तीन माह के अंदर उनके घर से जोड़ दें ।उनके माता-पिता को भी हम विशेष राय देते हैं। बच्चों को यहां प्यार से रखा जाता है। इनके मनोरंजन सारी सुख सुविधाओं का ध्यान रखते हैं । जिससे बच्चे यहां जुड़े रहे और इनका मन यहां लगता रहे । हम सभी इनको मां-बाप की तरह प्यार देते हैं।

कुछ बच्चें जिन के बारे में हमें कोई जानकारी नहीं मिलती है। यह बच्चे हमारे परिवार के सदस्य बन जाते हैं । अवनी दीदी जी इन्हें अपना नाम देती हैं। बच्चों का सर्वांगीण विकास हो, हम सभी उसके लिए हर कदम उठाते हैं। इन्हें भावनात्मक और मानसिक रूप से एक स्वस्थ नागरिक निर्माण अपना लक्ष्य समझते हैं।ऐसा लगता है मानो अवनी दीदी अपना जी- जान लगा देती हैं । सभी बच्चों का दर्द उनके अपने दर्द के समान होता है ।उनका पूरा दिन-

 रात बच्चों के बीच बीत जाता है।

मैं बहुत खुश हूं । मुझे अपनी बेटी के कार्य पर गर्व है। मैं अपने विचारों को उसमें फलते- फूलते हुए देखकर अपार आनंद का अनुभव करता हूंमैं वह दिन कभी नहीं भूल सकता जिस दिन ईश्वर के उपहार स्वरूप मुझे मेरी बेटी अवनी मिली। मैं जैसे ही आइसक्रीम कॉर्नर से हो कर गुजरने ही वाला था मेरी नजर एक फूल सी बच्ची पर पड़ी। उदास चेहरा ,सूनी आंखें, मैं कुछ सोचता , इतने में मेरी नजर उस पर ठहर गई। वह मुझे अपलक देखे जा रही थी। मानो अपनी आंखों से ही कोई सवाल कर रही हो। मेरे कदम उसके पास बढ़ते चले गए।

मैंने उसे पूछा "बेटा क्या बात है ? आप यहां क्यों खड़े हो ?"

तीन साल की वह मासूम बच्ची चाह भी कर कुछ बोल नहीं पा रही थी ।

 " प् पापा !"

इतनी ही वह केवल बोल पाई । बस फूट -फूट कर रोने लगी।मैंने उसे चुप कराने की कोशिश की , उसके आंसू पोंछा , फिर जब वह शांत हुई।

मैंने प्यार से पूछा "बेटा! कहां हैं आपके पापा ?"

उसने उंगली से सड़क के उस पार इशारा किया।

" उ उ उधर ।"

"  आपके पापा कब आएंगे?"

"न नहीं आएंगे ।" पुण: सिसकारियां भरने लगी।

"आप रोओ मत । मैं आपको आपके पापा के पास ले चलूंगा। बस आप चुप हो जाइए। आप पापा के पास चलेंगे ना ?"

 " नहीं ! वह मुझे छोल कर चले गए।"रोने लगी।

 "नहीं बेटा ! वह आपको छोड़कर नहीं जाएंगे । आपकी उनकी प्यारी बेटी हो।"

पर वह सिसकती रही, असहमति में अपना सिर हिलाया था। मैं मजबूर उसे अपनी गोद में उठा लिया। मेरे गोद में आते ही वह चुप हो गई। मैं कुछ पल सोचता रहा फिर उसे अपने घर ले आया।

अगले दिन मैं उसे लेकर थाने गया। वह वहां पुलिस वालों को देखकर डर गई रोने लगी। मैंने उसे समझाया। बेटा ! यह अच्छे वाले अंकल है। केवल आपका फोटो खिचेंगे। फिर वह चुप हो गई। मैंने वहां उसकी गुमशुदगी की रिपोर्ट लिखा दी।

इंस्पेक्टर ने मुझे बताया-

" आपको धन्यवाद ! आपने एक जिम्मेदार नागरिक का अच्छी तरह कर्तव्य निभाया है। अगर आप इसे यहां नहीं लाते तो संभव है ,यह गलत हाथों में पड़ जाती है। आप चाहे तो बच्ची को यहां छोड़ सकते हैं। मैं इसे बाल आश्रम भेज दूंगा।" मैं कुछ बोल न सका।

तो इंस्पेक्टर पुण: बोला - "ठीक है यदि आप इसे अभी अपने साथ ले जाना चाहते हैं ,कोई बात नहीं पर जब उसके माता-पिता आएंगे तो आपको उन्हें सौंपना होगा।"कई साल बीत गए । इसी बीच मैं थाने में कई बार मिला की इसके माता-पिता की कोई खोज खबर है या नहीं।

पर वहां मुझे बताया जाता " लड़की के मां-बाप का कोई खोज खबर नहीं है।"आप चाहे तो उसे अपने पास रख सकते हैं ,या फिर मुझे सौंप दें। हम उसे अनाथ आश्रम भेज देंगे।

मैं वापस आ जाता। उसका नाम पूछने पर वह ' आनी' बोलती । मैं कुछ समझ नहीं पाता मैंने उसका नाम ' अवनी ' रखा है। आज यह बड़ी होकर समाज में एक आदर्श प्रस्तुत कर रही है और मेरा नाम भी रौशन कर रही है।वह लड़की जो आइसक्रीम पार्लर पर मुझे मिली थी इसने मेरी जिंदगी बदल दी।


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