मेरी असफलता बनी मेरी सफलता
मेरी असफलता बनी मेरी सफलता
उम्र की अपरिपक्वता और चढ़ती जवानी के साथ तो हर किसी के कदम बहक जाते है। इस उम्र में विपरीत लिंग के प्रति दिल में जो प्यार और आकर्षण रहता है। वो किसी और उम्र में नहीं दिखता। अपने प्यार को पाने की चाहत। उसके लिये कुछ भी कर गुजरने का जुनून। इसी उम्र में देखने को मिलता है।
ये बात 5 साल पुरानी है जब मैं 16-17 के दौर से गुजर रहा था। ये एक एसी उम्र होती है जब दिल और दिमाग, दोनों ही एक दूसरे की नहीं सुनते है। दिल कही और भागता है दिमाग कही और । इस समय में ज्यादातर नौजवान इस समस्या में रहते है की वो दिल की सुने या दिमाग की । मेरे साथ भी ऐसा ही हो रहा था। मेरा दिल कहीं भाग रहा था और दिमाग कही। और सच में मैं कभी फैसला कर ही नहीं पाया की मैं दिल की सुनूँ या दिमाग की।
वैसे तो जिन्दगी जीने के लिये दिल और दिमाग दोनों की जरूरत होती है। मगर कहते है की दिमाग जो फैसले लेता है वो सोच समझ के लेता है जबकी दिल तो बस भावनाओं में बह जाता है। फिर भी दिल की बात सुनने में अच्छा सा लगता है। इसी गलत सही की कशमकश में हम तय कर ही नहीं पाते की जिन्दगी के अहम फैसले दिल से लिये जाये या दिमाग से ...
मेरा दिल भी उसी भावनाओं में बह गया था। वो पहली नजर का प्यार। उसकी एक झलक की चाहत।
पहली बार उसे मैंने अपने दोस्त के घर देखा था। पहले मैं अपने दोस्त के घर सिर्फ तब ही जाता था जब कोई जरूरी काम हो। लेकिन अब तो रोज का ही आना जाना हो गया था। शायद ये उसी के कारण था। दोस्त से मिलना तो एक बहाना था असल में मैं तो उसे देखने जाता था।
वो मेरे दोस्त की पड़ोसी थी। और ज्यादातर वो मेरे दोस्त के घर ही रहती थी। मैं जब भी जाता वो मुझे वही मिलती मेरे दोस्त के घर। मैं उसे छुप छुप के देखता था। शायद उसे भी मैं पसंद था। क्योंकि वो भी मुझे छुप छुप के देखती थी।
एक दिन हमारी नजरे टकरा गई। मैंने उसे हल्की सी मुस्कान दी और उसने शर्म से अपनी नजरे झुका ली और खिल खिला के हँसते हुए भाग गई । अब तो मुझे यकीन हो गया था की वो भी मुझे पसंद करती है। मगर मुझसे अब ये लुक्का छीप्पी का खेल और नहीं खेला जा रहा था। मैं उससे बात करने के बहाने खोजने लगा।
तभी एक दिन उसने खुद आकर मुझसे बात की और अपना फोन नम्बर दिया। अब तो मेरी खुशी का ठिकाना ही ना रहा। मेरा दिल प्यार के समुंदर में और गहराता चला गया।
हमारा मिलना तो ज्यादा नहीं हो पता था । पर हम घंटों फोन पर बाते करते थे। एक दूसरे को छत से निहारा करते थे। और आंखों ही आंखों में सारी बात कर लेते थे।
तभी एक दिन मेरे दोस्त को हमारे इस प्यार के बारे में पता चल गया। शायद मेरे दोस्त को हमारा रिश्ता पसंद ना था। इसलिये उसने हम दोनों को बहुत सुनाया और इसी चक्कर में मेरी उससे बहुत कहासुनी हो गई।
मेरा दोस्त चाहता था मैं उस लड़की से अब कभी बात ना करूँ। पर कैसे?
जिसके लिये मैंने सब कुछ छोड़ दिया। उससे बात करने के लिये, उसकी एक झलक पाने के लिये मैं सारा दिन अपने दोस्त के घर जाने का बहाना खोजता था। स्कूल ,कोचिंग, पढ़ाई सब कुछ छोड़ दिया था मैंने । सिर्फ उसके लिये।
और अब और अब उसे छोड़ दूँ मैं।
पर कैसे?
नहीं , नहीं मुझसे नहीं हो पायेगा ये। आदत सी हो गई थी उसकी। सिर्फ मेरी चाहत नहीं, वो मुझे जरूरत सी हो गई थी। उसके बिना कुछ अच्छा ही नहीं लगता था। ऐसा लगता था जैसे
किसी ने फूलों से रंग चुरा लिया हो।
कलियों से खिलना चुरा लिया हो।
चांद से चांदनी चुरा ली हो।
दोस्त के मना करने के बाद से तो जैसे ये प्यार और गहरा हो गया था। हम अभी भी फोन पर बाते करते थे। एक दूसरे को छत से देखा करते थे। मिलना तो अब उतना नहीं हो पाता था। पर फिर भी इस प्यार में कोई कमी ना आई थी।
मगर नियति को कुछ और ही मंजूर था शायद।
एक दिन मुझे कहीं से पता चला की जिस लड़की को मैं चाहता हूँ वो किसी और को चाहती है जो रिश्ते में उसका भाई लगता है। और वो लड़का भी उसे अपनी बहन मानता है।
मेरा दिल तो जैसे शीशे की तरह टूट के चूर चूर हो गया।
मैं तो समझ ही नहीं पा रहा था की ये सपना था या हकीकत।
मैं अब तक जिसे प्यार समझता था वो एक धोखा था।
मुझे बहुत दुख हुआ क्योंकि टूटे दिल के साथ जीना मुश्किल होता है। मगर क्या कर सकते थे।
फिर कुछ दिन बाद मुझे पता चला की उसका एक ही नहीं बहुत से लड़कों के साथ affair है।
छी: इतनी गंदी लड़की।
पहले भाई के साथ प्यार और अब और भी लड़के। असल में ऐसी ही लड़कियां होती है जो समाज में गंदगी फैलती है। जिनकी वजह से दूसरी लड़कियां भी बदनाम होती है। और समाज मान लेता है की पूरी लड़की जात ही धोखेबाज होती है।
कोई भाई बहन के पवित्र रिश्ते को कैसे गंदा कर सकता है? कैसे कोई इतनी छोटी सोच का हो सकता है।
समाज में ऐसे लोगों की वजह से ही किसी रिश्ते की अहमियत नहीं रह जाती। और ऐसे लोग जहां भी जाते है बस गन्दगी फैलते है रिश्तों को गंदा करते है।
खैर, जो होना था हो गया। अब जब भी अतीत में पलट कर देखता हूँ। तो लगता है की पाँच साल तक मैं एक एसी राह पर चल रहा था जिसकी कोई मंजिल ही नहीं थी।
उस लड़की को शायद लोगों की भावनाओं से खेलने में मजा आता था। पर मैंने सच में उससे मोहब्बत की थी। दिल से चाहता था मैं उसे। खुद से ज्यादा उस पर विश्वास था मुझे। लेकिन मुझे मिला क्या ? विश्वासघात।
आज भी मैं किसी पर यकीन नहीं कर पाता।
आज भी जब मैं अपने कामयाब दोस्तों को देखता हूँ तो लगता है मैंने व्यर्थ ही समय बर्बाद कर दिया, वो भी एक लड़की के पीछे। अगर मैं भी अपने दोस्तों की तरह पहले करियर पर ध्यान देता तो आज मैं भी कामयाब होता। और उनके जैसे मेरी भी एक ख्याल रखने वाली पत्नी होती।
लेकिन अब मुझे इस पर कोई अफसोस नहीं है। क्योंकि मैंने जिन्दगी में एक ठोकर खा के बहुत कुछ सीखा है। हालाँकि मैं बीते हुए पाँच सालो को वापस नहीं ला सकता।
लेकिन आने वाले समय में बहुत कुछ कर सकता हूँ।
जैसे एक रबर को जितना पीछे खिचा जाये वो उतनी ही तेजी से बहुत आगे जाता है। मैं वही रबर हूँ।
जीवन की हर गलती इंसान को कुछ ना कुछ सिखा जाती है ।जिससे हम दुबारा कोई गलती ना करे।
ये सही है की हमें गलतियों से सिख लेनी चाहिए। मगर इसका ये मतलब नहीं की हम गलतियां करते जाये। और कोई पुछे तो कहे की हम तो गलतियों से सिख रहे है।
आज के नौजवानों से मै यही कहना चाहूँगा की मेरी इस कहानी पर गौर करना। और अपने जीवन में एसी गलती कभी मत करना जैसी मैंने की। क्योंकि जिन्दगी ने मुझे तो संवरने का, आगे बढ़ने का दुसरा मौका दे दिया । पर शायद हर बार, हर किसी के साथ ऐसा ना हो।
कभी हंसती है।
कभी रुलती है।
जिन्दगी हर रोज एक नया सबक सिखाती है।