Divyanjli Verma

Crime Inspirational Thriller

4.0  

Divyanjli Verma

Crime Inspirational Thriller

चीखती दीवार

चीखती दीवार

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कहने को तो आज का ज़माना काफी आधुनिक है। हर इंसान पढ़ा लिखा और समझदार है। तो इस बात की कम ही गुंजाइश है कि कोई अंधविश्वास जैसी बातों में यकीन करे। लेकिन कभी कभी ऐसा होता है कि इंसान लालच में अंधा होके सब कुछ भूल जाता है और फिर उस लालच की खातिर वो ऐसे कुकृत्य कर बैठता है जिससे उसके पास पछतावे के सिवा और कुछ भी नहीं बचता है। इससे भी ज्यादा दयनीय स्थिति तब होती है जब वो इंसान भी पछतावा करने के लिए नहीं बचता है। फिर उसकी तड़पती रुह हमेशा हमेशा के लिए तड़पती रहती है और पछतावे की आग में जलती रहती है।

  कुछ एसी ही घटना घटी थी मेहरपुर से 20 किलोमीटर दूर एक छोटे से शहर के एक घर मे। एक हँसता खेलता खुशहाल परिवार देखते ही देखते मौत के मुंह में समा गया। बड़े तो मारे ही गए। उनके साथ साथ दूध मुंहा बच्चे पर भी किसी ने रहम नहीं किया। आज भी उस घर की दीवारों से दर्द भरी खींचने की आवाजें आती है। लेकिन ये सब हुआ कैसे? ये सब हुआ एक तांत्रिक की सिद्धि पाने और शक्तिशाली होने की गंदी चाहत के कारण। जिसके लिए उसे 12 साल से कम उम्र के 20 लड़कों की बलि देना था। उसने अब तक 14 लड़कों की बलि दे दी थी। अब केवल 6 बलि और बची थी। और उसके बाद उसे महान सिद्धि मिल जाती। जिससे कोई उसे मार न पाता।

    लेकिन ये काम इतना आसान ना था। तभी तो तांत्रिक भैरो सिंह को 6 साल लग गए थे। और इस 6 साल में वो केवल 14 बलि ही दे पाया था। और अब उसे 6 और बच्चों की तलाश थी। मगर इस बार वो एसे घर की तलाश में था जहां उसे 6 बच्चे एक साथ ही मिल जाए। और वो 6 बच्चे 6 लड़के हो। इसी तलाश में घूमते घूमते तांत्रिक भैरो सिंह आ पहुँचा मेहरपुर।

  वहां आके उसकी मुलाकात हुई चन्द्रप्रकाश से। चन्द्रप्रकाश जो देखने से ही काफी परेशान लग रहा था। तांत्रिक भैरो सिंह ने उसे देखते ही जान लिया था कि वो बहुत परेशान है। तो तांत्रिक भैरो सिंह ने उसकी मदद करने की सोची। जिससे उसका रहने का और खाने का इंतजाम भी हो जाता और चंद्रप्रकाश की समस्या का समाधान भी।

  हर साल की तरह इस साल भी मेहरपुर में बहुत बड़ा मेला लगा था ।दूर दूर से लोग इस मेले को देखने आये थे। इसी मेले में कुछ पहुंचे हुए बाबा और पंडित भी आये थे ।जो लोगों को भविष्य बता के और उनकी समस्या का समाधान बता के अच्छी खासी कमाई करते थे। चंद्रप्रकाश भी अपनी समस्या के समाधान के लिए यहाँ आया हुआ था। चंद्रप्रकाश को एक बेटा चाहिए था। बेटे की चाहत में उसकी 4 लड़कियां हो चुकी थी। लेकिन इस बार वो चाहता था कि उसकी पत्नी बेटे को ही जन्म दे। इसके लिए उसने एक बाबा से उपाय पूछा। तो उस बाबा ने चंद्रप्रकाश को कुछ भभूत उठा के दी और बोला कि इसे अपनी अमावस की रात को अपनी पत्नी को खिला देना। इस बार उसे अवश्य पुत्र ही होगा। बेचारा चंद्रप्रकाश भी बेटे की लालच में सबकुछ करने को तैयार था। उसने बाबा की बात से खुश हो के उन्हें 5000 रुपये दे दिए।

  

     तांत्रिक भैरो सिंह तो ये सब देख ही रहा था। जब चंद्रप्रकाश जाने लगा तो तांत्रिक भैरो सिंह उसके पीछे हो लिया। और मौका देख के तांत्रिक भैरो सिंह ने उससे कहा, वो बाबा तुम्हें बेवक़ूफ़ बना रहा था। असल में वो कोई बाबा नहीं बल्कि एक व्यापारी है। जो अगरबत्तियों का व्यापार करता है और लोगों को भभूत देने के बहाने अपनी अगरबत्तियों को बेचता है। भैरो सिंह की बात सुनते ही चंद्रप्रकाश ने उसे गुस्से भरी नजरों से देखा। तो भैरो सिंह ने कहा, यकीन नहीं होता तो इसी बस की पीछे की सीट पर जाके देख लो।

  चंद्रप्रकाश ना जाने क्यों तांत्रिक भैरो सिंह की बात पर यकीन कर लेता है । और अपनी सीट से उठकर पीछे की तरफ जाके देखता है। तो वहां सच में वहीं बाबा नॉर्मल पैंट शर्ट पहने पैसे गिन रहा था और अपने साथी से कह रहा था कि आज तो अच्छा मुर्गा फंस गया। ठीक उसी वक्त चंद्रप्रकाश वहां पहुँचा था और उसने उस ढोंगी बाबा के मुंह से ये बात सुन ली। और चिल्ला के बोला धोखेबाज।

जब तक चंद्रप्रकाश कुछ कर पाता वो ढोंगी बाबा कूद के बस से नीचे उतर गया। और भाग गया। ठगा सा चंद्रप्रकाश दुबारा आके अपनी सीट पर बैठ गया। और अपनी बेवकूफी पर पछतावा करने लगा। तभी उसे याद आया कि जिस आदमियों ने उससे ये बात कही वो कौन था। वो अचानक से पीछे मूड के उसे देखने लगा। मगर तब तक भैरो सिंह वहां से जा चुका था। चंद्रप्रकाश ने बस में चारों तरफ उसे ढूंढा मगर भैरो सिंह कही नहीं दिखा तो चंद्रप्रकाश निराश होके अपनी सीट पर बैठ गया।

   तभी खिड़की से उसने भैरो सिंह को देखा। भैरो सिंह रोड के किनारे बैठा हुआ था। भैरो सिंह को देखते ही चंद्रप्रकाश ने बस रुकवाई और भागते हुए उसके पास गया। उस waqt भैरो सिंह ध्यान लगा के बैठा था । तो चंद्रप्रकाश उसके ध्यान से वापस आने की प्रतीक्षा कर रहा था। जैसे ही भैरो सिंह ध्यान से वापस आता है वो चंद्रप्रकाश से कहता है। बलि देनी होगी। 6 बलि माग रही है माता। पुत्र रत्न की प्राप्ति के लिए 6 बलि। पुत्र बहुत ही बलवान और बलशाली होगा। और राज करेगा । सारे दुख ,दर्द, पीड़ा खत्म हो जाएगी। पुत्र के साथ साथ अपार धन दौलत आएगी।

  पुत्र प्राप्ति की प्रबल इच्छा में अंधा चंद्रप्रकाश तुरंत ही भैरो सिंह की बातों पर यकीन कर लेता है। लेकिन उसके मन में एक दुविधा रहती है कि अगर इंसानी बच्चों की बलि दी गई तो उन दोनों को सजा हो सकती है। तब भैरो सिंह उसे बताता है कि एसा कुछ नहीं होगा । माता ने कहा है बलि के लिए तो माता खुद उनकी रक्षा करेगी। उनको किसी भी प्रकार से डरने की जरूरत नहीं है।

  तब चंद्रप्रकाश बहुत खुश होता है और बाबा से पूछता है कि उसे क्या क्या करना होगा । और बलि कब और कैसे देनी है। और बच्चे कहा से लाएगा। तब भैरो सिंह उसे कहता है कि कल आना ।कल मैं तुम्हें सब कुछ बता दूंगा। फिर चंद्रप्रकाश जाने लगता है ।लेकिन तभी उसे याद आता है कि कल बाबा उसे मिलेंगे कहा ये भी पूछ लूँ। तो वो भैरो सिंह से पूछता है कि बाबा कल आप कहा मिलेगे । तो भैरो सिंह जानबूझ के उससे झूट कहता है कि कल वो यहाँ से चला जाएगा और 2 साल बाद ही लौटेगा । ये सुनते ही चंद्रप्रकाश को लगता है कि अगर बाबा आज छले गए तो क्या पता 2 साल बाद भी ना लौटे । एक काम करता हूँ इन्हें अपने घर रोक लेता हूँ। और बलि के बाद ही जाने दूंगा। तो वो बाबा से जिद करके उन्हें अपने साथ ले जाता है। भैरो सिंह तो चाहता ही यही था।

   आज बड़े दिन बाद भैरो सिंह को बढ़िया खाना मिला था । चंद्रप्रकाश और उसकी पत्नी ने भैरो सिंह की आवभगत में कोई कमी नहीं की थी। भैरो सिंह भी बड़ा खुश था कि अब वो चंद्रप्रकाश की मदद से 6 बलि दे के सिद्धि पा लेगा। मगर ये 6 बालक आयेंगे कहा से । यही सोचते सोचते भैरो सिंह की आँख लग गई। अगले दिन कुछ बच्चों की आवाज सुनकर भैरो सिंह की आँख खुली तो उसने देखा कि कुछ छोटे छोटे लड़के क्रिकेट खेल रहे है। और उनकी उम्र भी लगभग 8 साल से 13 साल के बीच ही रही होगी। उन्हें देखते ही भैरो सिंह की आँखों में चमक आ गई।

  जब चंद्रप्रकाश ने उससे पूछा कि अब बताये बच्चे कहा से आयेगे तो भैरो सिंह ने उसे बताया कि बच्चे तो यही है। कहीं दूर जाने की जरूरत नहीं है। चंद्रप्रकाश को कुछ समझ नहीं आया तो उसने फिर पूछा कि यहा कहा है बच्चे। तब भैरो सिंह ने उसे उन बच्चों के बारे में बताया जो सुबह उसके घर के सामने खेल रहे थे। एक बार तो चंद्रप्रकाश ये सुनकर डर गया। क्योंकि ये बच्चे उसके आसपास के बच्चे थे। लेकिन फिर भैरो सिंह ने उसे विश्वास दिलाया कि डरने की कोई बात नहीं है। माता हमारी रक्षा करेगी। इसलिए तुम निश्चिंत रहकर काम करो। चंद्रप्रकाश भी पुत्र की लालच में आकर भैरो सिंह की बात मानने को राजी हो गया।

   और एक महीने बाद शुरू हुआ मौत का खेल। हर अमावस के दिन चंद्रप्रकाश एक बच्चे को बहला फुसला के अपने घर ले आता और खाने में नशीला पदार्थ मिला के उसे बेहोश कर देता। और फिर रात को भैरो सिंह की पूजा शुरू होती और 3 बजे के आसपास उस बच्चे की बलि दे दी जाती। एसा अब हर महीने होने लगा था। एक एक करके लोगों के बच्चे गायब हो रहे थे। अब तक 4 बच्चों की बलि दी जा चुकी थी। पूरे शहर में इन बच्चों के गायब होने के चर्चे थे।

   लेकिन किसी को कुछ नहीं पता चल पाया था कि ये बच्चे कहा गए। पुलिस को भी मुजरिम की तलाश थी। हर suspected इंसान से पूछताछ हो रही थी। मगर किसी का भी शक चंद्रप्रकाश पर नहीं गया। इसी बीच मौके का फायदा उठा के वो एक और बच्चे को अपने घर ले गया और उसकी भी बलि दे दी। क्योंकि बच्चे उसके आसपास के थे और उसे अच्छे से जानते थे तो किसी बच्चे को उसके साथ जाने में हिचक नहीं होती थी। और चंद्रप्रकाश इसी का फायदा उठा के अब तक 5 बच्चों को बहला फुसला के ला चुके था और भैरो सिंह उन बच्चों की बलि दे चुका था।

   अब बस एक और बच्चे की बलि देनी थी। फिर भैरो सिंह तमाम काली शक्तियों में सिद्धि पा लेता।

   उसके लिए भी सारी तैयारी हो गई थी। हमेशा की तरह आज भी चंद्रप्रकाश एक बच्चे को अपने साथ ले आया था और उसे खाने में नशीला पदार्थ खिला के बेहोश कर दिया था। अब इंतजार था उस घड़ी का जब उस बच्चे की बलि देनी थी। सारी तैयारी हो चुकी थी।

   भैरो सिंह अपने आसान पर बैठा था। उसके सामने ही चन्द्रप्रकाश और उसकी बीवी भी बैठे थे। और ही वो बच्चा बेहोश पड़ा था। पूजा खत्म होने के बाद भैरो सिंह कहता है कि अब बलि का समय हो गया है। तो चंद्रप्रकाश अपनी जगह से उठता है और उस बच्चे को उठा के लाके माता के सामने रखी बलि की वेदी पर उसका सिर टिका देता है। और तलवार ले के उसकी गर्दन पर वार करने वाला ही होता है कि तभी उसकी 9 साल की बेटी अपने कमरे से बाहर निकलती है। और बाहर का मंजर देख के डर से चिल्ला देती है।    

   चन्द्रप्रकाश और उसकी पत्नी अपनी बेटी को चुप कराने के लिए उसकी और बढ़ते है। लेकिन चंद्रप्रकाश की बेटी अपने पिता के हाथ में तलवार देख के डर जाती है और उसे लगता है कि उसका पिता उसे भी मार देगा। इसलिए वो कमरे में जाके कमरा बंद कर लेती है और डर से जोर जोर चिल्लाने लगती है। उसे चिल्लाते देख उसकी बाकी की तीनों बहने भी डर जाती है और रोने लगती है। रात के सन्नाटे को चीरती उन चारों बहनों की चीख पुकार से आसपास के लोगों की नींद खुल जाती है। चन्द्रप्रकाश और उसकी पत्नी डर जाते है कि अब क्या होगा। कहीं उसके इस राज का पर्दा फाँस ना हो जाए। इसलिए वो दरवाजे को तोड़ने की कोशिश करने लगता है। कुछ ही कोशिश के बाद वो दरवाज़ा तोड़ देता है और अपनी बेटियों को चुप कराता है।

   तब तक उधर भैरो सिंह, जिसने इतने बरसों से इस पल का इंतजार किया था। अब इस घड़ी को अपने हाथ से जाने नहीं देना चाहता था। तो वो खुद ही तलवार लेके उस बच्चे की बलि दे देता है।

   जैसे ही चंद्रप्रकाश की अपनी बेटियों को चुप कराता है। उसके दरवाजे पर दस्तक होती है। डरते डरते वो दरवाज़ा खोलता है। उसके आसपास के लोग पूछने आए थे कि क्या हुआ है जो बच्चे रो रहे । तो वो उन्हें बताता है कि बच्चे दर गए थे इसलिए रो रहे थे। मगर अब सब ठीक है। तो वो लोग वापस अपने घरों में जाके सो जाते है।

   चन्द्रप्रकाश वापस भैरो सिंह के पास जाता है तो देखता है कि भैरो सिंह ने खुद ही बच्चे की बलि दे दी है। ये देख के चंद्रप्रकाश बहुत खुश होता है कि अब उसे पुत्र की प्राप्ति होगी। वो भैरो सिंह से कहता है कि बाबा हमारा कार्य सफल हुआ। अब मैं एक बेटे का बाप बन पाऊँगा। लेकिन भैरो सिंह कोई जवाब नहीं देता। वो तो बस एक जानवर की तरह अपने दोनों हाथ और पैर पर झुका हुआ था और गुर्रा रहा था। उसके बाल भी खुल के आगे की तरफ आ गए थे। जिससे उसका चेहरा दिखाई नहीं दे रहा था। तो चंद्रप्रकाश भैरो सिंह के पास जाके उसके कंधे पर हाथ रखता है। तभी भैरो सिंह अपना चेहरा ऊपर उठाता है। उसकी लाल आंखे

और नुकीले दांत देख के चन्द्रप्रकाश प्रकाश डर जाता है और जब तक वो कुछ समझ पाता। भैरो सिंह जानवर की तरह उस पर झपट पड़ता है और पल भर में ही उसे नोच नोच के खाना शुरू कर देता है। दर्द से चंद्रप्रकाश चिल्लाने लगता है और फिर उसकी सासें थम जाती है। आवाज सुनकर चन्द्रप्रकाश की बीवी बाहर आती है तो देखती है कि उसका पति जमीन पर पड़ा है और एक बाबा उसे खा रहा है तो वो अपने पति को बचाने के लिए भैरो सिंह पर डंडे से हमला करती है । जिससे भैरो सिंह को गुस्सा आ जाती है और वो उस पर भी हमला कर देता है और उसे भी नोच फाड़ के रख देता है । मौके पर ही उसकी भी मौत हो जाती है। शैतान बना भैरो सिंह चन्द्रप्रकाश की चारो नन्ही बच्चियों को भी नहीं छोड़ता है। और उन्हें भी अपनी खून की प्यास का शिकार बना लेता है।

    पूरे घर वालों की चीख पुकार सुनकर आसपास वाले इकट्ठा हो जाते है। और चंद्रप्रकाश के घर का दरवाज़ा तोड़ के अंदर आते है। अंदर का मंजर देख के सबके होश उड़ जाते है। भैरो सिंह भाग चुका था। चन्द्रप्रकाश और उसके परिवार की लाश vahi पड़ी थी। पूरे घर में खून ही खून बिखरा हुआ था। लाश को देख के ऐसा लग रहा था किसी खूंखार जानवर ने हमला किया हो । लेकिन इतनी रात में शहर में खूंखार जानवर आया कहा से। और उस जानवर के खून से सने पैरों के निशान केवल घर के अंदर ही नजर आ रहे थे। जबकि घर के चारों ओर इस तरह का कोई निशान नहीं था ।जिससे पता चल सके कि वो जानवर गया कहा।

    कुछ लोग तो इसकी वज़ह काला जादू भी बता रहे थे। क्योंकि चंद्रप्रकाश के घर से कला जादू के सारे समान बरामद हुए थे।

   चन्द्रप्रकाश और उसके परिवार की रहस्यमय मौत को 5 साल बीत चुके है। किसी को आज तक पता नहीं चल पाया कि उस रात क्या हुआ था ।कैसे चंद्रप्रकाश और उसके परिवार की मौत हुई? कुछ दिनों बाद उसके घर को भी सील कर दिया गया। क्योंकि वहा से चीखने चिल्लाने की आवाजें आने लगी थी। जब भी कोई उस घर में तहकीकात करने जाता तो एसा लगता कि उस घर की दीवारें चीख रही हो। ये चीख चन्द्रप्रकाश, उसकी पत्नी और बेटियों की ही थी ।जो इतनी तेज और कर्कश होती की वहां किसी का एक मिनट भी रुकना मुश्किल हो जाता था। इसलिए उस घर को हमेशा के लिए सील कर दिया गया। और एक रहस्य हमेशा के लिए रहस्य ही रह गया।

(ये एक काल्पनिक कहानी है। इसे मैंने सिर्फ ये बताने के लिए लिखी है कि हमें ,आपको या किसी भी व्यक्ति को पुत्र प्राप्ति के लिए इस तरह के अंधविश्वास में नहीं पड़ना चाहिए। पुत्र हो या पुत्री सब भगवान की देन है। हर बच्चे को इस दुनिया में आने का हक है। अपने माँ बाप से प्यार पाने का हक है। अपनी जिंदगी जीने का हक है। तो कृपया इस तरह के अंधविश्वास से दूर रहे। और जागरूक बने। दुर्गा माँ सबका कल्याण करे। )


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