मेरे प्यारे मॉमपू
मेरे प्यारे मॉमपू


मॉमपू यानी मेरे पापा जो मेरी माँ भी हैं। मेरे माँ पापा दोनो ही नौकरीमें हैं इस वजह से मुझे और मेरी छोटी बहन को कई बार सिर्फ़ माँ यासिर्फ़ पापा के साथ रहना पड़ता है। शायद ऐसा उन सभी बच्चों केसाथ होता होगा जिनके माँ और पापा दोनो नौकरी में होंगे। वैसे मुझे यक़ीन है मेरे जैसे पापा किसी के पास नहीं होंगे।
मेरे पापा को हम दोनो बहने पापा नहीं मॉमपू कहते हैं क्योंकि वोहमारी माँ से किसी तरह कम नहीं है साथ ही पापा वाला किरदार भीबख़ूबी निभाते हैं।
जब हम नन्हें बच्चे थे तब मॉमपू ने हमारी लँगोटी बदलने से लेकरकटोरी चम्मच से दूध तक पिलाया है और वो भी बड़ी सुगढता से।मैंने मॉमपू को ये सब करते देखा है जब मेरी छोटी बहन हमारे बीचआइ थी।अब तो हम दोनो ही बड़े हो गए हैं।
जब माँ की पोस्टिंग दूसरे शहर में हो गई थी तब हम तीनो ,मैं , छोटीबहन और मॉमपू ही घर में थे। मॉमपू ने कभी हमें माँ की कमी नहींखलने दी। उस समय मैं पाँचवी और मेरी बहन पहली कक्षा में थे।हमारे स्कूल की गाड़ी सुबह साढ़े छः बजे आ जाती थी इसलिए मॉमपूबिलकुल माँ की तरह सुबह हम दोनो से पहले उठ कर हमारे लिएनाश्ता और टिफ़िन तैयार कर लेते। फिर हम दोनो बहनों को प्यार सेउठाते। हम बहने भी बड़े लाड़ से थोड़ा और सोने दो की गुहार लगतेया कभी स्कूल नहीं जान आज, के नख़रे दिखाते। माँ तो हमारी इनबातों को कभी ना माना करती थी पर मॉमपू तो कभी कभी मान भीलेते थे। कहते हैं ना बेटियाँ पापा की लाड़ली होतीं हैं।
मॉमपू हम बहनों के यूनीफ़ॉर्म भी सही करते और हमारी चोटी भीबनाते थे। हम दोनो बहनों के बाल घने और कमर से नीचे तक लम्बेथे।हमारी चोटी बनाना कोई खेल नहीं था। कितनी बुआ और मौसीझल्ला जाती थीं। पर मॉमपू बड़े जतन से हमारी चोटी की गूँथ&nb
sp;बनातेऔर प्यार भरी थपकी के साथ हमें स्कूल के लिए विदा करते। मेरेमॉमपू बहुत ही ख़ास हैं।
इतना ही नहीं ऑफ़िस से आने के बाद हमारे कहानियों औरशिकायतों का पिटारा खुल जाता और मॉमपू चाव से सब सुनते रहतेऔर कई बार तो हम बहनों के दिन भर के झगड़े सुलझाते। इन सबके बाद हमारी पढ़ाई भी कराते। अगर अगले दिन कोई परीक्षा हो याप्रोजेक्ट जमा करना हो तो देर रात तक जाग कर उसे भी पूरा करते थेऔर फिर सुबह जल्दी जाग जाते थे। हमारी नींद पूरी होने के लिएहमें देर तक सोने देते और हमें ख़ुद ही स्कूल छोड़ने जाते।
ये तो वो बातें हुई जो देखे या बताए जा सकते हैं पर माँ कीअनुपस्थिति में मॉमपू हमें परिस्थितियों का सामना मजबूरी से करनेकी सीख भी देते थे।बड़े सरल तरीक़े से हमें मानसिक रूप से सुदृढ़होने को प्रशिक्षित करते। हम उस उम्र में थे जहाँ पर हमारी सोंच औरसमझ का विकास हो रहा था और मॉमपू ने माँ के नहीं होने पर माँ केतरफ़ की सीख भी हमें दी। एक अच्छा इंसान बनना सिखाया। हमजब स्थितियों के सामने मुश्किल में होते या कठिनाइयों से परेशान होकर टूट जाते और आँखे भर जाती तो हमें सिर्फ़ मॉमपू के कंधों का हीसहारा नहीं मिलता बल्कि वो हमें अपने कलेजे से लगा कर हमारासंबल बढ़ते ,ढाढ़स दिलाते।
लोग कहते हैं माता पिता गृहस्थी की गाड़ी के दो पहिए होते है और येगाड़ी अकेले नहीं चलाई जा सकती लेकिन मेरे मॉमपू ने इस एकपहिए की गाड़ी को तीन सालों तक चलाया लेकिन अहसास ही नहींहोने दिया की इसका एक पहिया अभी साथ नहीं है। सारे ठोकर औरगड्ढों को अकेले ही झेलते गए। आज जब हम बहने हमारी गृहस्थीकी गाड़ी को चला रहे हैं तो समझ में आता है कि मॉमपू के लिए वोसमय कितना कठिन रहा होगा और आँखे भर आती हैं ,मन होता हैजल्दी से उनके गले लग जाएँ।