मेरा परिवार
मेरा परिवार
गिरजा एक सुंदर स्त्री थी। उसका प्रेम विवाह हुआ था। उसकी सुंदरता के चर्चे उसके पड़ोसी अक्सर किया करते थे। लेकिन दुर्भाग्य से उसके कोई संतान नहीं हो रही थी। योग्य डॉक्टरों के द्वारा बहुत इलाज हुआ लेकिन सफलता नहीं मिली। फिर थक हार कर वह अपने पति के साथ संतान प्राप्ति हेतु तांत्रिक के पास जा रही थी, जाते समय रास्ते में उसे एक बैग मिला।
जब उसने उस बैग को खोला तो उसमें दो माह की अबोध बच्ची रो रही थी। बच्ची की दयनीय देखकर गिरिजा को उस पर दया आ गई और तुरंत ही उसने निर्णय किया कि वह इस बच्ची का लालन-पालन करेगी। उसने उस बच्ची का नाम मिलन रखा उसने मिलन को अच्छी तरह से पाला जब मिलन चार वर्ष की हुई तो वह स्कूल जाने लगे लगी।
स्कूल जाते समय एक दिन मिलन को भीख मांगते हुए छोटा बच्चा दिखा। उसने यह बात अपनी मां को बताई। मिलन की मां गिरिजा उस बच्चे को भी अपने घर ले आई। गिरजा ने उस बच्चे से उसका नाम पूछा, उस बच्चे ने अपना नाम लव बताया। लव को भी स्कूल भेजा गया। मिलन और लव दोनों एक साथ स्कूल जाने लगे। स्कूल से आकर घर में दोनों बच्चे एक साथ खेलते थे। अब गिरजा का घर खुशहाल हो गया गिरिजा भी बहुत खुश रहने लगी।
एक बार गिरिजा के मां-बाप गिरजा से मिलने आए उन्होंने घर में दो बच्चों को खेलते देखा तब उन्होंने गिरजा से पूछा:-
यह बच्चे कहां से आए ?
किसके बच्चे हैं ?
गिरजा ने कहा:- यह मेरे बच्चे हैं। यही मेरा परिवार है। इनकी देखभाल करना ही मेरी जिंदगी का मुख्य उद्देश्य है।
यह सुनकर गिरजा के मां-बाप बहुत खुश हुए, उन्होंने कहा यह तुमने बहुत बड़ा काम किया है।
तुम धन्य हो।
तुम्हारे विचार धन्य है।
तुम जुग जुग जियो मेरे बेटा।
