मदद का हाथ
मदद का हाथ
" सर, यह मेरा अंतिम प्रयास था। इस बार भी मेरा चयन नहीं हुआ। अब मेरा क्या होगा ? पापा ने इतनी मुश्किलों से मुझे तैयारी के लिए दिल्ली भेजा था।उन्हें क्या मुँह दिखाऊंगा ? ", केशव लाख प्रयासों के बाद भी अपने मार्गदर्शक, दर्शनशास्त्र के टीचर किशोर सर के सामने अपने आंसुओं के सैलाब को अपनी आंखों में और न रोक सका।
किशोर सर उसके सिर पर हाथ फेर रहे थे। अपनी गंभीरता, प्रतिभा और मेहनती प्रवृत्ति के कारण केशव किशोर सर के प्रिय छात्रों में था। किशोर सर न केवल अपने पढ़ाने के तरीके, बल्कि छात्रों को तैयारी के दौरान भावनात्मक सम्बल देने के कारण छात्रों के प्रिय थे।
इस उपभोक्तावादी और भौतिकवादी युग में, जहाँ कॉम्पिटिटिव एक्साम्स की तैयारी करवाने वाले टीचर्स और कोचिंग चांदी काट रहे हैं, वहीँ किशोर सर कई विद्यार्थियों की फीस भी माफ़ कर देते थे । उनकी भलमनसाहत का कई विद्यार्थी गलत फायदा भी उठाते थे ;फीस देने में सक्षम विद्यार्थी भी कई बार फीस नहीं देते थे। लेकिन किशोर सर कहते थे कि जिसकी करनी उसके साथ।
केशव एक निम्न मध्यम वर्गीय परिवार का ३ बच्चों में सबसे बड़ा बेटा था .सरकारी स्कूल से पढ़ाई करने के बावजूद उसका एकेडेमिक्स बहुत ही बेहतर था .उसकी प्रतिभा को देखते हुए एक दुकान पर मुनीम का काम करने वाले उसके पापा ने उधार लेकर और जैसे -तैसे अपने खर्चों में कटौती करके उसे UPSC की तैयारी करने के लिए भेजा था .केशव पर अपने आपको साबित करने का दबाव था और अपने घरवालों की तकलीफें दूर करने की प्रबल इच्छा थी .उसे अपने सपनों के टूटने से भी ज्यादा, घरवालों के सपने टूटने का दर्द था .वही दर्द उसकी आँखों से बह रहा था .
केशव के हालातों से सर पूरी तरीके से परिचित थे। उन्हें उसकी असफलता पर बड़ा दुःख भी था। लेकिन जब इंसान के प्रयास असफल हो जाते हैं, तब केवल यही शब्द सांत्वना देते हैं कि, "वक़्त से पहले और किस्मत से ज्यादा कभी किसी को कुछ नहीं मिलता। " केशव के शांत होने पर किशोर सर ने उसे यही कहा और साथ ही कहा कि, " तुम्हारे लिए शायद ईश्वर ने इससे भी कुछ बेहतर सोच रखा होगा, निराश मत हो। "
" सर, मुझे तो कई बार ईश्वर के होने पर ही शक होता है। ", केशव ने निराशा भरे शब्दों में कहा।
"केशव, तुम्हारी एक ताकत है ;जो तुम भी नहीं जानते। " किशोर सर ने कहा।
"सर, कौनसी ताकत ?मेरे पास तो स्नातक की डिग्री है, सिर्फ बी ए पास हूँ ; इंजीनियर आदि होता तो कोई और नौकरी भी लग जाती। ",केशव ने हथियार डालते हुए कहा।
"तुम्हारी कलम, तुम्हारी लेखन शैली तुम्हारी ताकत है। तुम उत्तर बहुत ही प्रभावी लिखते हो। तुम्हारी भाषा पर बहुत अच्छी पकड़ है। ", किशोर सर केशव को याद दिला रहे थे।
"सर, उससे नौकरी तो नहीं मिलेगी न। ",केशव ने कहा।
" केशव, तुम कुछ समय कोचिंग में पढ़ा लेना ;जितना मुझसे बन पड़ेगा तुम्हे वेतन दे दूंगा। कोचिंग के हालात तुमसे छिपे हुए नहीं है। साथ ही तुम अपनी अब तक की यात्रा पर कोई किताब लिखो ;मेरा मतलब एक उपन्यास लिखो। ",किशोर सर ने केशव को रास्ता दिखाने की कोशिश की।
"सर, मैं और उपन्यास ?",केशव ने कहा।
"केशव, मुझ पर भरोसा करते हो तो, लिखो। विषय तुम्हे सुझा दिया है ;तुम्हारी आर्थिक समस्या भी सुलझा दी ;लिखो तो सही ;एक बार अपने सर की यह बात भी मान कर देख लो। वैसे भी अब खोने के लिए तुम्हारे पास कुछ नहीं बचा है। ", किशोर सर ऐसा कहकर अपनी क्लास लेने चले गए।
१ साल बाद
आज केशव के लिखे पहले उपन्यास को साहित्य अकादमी का युवा लेखक पुरस्कार देने की घोषणा हुई है। केशव के उपन्यास के मूवी राइट्स भी एक बड़ी प्रोडक्शन कंपनी ने खरीद लिए हैं। अपने पुरस्कार को किशोर सर के चरणों में रखते हुए केशव ने सिर्फ यही कहा, " गुरु से बड़ा कोई नहीं है। आज मैं जो कुछ भी हूँ ;आपकी बदौलत हूँ।किसी ने सही कहा है ;मदद का एक छोटा सा हाथ बड़े -बड़े चमत्कार कर सकता है। " किशोर सर के चेहरे पर अपने विद्यार्थी की सफलता को देखकर संतुष्टि के असीम भाव थे।