मैं नारी हूँ
मैं नारी हूँ
-"तृप्ति, आखिर तुम मुझे छोड़ क्यों नहीं देती ?"
-"पर प्रतीक, मैने तो तुम्हें अपनी तरफ़ से पुरी तरह मुक्त कर रखा है ना"...
-"हाँ, वो तो मैं जानता हूँ कि तुम कभी भी मुझ पर हक नहीं जताओगी मगर तुम्हारा यों मेरी परवाह करना मुझे उलझन में डाल देता है ।"
-"अपना नहीं बना सकते तो कोई बात नहीं, परवाह कर सकूं तुम्हारी, क्या इसकी भी इजाजत नहीं दोगे?"
-"तुम समझती क्यों नहीं तृप्ति, मैं तुमसे चाहते हुए भी शादी नहीं कर सकता। ये जात-पांत की ऊँची-ऊँची दीवारें जकडे हुए है तुम्हें और मुझे...पहले भी गुजर चुका हूँ मैं इस झंझावत से, अब मुझमें फिर से वो सब झेलने की हिम्मत नहीं।"
-"तो मैंने कब कहा कि तुम फिर से उस कड़वी सच्चाई का सामना करो...मैं तो सिर्फ ये चाहती हूँ कि कभी- कभार मैसेज कर के अपनी ख़ैर-खबर सुना दिया करो...मैं तो इसी में खुश हूँ।"
-"पर तृप्ति, तुम नहीं जानती कि तुम्हारे इस अपनत्व से मेरा मन तुम्हे पाने के लिए और मचल-मचल जाता है। ऐसा लगता है कि तुम्हे अपने-आप में समाहित कर लूँ।"
-"अच्छा जी...जनाब के इरादे कुछ नेक नहीं लग रहे !"
-"हाहा...अरे नहीं यार...वो बात नहीं, पर जब तुम और मैं आपस में प्यार करते हैं तो प्रेम तो समर्पण माँगता ही है ना !"
-"हाँ, जानती हूँ प्रतीक मगर मजबूर हूँ...तुम्हारी और मेरी शादी तो संभव नहीं और बिना शादी शारीरिक निकटता मुझे मंजूर नहीं।"
-"आखिर क्या चाहती हो तुम तृप्ति? या तो मुझे छोड़ दो हमेशा के लिए या फिर ये शारीरिक दूरी मिटा दो ताकि तन-मन से तुम और मैं एक हो जाए। ये एक अजीब सी बेचैनी, ये अधूरापन खत्म हो जाए।
खैर मेरा तो कुछ नहीं, मगर तुम खुद, खुद से लड़ क्यों रही हो?"
-"प्रतीक, तुम नहीं समझोगे मेरा प्रेम.. पुरूष हो ना इसलिए तुम्हे लगता है कि प्रेम में शारीरिक निकटता अनिवार्य है, मगर काश तुमने समझा होता कि मेरा प्यार तो राधा और मीरा के समान है...राधा कहो या मीरा, दोनों ही सूरत में जोगन बनी बैठी हूँ तुम्हारे प्यार में, और सिर्फ तुम्हें चाहती ही नहीं बल्कि पूजती भी हूँ।
तुम्हारे तन की चाह तो मुझे कभी थी ही नहीं...पुरे पाक, साफ, विशुद्ध भाव से मैंने तुम्हारी रूह से, तुम्हारे नेक स्वभाव से प्रेम किया और मरते दम तक करती रहूंगी, बिल्कुल राधा की तरह...ठीक मीरा के जैसे....."
-"राधा या मीरा तो बन गयी तुम तृप्ति, मगर आखिर कब तक रहोगी इस अधुरे प्यार के साथ? तुम्हारे कृष्ण की तो उसके घरवाले किसी और लडकी के साथ शादी की बात चला रहे हैं अब।"
-"शादी ! हाहाहा...भूल गये प्रतीक कि कृष्ण की भी शादी हो गयी थी मगर ना तो राधा को इस बात से कोई फर्क पड़ा था, और ना ही मीरा ने उनसे प्रेम करना छोड़ा !"
-"मगर तृप्ति, तुम्हारी मेरे प्रति इस दिवानगी को ये समाज क्या कहेगा? तुम और मैं तो कभी शारीरिक रूप से नजदीक नहीं आये मगर तुम्हारे प्रेम, तुम्हारी पवित्रता पर यदि शक किया गया तो?"
-"तो मैं भी समाज के तानों भरा विष प्याला पियूंगी मीरा की तरह, और अग्नि-परीक्षा दूंगी माता सीता की तरह...मेरा प्रेम पवित्र था, है,और हमेशा रहेगा।"
-"उफ्फ्फ तृप्ति...आखिर तुम हो क्या? कोई देवी??"
-"ना...मैं नारी हूँ और यही मेरे जीवन की सर्वोच्च उपलब्धि है !"