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Sushma s Chundawat

Drama

4  

Sushma s Chundawat

Drama

नीली आँखें

नीली आँखें

4 mins
998


बहुत प्यारी थी प्रियांशी, बिल्कुल सोनपरी जैसी...

 गोरा रंग, काले लंबे बाल, शहद सी भूरी आँखें, गुलाब की पंखुड़ियों से गुलाबी होंठ, उनके ऊपर छोटा सा तिल, गालो पर पड़ते डिंपल और उम्र भी सोलहवां बसंतकाल...

हर तरफ रंगीन तितलियाँ सी उड़ती लगती है इस उम्र में और पैर मानों हवा में रहते हैं।

"तुम हुस्न परी, तुम जाने जहाँ...

तुम सबसे हसीं, तुम सबसे जवाँ...

सौंदर्य साबुन निरमा !"

टीवी पर यह पुराना विज्ञापन था पर उसके दिमाग में तो हरदम "मैं हुस्न परी, मैं जाने जहाँ... मैं सबसे हसीं, मैं सबसे जवाँ" लाइन चलती ही रहती थी।

हर समय खुद को निहारती रहती थी आइने में।

मगर इतनी सुन्दर होने के बाद भी असंतुष्ट रहती थी प्रियांशी।

अपने-आप को और भी ज्यादा ख़ूबसूरत कैसे दिखाया जाये, इसके लिए नाना प्रकार के जतन करती रहती थी वो।

लाड़ली भी थी पुरे घर की।

जिद करना, अपनी मनमानी करना बखूबी आता था उसे।

एक दिन कॉलेज गयी तो अपनी फ्रेण्ड को कॉन्टेक्ट लेंस पहने देखा।

रंगीन लेंस ने आँखों की ख़ूबसूरती कई गुना बढ़ा दी थी।

बस फिर क्या था !

फ़ितूर चढ़ गया प्रियांशी को भी कॉन्टेक्ट लेंस लगाने का। 

बाज़ार गयी और खरीद लिये अलग-अलग रंगों के लेंस।

अब तो हर दिन जिस कलर की ड्रेस पहनती, उसी रंग से मैच करते कॉन्टेक्ट लेंस लगाती।

साथ ही उसी से मिलते-जुलते रंग का गॉगल्स, पर्स, सैण्डिल...

मतलब कि सब कुछ मैचिंग-मैचिंग...

यहाँ तक कि नेलपॉलिश और हेयरबैण्ड भी !

सच में उसकी ख़ूबसूरती में चार चाँद लग गये थे, कॉलेज में सबकी आकर्षण का केंद्र बन गयी थी प्रियांशी।

आँखों पर तो बहुत कॉम्पलिमेंट मिलते उसको।

बड़ी-बड़ी आँखों में जब काजल, मस्कारा और गुलाबी कॉन्टेक्ट लेंस लगाती तो उसके दिवाने गुनगुनाते- "गुलाबी आँखें जो तेरी देखी, शराबी ये दिल हो गया"

काले लेंस लगाने पर सुनने को मिलता- "ये काली-काली आँखें"

 लाल,पीले, हरे या बैंगनी रंग के लेंस लगाती तो- "आपकी आँखों में महके हुए से राज़ है" गीत सुनाई देता।

"इन आँखों की मस्ती के मस्ताने हज़ारों हैं"- उसकी सहेलियां उसे छेड़ती और प्रियांशी अपनी खुबसूरती पर नाज़ करती।

शुरुआत में वह लेंस लगाने को लेकर काफी सावधानी बरतती थी लेकिन धीरे-धीरे हमेशा उपयोग करने की वज़ह से वह लापरवाह हो गयी थी।

कभी पुरे-पुरे दिन लेंस पहनकर रखती तो कभी उन्हें सॉल्यूशन से साफ किये बिना ही रख देती।

लेंस महँगे थे तो साल भर से ऊपर होने पर भी उन्हें बदलती नहीं।

‘सोते समय, बाइक अथवा स्कूटी चलाते हुए, तेज हवा या आँधी में लेंस का उपयोग नहीं करना चाहिए’- आदि निर्देश लिखे कागज़ को उसने एक बार सरसरी निगाह से देखकर पता नहीं कहाँ फेंका !

घरवाले समझाते भी कि ऐसी लापरवाही ठीक नहीं पर प्रियांशी कहाँ किसी की सुनती थी !

एक दिन मौसम बहुत खुशनुमा था, आसमां में घने बादल छाये हुए थे।

प्रियांशी के कॉलेज में भी कोई उत्सव था।

वो बड़ी सज-संवरकर कॉलेज आयी।

नीले रंग की साड़ी पहनी थी उसने और उसी के साथ मैच करते नीले लेंस भी लगाये थे।

उसे देखते ही लड़के गा उठे- "दिल डूबा, दिल डूबा... नीली आँखों में दिल डूबा"

"झील सी आँखें, नीला पद्म, नील मणि, नीलम जैसी नीली आँखें"- पता नहीं क्या-क्या कॉम्पलिमेंट्स मिले प्रियांशी को आज...

लग भी तो रही थी वो परी-कथाओं की नीलपरी जैसी !

बहुत खुश थी प्रियांशी अपनी प्रशंसा सुनकर, रूपगर्विता बन कर घूम रही थी इधर से उधर।

इसी खुशी में उत्सव में सभी दोस्तों के साथ मिलकर खुब नाच-गाना किया और जमकर धमाल मचाया प्रियांशी ने।

उत्सव समाप्ति के बाद सभी अपने-अपने घरों की ओर लौट गये।

प्रियांशी भी घर जाने के लिए निकली, मगर मौसम की वज़ह से रास्ते में तेज़ हवा चलने लगी।

उसने चश्मा लगाना चाहा मगर मौज-मस्ती में चश्मा तो कॉलेज में ही भूल गयी थी प्रियांशी।

अब क्या करें?

आस-पास रूकने के लिए जगह तलाशती वो स्कूटी को धीमी गति से चलाती इधर-उधर नज़र दौड़ा रही थी कि तभी अचानक एक छोटा सा तिनका उड़कर उसकी एक आँख में चला गया।

प्रियांशी ने बेख्याली में आँख पर उँगलियाँ घुमा दी और इसी के साथ एक तीव्र चीख उसके कंठ से फूटी। 

वह भूल गयी थी कि उसने अपने कॉन्टेक्ट लेंस उतारे नहीं थे !

प्रियांशी की लापरवाही उसके लिए बहुत हानिकारक साबित हुई।

लेंस ने आँख में गहरा घाव कर दिया और उसकी आँख की रोशनी हमेशा के लिए चली गयी !

वह नीली रत्न समान आँख जो मणि प्रभा सी जगमगा रही थी, उसमें रात का काला अंधकार समा गया था।

काश प्रियांशी फैशन के चक्कर में और खुद को विश्व सुंदरी दिखाने के भ्रमजाल में ना उलझती तो आज सावन की फुहार से नभ में उपजे रंग-बिरंगे इन्द्रधनुष चाप को अपनी दोनों कत्थई भूरी आँखों से निहार रही होती मगर अफ़सोस !

अपनी लापरवाही और रूप पर घमंड का नतीजा उसे काले चश्मे की सौगात के स्वरूप में मिला !


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