Sushma s Chundawat

Inspirational

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Sushma s Chundawat

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इन्द्रधनुष के रंग

इन्द्रधनुष के रंग

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-"बैनीआहपीनाला"

"अरे दीदी, ROYGBIV बोलो ना !" - भाई चिड़चिड़ाया।

"ये तेरी अंग्रेजी तुझे ही मुबारक हो, मुझे तो 'बैनीआहपीनाला'-बैंगनी,नीला,आसमानी,हरा,पीला,नारंगी और लाल..ऐसे ही याद होते हैं इन्द्रधनुष के रंग" - त्रिशा बोली।

"अब आपसे कौन बहस करे"- कहकर भाई बाहर निकल गया।

दोनों भाई-बहन बात-बेबात बहस करते और फिर कभी नाराज़ हो जाते एक-दुसरे से तो कभी हंस पडते।

बारिश के बाद निकलते इन्द्रधनुष को देखने के लिए त्रिशा बहुत बेताब रहती थी और जो कभी इन्द्र राजा अपना धनुष, नभ रूपी कैनवास पर नहीं खिंचते तो उसका मूड़ खराब हो जाता।

इन्द्रधनुष पसंद आने के पीछे एक खास कारण भी था, त्रिशा को रंग बहुत पसंद थे, खासकर चटकीले रंग..

पीनाला- पीला, नारंगी, लाल तो विशेष रूप से।

पेंटिंग भी करती तो चित्र में सबसे पहले यही तीन रंग भरती थी।

कपड़े, चूड़ियाँ, माला, सैण्डिल्स, पर्स, नेल-पाॅलिश... सब या तो मल्टीकलर चाहिए थे उसको या फिर सुर्ख लाल, चटकीले पीले या भड़कीले नारंगी रंग में....

सोलह बसंत इसी खुशनुमा र॔गों में भीगते-भीगते बीत गये त्रिशा के...

और इसी मौसम में वो मिली उससे जिसने जीवन में पहली बार उसी के पसंदीदा चटक र॔गों के गुलाब प्यार से हाथों में थमाए।

वो पहला स्पर्श, पहली अँगुलियों की छुअन, पहला रंगीन दुपट्टा, पहला आलिंगन, पहली अधरों पर प्रेम स्मृति...

सच में पहला प्रेम अविस्मरणीय होता है जिसकी यादें रूह में इस कदर बस जाती है जो रूह के आजाद होने के बाद ही समाप्त होती हैं।

और फिर पहली बार दिल का टूटना !

उफ्फ्फ्फ्फ्...

मानों कयामत आन पड़ी हो, सारे अपने एक ही झटके में पराये लगने लगते है...

 हम खुद अपने-आप के लिए अजनबी हो जाते हैं।

साया तक साथ छुड़ाने को बेताब हो जाता है...

त्रिशा के साथ भी ऐसा ही हुआ था पर येन-केन प्रकारेण घरवालों के अथक प्रयासों के बाद वह सामान्य हुई पर अब तटस्थ और गहरे रंगों के प्रति उसकी रूचि बढने लगी थी।

लाल रंग उसे चिढाने लगा, नारंगी रंग से उसे नफ़रत हो चली थी और पीला रंग उसे डराने लगा...

'बैनीआह' रंग उसकी दुनिया में पैठ चुके थे और फिर धीरे- धीरे उसने इन इन्द्रधनुष के रंगों को भी अपने जीवन से बाहर कर दिया...

सिर्फ़ काला रंग पसंद बन गया था उसकी..

काले कपड़े, काला पर्स, काला चश्मा, काली सैंडल, और मुंह पर काला कपड़ा बांधे जब अपनी काली स्कूटी पर बैठ कर त्रिशा बाहर निकलती तो भाई हंसाने के लिए बोलता- "देखो, देखो... जग्गा डाकू बाहर जा रही है !"

पर अब तो त्रिशा की मुस्कान भी बेरंग हो चुकी थी, बेमन से बड़ी मुश्किल से मुस्कुराने का विफल प्रयास करती बहन को देखकर भाई भी रुआंसा हो जाता।

साल भर होने आया था त्रिशा का दिल टूटे हुए...

बारिश के बाद की बात थी और इस बार फिर बारिश आ गयी थी पर पता नहीं क्यों इस दफ़ा जब-जब बरसात हुई इन्द्रधनुष नहीं बना!

त्रिशा सोचती, "जब जिन्दगी के सारे रंग ही चले गए तो इस आसमां ने भी रंग बिखेरना छोड़ दिया!"

पर बचपन से आदत थी, बारिश के बाद निकलते इन्द्रधनुष को निहारने की, तो हर बरसात के बाद ना चाहते हुए भी उसकी निगाह अंबर की ओर उठ ही जाती।

एक दिन जब त्रिशा कमरे में बंद अपने मतलबी प्रेमी की बेवफाई को याद करके उदास बैठी थी कि तभी भाई दौडा हुआ आया और उसका हाथ पकड़ कर खिंचते हुए जबर्दस्ती बाहर ले आया और बोला-" देखो, वहां ऊपर"

त्रिशा ने झल्लाते हुए आसमां की ओर देखा और सहसा उसके चेहरे पर बड़ी सी मुस्कान आ गयी...

इतना बड़ा और गहरे रंगों से भरा इन्द्रधनुष तो उसने आज तक नहीं देखा था !

मंत्रमुग्ध हो वह उसे निहारने लगी, तभी माँ-पापा भी वहाँ आ गये।

पापा ने पास आ कर त्रिशा के सिर पर प्यार से हाथ फेरा और बोले- "जिन्दगी भी ऐसी ही होती है बेटा..रंगों से भरी हुई, मगर कई बार इस जीवन के रंग किन्ही कारणों से धुंधले हो जाते हैं या कुछ समय के लिए गायब, मगर इसका मतलब यह नहीं कि जिन्दगी का इन्द्रधनुष फिर कभी निकलेगा ही नहीं...

हर रंग अपनी अहमियत रखता है..सिर्फ पीनाला ही नहीं बैनीआह भी इसी जीवन का हिस्सा है और ये सब रंग मिलकर ही एक खुबसूरत नजारा बनाते हैं...

इसलिए जीवन के हर रंग को स्वीकारों, मात्र काले रंग को ही अपनी नियति मान लेना गलत है बच्चा"

पापा की बात सुनकर त्रिशा समझ गयी कि मानव का जीवन भी इन्द्रधनुष के रंंगों जैसा ही होता है...

जिस प्रकार इन्द्रधनुष का हर एक रंग अलग-अलग मूड को दर्शाता है, लाल- उत्साह व प्रेम को तो हरा शान्ति को, पीला रंग जीवन में शुभता लाता है तो नीला रंग जीवनदायिनी शक्ति प्रदान करता है ।

हर रंग का अपना अलग महत्व है, किसी एक ही रंग से बंध कर रह जाना अच्छा नहीं ठीक इसी तरह हमेशा उदासी या रोने के मूड में रहना भी अच्छा नहीं है...

उसे हंसना, मुस्कुराना, गुनगुनाना सब फिर से शुरू करना होगा तभी उसके जीवन के कैनवास पर फिर से रंगों भरा सतरंगी इन्द्रधनुष चमकेगा ।

यही सोचते हुए त्रिशा मुस्कुराते हुए मम्मी से पूछ उठी- "तो माॅम, कल चले फिर हर रंग की नेल-पेंट लेने?"

सब हंस पड़े तभी भाई ने मसखरी की-"तो अब तो आप जग्गा डाकू बनकर बाहर नहीं निकलोगी ना!"

त्रिशा हंसते हुए बोली- " नहीं बैनीआहपीनाला सब तरह के कपड़े पहनुंगी इन्द्रधनुष के रंगों के हिसाब से !"

"ओह्हो दीदी, कितनी बार बताऊँ, ROYGBIV बोला करो ना !"- भाई ने बनावटी गुुुुस्सा दिखलाया।

"ये तेरी अंग्रेजी तुझे ही मुबारक हो...

मुझे तो बैनीआहपीनाला से ही सारे रंग याद हुए हैं"- भाई को चिढ़ाते हुए त्रिशा बोली और सब एक बार फिर से मुस्कुरा दिये।


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