और भाई, आ गया स्वाद?
और भाई, आ गया स्वाद?


प्रीता की शादी को एक साल हो गया था, शादी की पहली वर्षगांठ के एक माह बाद ही होली थी।प्रीता के पति का ख़ास दोस्त मयंक बड़ा खुश हो रहा था, शादी की वर्षगांठ पर तो प्रीता को छूने का एक भी मौका नहीं मिल पाया क्योंकि प्रीता उसकी नीयत भांपते हुए बड़ी सफाई से इधर-उधर हो गई थी मगर अब होली खेलने के बहाने प्रीता को अच्छी तरह से...
पिछले वर्ष भी होली पर मयंक, प्रीता के साथ ऐसा भद्दा मज़ाक कर चुका था...हाथ पकड़ना, जबरन गालों पर रंग लगाना, चूंटी भरना जैसी फूहड़ हरकतों से उसने प्रीता को काफ़ी परेशान किया था।नई-नवेली प्रीता लाज़-शर्म के मारे विरोध नहीं कर पायी थी तो मयंक के हौंसलें और बुलंद हो गये थे।इस होली जैसे ही प्रीता सबके लिए मिठाई की थाल लिए बाहर आयी, मयंक ने उसे सुनाते हुए जोर से दोस्तों के बीच कहा-" हमें तो भई, होली के खुमार में मिठाईयाँ कुछ ज्यादा ही पसंद आने लगती है...स्वादिष्ट, रस भरी, मीठी-मीठी मिठाईयाँ...मन तो करता है कि सारी की सारी एक झटके में खा जाऊँ"और फिर ही..ही... करते हुए खीसें निपोरने लगा।
प्रीता ने सब सुना और समझा मगर कुछ बोली नहीं, चुपचाप महिलाओं की भीड़ में शामिल हो गई मगर मयंक को कहाँ चैन था !उसने अकेले में मौका देखकर प्रीता का हाथ पकड़ना चाहा मगर प्रीता ने फुर्ती दिखाते हुए एक झटके में अपना हाथ छुड़ा लिया और दुसरा हाथ दिया घुमाकर मयंक के गाल पर !
मयंक का गाल गर्म हो गया, आँखों में पानी आ गया !
तभी वहाँ प्रीता के पति भी आ गये और मयंक की ऐसी हालत देखकर कारण पूछने लगे।प्रीता हँसते हुए बोली- "मयंक जी को मिठाई खानी थी तो मैंने गरम-गरम गुलाब-जामुन खिला दिया !मगर लगता है, गुलाब जामुन कुछ ज्यादा ही गर्म था शायद इसीलिए इनकी ऐसी हालत हो गई !आगे से मयंक जी, होली के खुमार में मिठाईयाँ खाने के लिए इतने उतावले भी मत होना !"
अब तक मयंक पर सवार होली का खुमार पुरी तरह उतर चुका था, वो चुपचाप घर की ओर निकल लिया !