तर्पण
तर्पण
'सब रिश्ते नाते हँस कर तोड़ दूँ...बस तुझसे दिल का रिश्ता जोड़ लूं'....
दूर कहीं ये गाना बज रहा था जिसे सुन गंगा घाट पर बैठी प्रियांशी चोट खाई नागिन की तरह तड़प उठी !
कभी यह गाना उसका फेवरिट था...उसका पति अक्सर उसके लिए यही गीत तो गुनगुनाया करता था।
कहता था-" बेबी, तुम कमल के फूल जैसी हो और मैं, तुम्हारे मोहपाश में जकड़े भँवरे के समान....हमारा ये रिश्ता कभी नहीं टूटेगा चाहे सारी दुनिया से नाता टूट जाए।"
उफ्फ्फ....इतना प्यार ! प्रियांशी खुद को बहुत खुशकिस्मत मानती मगर कहते हैं ना कि ज्यादा खुशियाँ हो तो कभी-कभी नज़र लग जाया करती है...
प्रियांशी के साथ भी ऐसा ही हुआ...
उसने ज़िन्दगी में कभी कल्पना नहीं की थी कि प्यार की बड़ी-बड़ी डींगें हाँकने वाला उसका पति किसी और रूपसी के रूपजाल में उलझकर उसे छोड़ देगा !
प्रियांशी ने ना जाने कितनी मिन्नतें की, आँसू बहाये, हाथ जोड़े अपने रिश्ते को बचाने के लिए लेकिन वो पत्थर-दिल नहीं पिघला।
सच तो यह है कि भँवरे की प्रवृत्ति के लोग आखिर कब एक फूल पर अपना घर बसाते हैं !!
आखिर उड़ गया भँवरा और प्रियांशी जल बिन मछली जैसी तड़पती रह गयी।
पति के अलग होने के बाद मूव ऑन करने में लंबा समय लगा उसे...
खैर, नियति के हाथों विवश होकर प्रियांशी ने भी काफ़ी कोशिशों के बाद धीरे-धीरे अपने पति से जुड़ी तमाम यादें विस्मृत कर दी मगर अपनी उँगली में पहनी प्रेम की पहली निशानी को चाहकर भी नहीं निकाल पा रही थी।
उसे याद आया कि शादी के बाद आये पहले करवा-चौथ का तोहफा थी यह अँगूठी...
हालांकि नाप में थोड़ी ढीली थी, किसी कारणवश दुबारा बदलवाना भी संभव नहीं हुआ, फिर भी प्यार का पहला तोहफा हर पत्नी के लिए नायाब ही होता है इसलिए आज तक प्रियांशी ने अँगूठी पर धागा लपेटकर उसे पहना हुआ था मगर अब जब उसके रिश्ते की डोर ही टूट गयी तो....
आँखें भर आयी, प्रियांशी की...
देर तक अँगूठी को देखती रही और सिसकती रही वह फिर कुछ देर बाद नॉर्मल हुई और गंगा की लहरें निहारने लगी।
उसे लगा, मानों लहरें उसे पुकार रही हो कि आओ, मुझ में समा जाओ ! सम्मोहित प्रियांशी देर तक लहरों को घूरती रही फिर एकाएक उसने कुछ दृढ़ निश्चय किया...
नहीं...एक मृत रिश्ते के पीछे वह अपनी अनमोल ज़िन्दगी को दांव पर नहीं लगाएगी...
उसने झटके से अँगूठी का धागा खींच लिया और हाथ गहरे पानी में डूबो दिये !
तीव्र बहता प्रवाह एक पल में अंगूठी लील गया...आखिरकार आज प्रियांशी ने अपने मरे हुए रिश्ते का तर्पण कर ही दिया।
(प्रस्तुत रचना एवं रचना के पात्र काल्पनिक है, तथा पात्रों के नाम किसी व्यक्ति विशेष से संबंधित नहीं है)