सच्चा शिक्षक
सच्चा शिक्षक


-"त्रिशा....तुमने पटवारी परीक्षा का रिजल्ट देखा क्या ?"
-"हाँ भैया, देख लिया था ना...नहीं हुआ सलेक्शन।"
-"अरे बुद्धू ! जो काफी कम नंबर से रह गये थे, उन केण्डिडेंट्स की सेकेंड लिस्ट निकली है...उसको चेक कर ।"
त्रिशा ने तुरंत लैपटॉप ऑपन किया और लिस्ट देखी...उसका नाम लिस्ट में चमक रहा था।
पुरे घर में खुशी की लहर दौड़ गई, आखिरकार त्रिशा की मेहनत सफल हो गयी थी।
काउन्सलिंग की डेट दो दिन बाद ही थी, आखरी वक्त पर रिजल्ट जो देखा था।
त्रिशा और उसके पापा ने सारे डॉक्यूमेंट्स फाइल में अच्छे से जमाये और तय समय पर डॉक्यूमेंट वेरिफिकेशन के लिए पहुँच गये।
सारे दस्तावेजों की गहनता से जाँच की जा रही थी।
त्रिशा का नबंर आया, जाँच अधिकारी ने सारे डॉक्यूमेंट्स देखे और फिर कहा-" और तो सब ठीक है लेकिन इन पर किसी राजपत्रित अधिकारी के हस्ताक्षर भी आवश्यक है।"
यह सुनकर त्रिशा और उसके पापा चिंतित हो गये। ये बात उन्हें पता ही नहीं थी...आजकल तो सेल्फ अटेस्टेड डॉक्यूमेंट्स मान्य थे मगर यहाँ उससे काम नहीं चला ।
अब क्या करें !
अनजान शहर, डॉक्यूमेंट्स किससे अटेस्टेड करवाये...त्रिशा के पापा दो-तीन डॉक्टर्स के पास गये, लेकिन उन्होंने अटेस्टेड करने के लिए मना कर दिया। पैसे लेकर भी कोई डॉक्यूमेंट्स पर साइन करने के लिए राज़ी नहीं हुआ।
त्रिशा की आँखें भर आयी...एक भूल की इतनी बड़ी सज़ा ! नहीं...नहीं...!!
कहाँ जायें...कुछ देर तक दोनों पिता-पुत्री विचारते रहे तभी त्रिशा को याद आया-"सत्यम सर ! वो भी तो इसी शहर में रहते हैं ना !"
त्रिशा के मन-मस्तिष्क में चलचित्र की तरह सारी घटनाएँ घूम गयी।
वो और उसकी सहेलियां कितना मजाक बनाती थी सर का...सर का स्वभाव बहुत सरल था साथ ही वे बड़े परोपकारी भी थे।
उनके पास फ्री में डॉक्यूमेंट्स अटेस्टेड करवाने वालों की भीड़ लगी रहती थी...और सर कभी किसी को मना नहीं करते थे।
त्रिशा हमेशा उन पर हंसती कि सत्यम सर अगर एक बार साइन करने के पचास रूपये भी लें तो भी कितना फायदा हो जाये इन्हें मगर नहीं, मिट्टी के माधो !
आजकल इतनी भलाई कौन करता है? मूर्ख बनकर फ्री में साइन कर देते हैं सर...
खैर सर का तो बाद में ट्रांसफर हो गया था लेकिन उनकी भलाई के किस्से सुनने में आते रहते थे।
और आज वही सर त्रिशा को अपनी डूबती नैया के खिवैया लग रहे थे।
वो पापा के साथ सर के घर जा पहुंची और हिचकते हुए उनसे अपने डॉक्यूमेंट्स अटेस्टेड करने के लिए पूछा।
सर ने बिना देर किये तुरंत सारे डॉक्यूमेंट्स अटेस्टेड किये और त्रिशा को अच्छे फ्यूचर के लिए ढेरों आशीष भी...
त्रिशा की आँखें एक बार पुनः भर आयी, लेकिन इस बार ये आँसू शर्मिंदगी और पश्चाताप के थे।
आज उसे पता चल गया था कि एक सच्चा शिक्षक, येन-केन-प्रकारेण पैसा कमाने के लालच में नहीं जीता बल्कि समाज के हित में कार्य कर लोगों का दिल जीतने में यकीन रखता है और यही एक सच्चे शिक्षक की पहचान है।