मैं कब आजाद होऊंगी
मैं कब आजाद होऊंगी
सिर का पल्लू ठीक करते हुए, गंगा ने पति रामसिंह के सामने चाय रखते हुए अपने मन की बात हिचकते हुए रखी, "सुनो जी, हमारी बेटी बड़े शहर में रहती है कार चलाती है, बहु भी नौकरी कर रही है , मगर..."
मगर क्या गंगा ? रामसिंह ने चाय का कप उठाते हुए पूछा।
"मगर मैं कब आजाद होऊंगी ?"गंगा ने कहा
तुम्हे कौन सा कष्ट है गंगा ? रामसिंह से जिज्ञासा वश पूछा।
पूरी जवानी इन बच्चों को पढ़ाने,इन्हे कामयाब करने में लगा दी,अब पोते होंगे तो उनके सामने भी मुझे इसी तरह काम करते रहना होगा क्या?"
"अरे तो इसमें हर्ज क्या है?" रामसिंह ने पूछा
गंगा बोली "सुनोजी,मैं चाहती हूं मैं भी अपनी अगली पीढ़ी को बताऊं कि मैं सिर्फ चूल्हे चुके तक सीमित नहीं हूं मैं भी अपने जमाने की पांचवी पास हूं?"
हां तो ठीक है बताओ तुम क्या चाहती हो?
गंगा ने कहा "मैं भी अपने, बहु बेटी की तरह कार चलाना सीखना चाहती हूं "रामसिंह ने चाय का कप वहीं रखते हुए कहा "बस! इतनी से बात है तो चलो अभी चलते है "और कहकर उसने घर के बाहर खड़ी मोटरसाइकिल की चाबी गंगा को पकड़ाते हुए कहा लो यहीं से शुरू करो । मैं पीछे बैठकर तुम्हे मोटरसाइकिल चलाते तो देख लूं।
गंगा ने चाबी ली और साड़ी का पल्ला अपनी से कमर में कस कर ठूंस लिया।