किताबों का मूल्य (लघुकथा)
किताबों का मूल्य (लघुकथा)
शहर के बड़े दशहरा मैदान में रामनवमी के दिन लगे बड़े मेले में पुस्तकों की दुकान पर एक बोर्ड को देख सौम्य के पैर ठिठक कर रुक गए।
सौ रुपए में एक किलो किताबे और पांच किलो किताब लेने पर एक किलो किताब मुफ्त।
किताब भी किलो में बिकती है कहीं ? सौम्य के लिए एक नया अनुभव था. उत्कंठा वस उसने दुकान की तरफ रूख किया जहां एक वृद्ध युगल ने मुस्कुराते हुए उनका स्वागत किया।
कोई ग्राहक ना देख सौम्या की जिज्ञासा और भी बढ़ गई। मुस्कुराते वृद्ध युगल की तरफ देखते ही उसने कहा। काका किताबें और किलो में ? यह तो मैंने पहली बार सुना है। किलो में तो सिर्फ रद्दियां ही बिकती है।
भारी मन से वृद्धा ने कहा
आज के मोबाइल के युग में नई पीढ़ी को पढ़ने की फुर्सत ही कहां है अब ये किताबें भी हमारे जीवन की तरह रद्दी ही तो हो चली हैं, अब इन्हें बिकना भी तो रद्दी के भाव ही पड़ेगा ना बेटा।