उत्तर
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वन विभाग में कार्यरत शैलेंद्र के आंसू सूख ही नहीं रहे ।जब भी उसे अपनी बेटी राधिका की अचानक हुई मौत का ख्याल आता,उसकी आंखें भर आती। दिल में एक ऐसी टीस उठती जो कलेजा अंदर तक चीर देती।
उसे अभी तक यकीन नहीं हो रहा था कि उसकी बेटी राधिका जो कुछ ही दिनों में इंजीनियर बनकर विदेश जाने की तैयारी कर रही थी की एलर्जी जैसे कारण से होस्टल में समय पर दवाई न मिलने के कारण अचानक मौत हो गई।
शैलेंद्र की आंखों के सामने बार- बार बेटी की मोहक बातें घूमती उसके जन्म के समय पहली बार उसको जब पता चला कि उसके घर बेटी हुई है तो उसने दोनो हाथों को ऊपर कर ईश्वर को धन्यवाद किया था मानो ईश्वर ने उसका घर खुशियों से भर दिया हो।
खबर देने वाली नर्स को उसने सीधे ही पांच सौ रुपए का नोट पकड़ा दिया था उसका सपना था एक बेटी उसके घर में होऔर ईश्वर ने वह इच्छा उस दिन पूरी, जो कर दी थी।मगर आज शैलेंद्र को भगवान से आज बहुत शिकायत थी।उसका दिल बार-बार भगवान से अनेकों प्रश्न कर रहा था।
मेरी राधिका को ही क्यों अपने पास बुलाया?
जब बुलाना ही था तो दी ही क्यों ?
मैंने किसी का क्या बुरा किया था जो मेरी सुख भरी जिंदगी में कभी ना भूलने वाला कष्ट दे दिया?
क्या भगवान इतना निष्ठुर है? शैलेंद्र और न जाने क्या-क्या सोचता मगर कारण कुछ भी हो इस सब के बीच वो खुद को अंततः बेबस ही पाता। और भगवान से शिकायत पर शिकायत ही करता ।
उसने कई बार खुद का विश्लेषण भी करना चाह मगर उसे याद नहीं आ रहा था कभी अपनी जिंदगी में किसी के साथ बुरा किया हो। भगवान के ऐसे किसी प्रकोप से डर कर ही तो वो हमेशा रहा।
उसकी हर पूजा-पाठ,दान-दक्षिणा, सब बच्चों की खुशहाली के लिए ही तो था।और आज इसी भगवान ने मुझसे मेरा सब कुछ छीन लिया! उसकी प्यारी बेटी हमेशा के लिए अब उसे छोड़ कर जा चुकी थी यह ख्याल ही शैलेंद्र के आंसू सूखने नहीं दे रहा था ।
जिंदगी के कुछ प्रश्न इतने जटिल होते हैं कि इंसान चाह कर भी इन प्रश्नों का न तो हल ही ढूंढ पता है और ना ही कारण।जिंदगी आंखिर धीरे-धीरे आगे बढ़ने लगी । लूटे- पिटे यात्री सा महसूस कर रहा शैलेंद्र भी आंखिर जिंदगी की जिम्मेदारियां धीरे-धीरे निभाने लगा मगर बाजार में, सड़क पर, कहीं भी,जब भी किसी प्यारी सी बिटिया को पापा का हाथ पकड़ कर चलते देखता ,तो उसका मन कभी ना खत्म होने वाली पीड़ा से भर उठता।
किसी बच्ची में अपनी राधिका ढूंढता,तो किसी बच्ची को मन ही मन आशीर्वाद देता और ईश्वर से प्रार्थना भी करता कि जो तुमने मेरी राधिका के साथ किया वो अब किसी की बेटी के साथ मत करना और एक शिकायत भरी गहरी टीस के साथ उसकी आंखें भर आती।
मगर भगवान ने इंसान को एक बहुत बड़ी शक्ति देती है वह भूलने की शक्ति यदि यह शक्ति ना होती तो किसी घर में कभी कोई खुशियां न मनती क्योंकि कोई ऐसा घर ही नहीं जहां कभी कोई हादसा या गम ना हुआ हो मगर समय की धूल यादों के दर्पण पर धीरे धीरे इस तरह चढ़ने लगती है कि उस दर्पण में थोड़े समय बाद कुछ भी दिखाई देना बंद हो जाता है।रह जाता है तो सिर्फ यादें और फिर जीवन की जिम्मेदारियां भी तो आगे बढ़ाने को मजबूर करती ही हैं न।
आज राधिका को भगवान के घर गए लगभग छः महीने बीत चुके हैं शैलेंद्र भी अपने जीवन में धीरे-धीरे लौटने लगा था।
आज शाम अपने केंद्रीय कार्यालय में बैठा शैलेंद्र अपनी नियमित कागजी कार्रवाई पूरी कर ही रहा था की वॉकी टॉकी पर एक खबर फ्लैश हुई। साहब निकट के शहर के बाहर एक मोहल्ले में हिरण का बच्चा दिखाई दिया है तुरंत उसे नहीं बचाया गया तो बढ़ते अंधेरे के साथ ही रात में आवारा कुत्ते या मांसाहारी लोग उसका शिकार कर सकते हैं।
शैलेंद्र ने सारा काम छोड़ा और स्थानीय पुलिस को सूचना दे तुरंत एक जीप लेकर इस लोकेशन की तरफ निकल पड़ा। जब तक शहर के बाहर बताई गई जगह पर शैलेंद्र पहुंचा तब तक काफी भीड़ इकट्ठा हो चुकी थी हर कोई हिरण के बच्चे को देखने को उत्सुक नजर आ रहा था।
काफी मशक्कत के बाद शैलेंद्र भीड़ को हटाकर हिरण के बच्चे तक पहुंच पाया स्थानीय पुलिस की टीम का सहारा लेकर पहले भीड़ को हटाया।
आरंभिक निरीक्षण से शैलेंद्र समझ गया बच्चा बहुत छोटा है ज्यादा से ज्यादा दो दिन का ही है वह ठीक से अपने पैरों पर खड़ा भी नहीं हो पा रहा था । शैलेंद्र ने हिरण के बच्चे का निरीक्षण किया तो पाया वह शायद खड़े होने के समय एक दो बार गिर गया था जिस कारण उसकी पिछली टांगों में कुछ खरोच भी आ गई थी।
थोड़ी ही देर में अंधेरा होने वाला था रात होने से पहले बच्चे का उपचार करा कर उसे सुरक्षित करना जरूरी था। उपचार करने एवं उसे सुरक्षित क्षेत्र में भेजने के लिए उसे तत्काल यहां से हटाना बहुत जरूरी था ।मगर पिछले पैरों में लगी चोट के चलते हिरण का बच्चा चलने में असमर्थ था शैलेंद्र ने बच्चे को अपनी गोद में उठाया और अपनी जीप की तरफ चल पड़ा।
अभी कुछ ही कम चला था की शैलेंद्र को अपने से थोड़ी ही दूर एक पेड़ के पीछे,एक हिरनी दिखाई दी जो एकटक उसकी तरफ ही देखे जा रही थी। शैलेंद्र को समझते देर न लगी बच्चे से इतनी दूर खड़ी यह हिरनी ही इस बच्चे की मां है। मगर इतने इंसानों को देख घबराई हिरनी इस समय अपने बच्चे को दूर से ही देखने को मजबूर थी ।
शैलेंद्र का मन हुआ कि वह इस हिरनी के पास जाए और उसे यह बच्चा लौटा दे मगर शैलेंद्र ने एक कदम उसकी तरफ बढाया ही था कि वो हिरनी लगभग बीस कदम पीछे हट कर फिर उसे ही देखने लगी। शैलेंद्र को पता था, कि वह उसके बच्चे को अगर ले गया तो ये बच्चा अपनी मां से हमेशा के लिए बिछड़ जाएगा। लेकिन बच्चे की सुरक्षा के लिए बच्चे को शहर से दूर सुरक्षित जगह ले जाना भी जरूरी था। शैलेंद्र का मन हुआ कि वह इस मां को बताएं कि वह उसके बच्चे के जीवन को सुरक्षित करने के लिए अपने साथ ले जा रहा है । भावना और जिम्मेदारियों के बीच फंसा शैलेंद्र अचानक हिरनी की बेचारगी देख अंदर तक हिल गया शैलेंद्र की आंखों में अचानक आंसू भर आए उसकी आंखें एक बार फिर ईश्वर की तरफ उठ गई, शैलेंद्र को अचानक अपनी बेटी राधिका के जाने और अपनी मजबूरी भरी याद उभर आई ।
वह जिस तरह से बिना कारण अपनी बेटी से दूर हुआ था आज इस बच्चे की मां भी तो अपने बच्चे से हमेशा के लिए दूर हो रही है अब यह मां अपने बच्चों से कभी दोबारा नहीं मिल पायेगी।
मगर शैलेंद्र ने खुद को समझाते हुए मन ही मन तर्क दिया "मगर मैं तो इस बच्चे की जान बचाने के लिए ही इसे इसकी मां से दूर कर रहा हूं इसकी मां को पकड़ना इस अंधेरे में मुमकिन नहीं होगा इस बच्चे को छोड़ा तो रात में कोई जानवर या शिकारी इसका शिकार कर लेगा, ऐसे में मैं तो इस बच्चे की जान ही बचा रहा हूं।"शैलेंद्र हिरण के बच्चे को लेकर बिना हिरनी की तरफ देखे जीप में बैठ गया ।जीप धुआं छोड़ते हुए आगे बढ़ गई।
तभी उसके मन में ख्याल आया शायद राधिका के लिए भी ईश्वर ने कुछ ऐसा अच्छा ही सोच कर अपने पास बुला लिया होगा, ताकि आने वाले जीवन की कष्ट से वह सुरक्षित रह सके.
अब उसे ईश्वर से कोई शिकायत नहीं थी शायद उसे अपने कभी न खत्म होने वाले प्रश्नों का "उत्तर" मिल गया था....
