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Sanjay Arjoo

Abstract Inspirational

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Sanjay Arjoo

Abstract Inspirational

आदमखोर

आदमखोर

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टीवी पर पैरा ओलंपिक में अठारह वर्षीय दोनो पैरों से लकवा ग्रस्त खिलाड़ी "ध्रुव" को देश के लिए खेलते हुए अपनी टीम का लीडर बनकर गोल्ड मेडल पहनते हुए देख पूरे देश का सीना गर्व से चौड़ा हुआ जा रहा था । लेकिन सत्येंद्र को टीवी पर दिखाए जा रहे इस गौरव पूर्ण पल में मुस्कुराते "ध्रुव"को देख अपने बचपन के दोस्त "नारंग" की याद उभर आई थी।

सत्येंद्र दूसरी कक्षा में पढ़ता था तब अचानक ही एक बच्चा जानवर की तरह चलता हुआ उसकी क्लास में आया था । सब बच्चे एकदम डर गए थे वह दोनों हाथ और दोनों पैरों पर चलता हुआ कमरे में जो घुसा था। मगर मुस्कुराते हुए उस बच्चे के चेहरे पर उभरी स्कूल आने की खुशी ने सबके मन के डर को एकपल में ही दूर भी कर दिया था। उसके पिता भी उस बच्चे के साथ क्लास रूम तक उसे छोड़ने आए थे और कुछ देर अध्यापक से बात कर चले भी गए थे।

टीचर ने पहले दिन ही नारंग को सत्येंद्र के पास ही बैठाया था पहले दिन ही नारंग, सत्येंद्र का दोस्त बन गया था कुछ ही दिनों में स्कूल में नारंग की समझदारी और चतुराई की प्रशंसा भी होने लगी थी। नारंग आम बच्चों की तरह दिन में मिलने वाली लंच ब्रेक में अपने दोस्तों की तरह इधर-उधर दौड़ तो नही सकता था। वो या तो क्लास के दरवाजे पर बैठा सत्येंद्र की खेल गतिविधियों पर तालियां बजाता रहता या कभी बेकार पड़े कागजों को इकट्ठा कर इन कागजों से कुछ न कुछ नया बना देता , कभी नांव ,कभी जहाज,कभी मेंढक, कभी जादू की छड़ी तो कभी तरह तरह के फूल और न जाने क्या-क्या बनाता रहता।

जैसा कागज मिलता, नारंग वैसी ही आकृति बना डालता था सच में बचपन से ही वह कलाकार था सत्येंद्र के जीवन में कला का पहला परिचय नारंग ने नहीं कराया था।

सत्येंद्र और नारंग का साथ लगभग तीन साल रहा इस दौरान सत्येंद्र को न केवल नारंग की विशेषताओं का पता चला बल्कि नारंग की मजबूरियां भी उसने बखूबी महसूस की थी। नारंग जितना अच्छा कलाकार था उतना ही खुश दिल भी था ये सत्येंद्र जानता था मगर कुछ बच्चे उसे आए दिन लंगडा कहकर छेड़ते तो कोई उसे राह चलते "अबे लंगड़े रास्ते से हट "कह कर उसे अपमानित करते तो कोई उसके साथ खेलने को ही मना कर देता कुछ बच्चे उसे छेड़ कर भाग जाते नारंग गुस्से से चारों हाथों पैरों पर दौड़कर जब उनका पीछा करता तो उसे इस तरह चलता देख वो लोग खूब हंसते और मजा लेते । नारंग गुस्से में भर उठता और उन्हें गालियां देने लगता ऐसे में सत्येंद्र ही उन बच्चों से नारंग को अलग कर नारंग को समझाता और शांत करता मगर ना तो नारंग के लिए ये इतना आसान था और ना ही सत्येंद्र के लिए ये सामाजिक तिरस्कार झेलना।

अपनी अपंगता के चलते स्कूल में अक्सर नारंग का झगड़ा होता रहता जिसके चलते नारंग झगड़ालू, बच्चे के रूप में जाना जाने लगा।

मगर नारंग एक अच्छा कलाकार भी है और बहुत अच्छा दोस्त भी। वह अपाहिज था तो क्या हुआ विवेक में तो किसी से कम ना था। नारंग से सत्येंद्र ने न जाने कितनी तरह के कागजों की कलाकृतियां बनानी भी सीखी थी, जो आज भी सत्येंद्र अपने बच्चों को बनाकर दिखाता है सत्येंद्र कोई कलाकृति बनाता और बच्चे उससे पूछते हैं पापा आपने ही सब कहां से सीखा तो सत्येंद्र को नारंग याद उभर आती।

यूं तो नारंग बहुत कम समय के लिए ही स्कूल आया था पांचवी कक्षा के बाद सत्येंद्र शहर पढ़ने जाने लगा परंतु नारंग को वहीं गांव में ही रोक लिया गया । पांचवी के बाद उसकी विकलांगता और आर्थिक तंगी के चलते उसकी पढ़ाई संभव न हो सकी।

मगर सत्येंद्र की नारंग से दोस्ती बनी रही धीरे-धीरे सत्येंद्र अपनी पढ़ाई में लग गया मगर जवान होते नारंग के पास ना तो पढ़ने को कुछ था और ना ही करने को ही कुछ था खेती बाड़ी में जो काम बैठे बैठे हो सकता भी कर पाता मगर ज्यादातर बहुत कुछ करने की स्थिति नहीं थी। अब घर पर ही रहने के कारण उसे बेकार के कागज भी नहीं मिलते थे जिससे वह अपनी कला को ही संजोग कर अपना मन बहला लेता। वह बस दिन भर दरवाजे पर बैठा लोगों को ताकता रहता। यह असमर्थता और खालीपन उसके मन में घुसा भरने लगी थी।

पैरों की कमजोरी और हाथों के अधिक इस्तेमाल के चलते अब उसके हाथ बहुत मजबूत हो चले थे जिस चीज को एक बार पकड़ लेता उसके हाथों की मजबूत पकड़ के चलते दो-दो आदमी भी एक साथ लगकर भी उसकी मजबूत पकड़ से सामान छुड़ा नहीं पाते थे।

सड़क किनारे घर की दहलीज पर बैठा नारंग मजबूर था मन बहलाने को अगर वह कभी सड़क पर खेलने वाले छोटे बच्चों से बातें करता तो बच्चों के पिता अपने बच्चों को नारंग से दूर हटा लेते हैं उसके सभी साथी अपने-अपनी पढ़ाई या घरेलू कार्यों में लगे रहते और नारंग के पास सिर्फ सड़क ताकने और सड़क पर चलने वाले लोगों से बात करने के सिवा कोई और विकल्प नहीं था। ऐसे में कोई शरारती लड़का अगर उसे बंदर, लांगुर, या लंगड़ा कह देता तो वह गुस्से में गालियां देने लगता और उसका पीछा करता है शरारती लडके दौड़कर निकल जाते और नारंग गुस्से में दांत पिस्ता रह जाता ।

बढ़ती उम्र के साथ उसमें ताकत भी बहुत बढ़ गई थी और गुस्सा भी सत्येंद्र कभी-कभी उसे मिल जाता तो वह अपनी व्यथा सुनाता मगर सत्येंद्र भी अपनी बढ़ती पढ़ाई और व्यस्तता के चलते मजबूर था। अचानक एक दिन खबर आई की नारंग ने एक लड़के का पैर पकड़ लिया और उसे इतनी बुरी तरह से काटा कि अपने मुंह से ही उसका मांस निकाल दिया,इस खबर के चलते ही ये खबर आग की तरह फैल गई की नारंग आदमखोर हो गया है।

सत्येंद्र इस खबर से बहुत दुखी हुआ, नारंग आदमखोर नहीं हुआ उसे गुस्सा और मानसिक तनाव है ऐसे में कोई अगर उसे चिढ़ता है तो वह क्या करेगा? जितेंद्र का बड़ा मन था वह जाकर उससे मिले और उसकी बात लोगों तक पहुंचाये,मगर पूरे गांव के सामने अकेले सत्येंद्र की ही कौन सुनता सत्येंद्र अपनी पढ़ाई के चलते भी तो मजबूर था।

नारंग के आदमखोर होने की खबर के चलते पूरे गांव के बच्चों और लोगों ने नारंग के घर की गली से निकलना ही बंद कर दिया । गांव वालों के व्यवहार से नारंग का परिवार न केवल क्षुब्ध था बल्कि उन्हें नारंग पर भी बहुत गुस्सा आ रहा था, नारंग के चलते ही पूरे गांव में उनकी न केवल बदनामी हो रही थी बल्कि उनके गांव छोड़ने की नौबत तक आ गई थी। गांव वालों का दबाव था कि या तो वो लोग गांव छोड़ दें या नारंग को पागल खाने या किसी सुधार गृह में भेज दे मगर नारंग गांव में ही रहना चाहता था पुरानी बचपन की यादों के बीच।

सत्येंद्र को याद है उस दिन उसका 12वीं का रिजल्ट आया था । वह खुश था वह अपनी स्कूल में फर्स्ट आया था अपनी खुशियों को बांटने के लिए सबसे पहले अपने बचपन के दोस्त नारंग के घर की तरफ दौड़ा मगर उसकी झोपड़ी के बाहर खड़ी भारी भीड़ देख उसका मन शंका से भर उठा । वो भीड़ को हटाते हुए आगे बढ़ रहा था कि भीड़ में ही सत्येंद्र ने सुना रोज-रोज की शिकायतों और गांव वालों के दबाव के बावजूद जब नारंग न तो घर छोड़ने को तैयार था और न ही सुधार गृह जाने को । ऐसे में उसकी जिद के चलते, रोज रोज के झगड़े और अकेले पड़ जाने के डर से कल उसी के घर वालों ने उसे खाने में जहर दिया था।

सत्येंद्र को आज टीवी पर वह राष्ट्रीय हीरो ध्रुव नहीं बल्कि अपना पुराना दोस्त,"नारंग" दिख रहा था, उसकी आंखें भर आई "काश किसी ने मेरे दोस्त "नारंग" को भी सही तरीके से समझा होता तो नारंग जैसा दोस्त न केवल उसके साथ होता बल्कि देश के लिए कुछ न कुछ बड़ा कर रहा होता ।

तभी सत्येंद्र के छोटे बेटे ने पूछा" पापा आपकी आंखें गीली क्यों है?" सत्येंद्र कह उठा "कुछ नहीं बेटा मैं आज एक "कलाकार" के ऐसे कत्ल पर रो रहा हूं , जिसे बहुत पहले आदमखोर कह कर मार दिया गया ।



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