बेटे का घर
बेटे का घर
सुरेश को डर था, कहीं सुभाष अंकल उसके पिता रामनरायण के प्रोग्राम को कैंसिल ना करा दें। तभी मुस्कुराते हुए रामनारायण ने एक लंबी सांस ली और खुद कुर्सी पर बैठते हुए, उसने, सुरेश को पास रखे स्टूल पर इशारे से बैठने को कहा।
सुरेश को लगा उसके पिता उसके साथ उसके घर चलकर रहने के उसके प्रस्ताव से खुश हैं। वह रामनारायण के पास रखे स्टूल पर आकर बैठ गया। रामनारायण ने हाथ से इशारा कर अपने मित्र सुभाष को बाहर जाकर थोड़ा इंतजार करने को कहा और सुरेश की तरफ देखते हुए बोला
" मैं तुम्हारे प्यार और भाव का सम्मान करता हूं बेटा, मगर मैं चाहता हूं मेरे वहां जाने से पहले तुम अपनी पत्नी सुरेखा और बच्चों से भी विचार-विमर्श कर लो कि क्या वो सब मुझे सदा के लिए अपने साथ रखने के लिए तैयार हैं?" इस प्रश्न के उत्तर में सुरेश चुप था
रामनारायण एक लंबी सांस लेते हुए उठा और अपने मित्र सुभाष के साथ मंदिर जाने के लिए निकल गया।
सुरेश के मौन में रामनारायण को अपना उत्तर जो मिल गया।