विदाई
विदाई
सात फेरों के बाद, विदाई के पलों में घर की दहलीज से पीछे चावल फेंकते हुए, रितिका भावुक हो गई थी, उसे याद आ रहा था, जब वह पहली बार इंजीनियरिंग की पढ़ाई के लिए घर से दूर जाने के लिए निकल रही थी, तब उसके पिता प्रमोद ने कितनी ही हिदायते दी थी। किसी अनजान से बातें ना करना, दोस्तों पर धीरे - धीरे ही भरोसा करना, बाहर का खाना मत खाना, देर रात तक होने वाली पार्टियों से बचना और न जाने क्या - क्या। मगर इस बार भीं तो वो घर छोड़ कर जा रही है इस बार उसके पिता उसके आसपास क्यों नही दिख रहे?
ड़बड़बाई आंखों से उसने देखा उसके पिता दोनो बाहें फैलाए उसको गले लगाने को आतुर खड़े है।
रितिका सीधे पिताजी कें गले से जा लिपटी और सुबकते हुए बोली "पिताजी जब मैं पहली हर घर से निकली थी तब आपने कितनी हिदायतें दी थी आज तो मैं इस दहलीज को हमेशा के लिए छोड़कर जा रही हूं आप कुछ क्यों नहीं कह रहे?
रूंधे स्वर में प्रमोद ने कहा
"बेटा आज तुझे मुझसे नही अपनी मां से सीखने की जरूरत है कि कैसे अपना घर बसाया, चलाया और टूटने से बचाया जाता है"