नेटवर्क (लघुकथा)
नेटवर्क (लघुकथा)
वेब सीरीज देख रही उमा को जैसे ही कमजोर नेटवर्क के चलते सर्च मोड़ का सिग्नल टीवी पर दिखाई दिया, उमा ने झल्लाकर रिमोट फेंकते हुए कहा "मम्मी इस नेटवर्क की सर्विस बहुत खराब है इसे आज ही बदलो वर्ना मैं ये टीवी ही तोड़ दूंगी" ।
मम्मी सरिता, बारिश के मौसम के चलते पापा की डिमांड पर ड्राइंग रूम में बैठे पापा के लिए रसोई में चाय पकोड़े बना रही थी, सरिता ने थोड़ा झिझकते हुए उमा की तरफ देखा । तब तक उमा नेटवर्क सर्विस वाली एजेंसी की हेल्प लाइन पर नंबर लगा कर डांटना भी शुरू कर चुकी थी ।
इधर सरिता चाय- पकोड़े लेकर ड्राइंग रूम पंहूची तब तक उमा की मोबाइल पर डांटने और चींखने की आवाज काफी बढ़ चुकी थी।
सरिता ने चाय मेज पर रखी और तेज कदमों से उमा के पास जाकर फोन उसके हाथों से खींचते हुए बोली
"थोड़ा सब्र भीं रखना सीखो, हमारे जमाने में तो बारिश में नेटवर्क ही नही आता था मगर हम गुस्सा नही परिस्थियों को समझते थे,छोटा भाई तो एंटीना पर बैठा उसे ही घुमाता रहता था तुम्हारी बड़ी मौसी पूरे समय बताती रहती थी अब नेटवर्क आया, अब नही, वो चीजों की कमियां भी हमारे लिए पारिवारिक ताल मेल में बदल जाती थी मगर तुम आजकल के बच्चों को हर चीज, हर हाल में, हमेशा चाहिए, वर्ना पूरा घर सर पर उठा लेते हो दिख नही रहा बाहर बारिश हो रही है।"
अब चुपचाप पापा के पास जाओ और इस सुंदर मौसम में चाय पकोड़ों का मजा लो।
उमा निरुत्तर थी।