Priyanka Gupta

Abstract Inspirational

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Priyanka Gupta

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मैं भी खूबसूरत हो गयी !

मैं भी खूबसूरत हो गयी !

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बॉस के पास एक महत्वपूर्ण फाइल पर चर्चा करने जा रही थी कि तब ही मेरे कानों ने मेरा नाम सुना, "श्यामा का नाम उसकी सूरत के अनुरूप ही है। ",मेरी किसी सहकर्मी ने कहा। 

"लेकिन सूरत कैसी भी हो, सीरत बहुत बढ़िया है। ",तब ही दूसरी सहकर्मी ने कहा। 

"तुम तो कहोगी ही, अपनी आधी से ज़्यादा फाइल्स उसी से जो निपटवाती हो। ",किसी ने अपनी हँसी दबाते हुए कहा। 

"अब यार इसे तो कोई मिलने से रहा, मुझे जब भी अपने मंगेतर से बात करनी होती है या मिलना होता है तो इससे थोड़ी सी मदद माँग भर लेती हूँ और क्या ?",जिन मोहतरमा की मैं मदद करती थी, उन्होंने हँसते हुए कहा। 

मन तो हुआ कि अभी जाऊँ और सुना दूँ कि मुझे क्यों नहीं मिलेगा ?क्या कमी है मुझमें ?सूरत से भी सीरत का अच्छा होना जरूरी है। ख़ूबसूरत चेहरा कितने दिन खूबसूरत रहेगा ? लेकिन कह नहीं पायी, क्यूँकि सरकारी नौकरी के बाद भी ;कई सालों के प्रयास के बाद भी माँ -बाबा मेरे लिए कोई ढंग का सा रिश्ता कहाँ ढूंढ पाए हैं। 

मैं, श्यामा, जब से होश सम्हाला है ;तब से अपनी माँ से यही सुनती आयी हूँ, "सूरत से भी महत्त्वपूर्ण सीरत है। तुम ख़ूबसूरत नहीं हो तो क्या, लेकिन दिल हमेशा ख़ूबसूरत बनाये रखना। "

मेरी माँ के अनुसार भी शायद ख़ूबसूरती का अर्थ ग़ौर वर्ण होना था। इसलिए मेरे श्याम वर्ण के कारण वह मुझे दिलासा देने की कोशिश करती थी। 

मैं, श्यामा अपने नाम के अनुरूप, श्याम वर्ण हूँ। अब हमारे समाज में कोई लड़की, वह भी श्याम वर्ण हो तो, उसके जन्म के साथ ही उसकी शादी की चिंता मुँह बाये सामने खड़ी हो जाती है। मेरे जन्म के साथ ही मेरी माँ को भी मेरी दादी से ताने सुनने पड़े थे ;एक तो लड़की पैदा की, वह भी काली। मेरे बाद हुई मेरी छोटी बहिन और भाई दोनों ही दादी की भाषा में कहूँ तो मलाई की जात थे। मैंने मम्मी की बात गाँठ बांध ली थी कि दिल ख़ूबसूरत होना चाहिए, सीरत अच्छी होनी चाहिये। इसलिए मैं बचपन से ही एक बेहतर इंसान बनने की कोशिश करती रही। मैं कभी किसी को न नहीं कर पाती हूँ। हमेशा सभी की मदद के लिए तैयार। इसीलिए घर और ऑफिस दोनों जगह ही मैं हमेशा काम के बोझ से लदी रहती हूँ। लगातार काम करते रहने और मना न कर पाने के कारण मैं चिड़चिड़ी भी होती जा रही हूँ। अंदर ही अंदर कुढ़ती रहती हूँ क्यूँकि इतनी अच्छी सीरत के बाद भी मेरी शादी नहीं हो पा रही थी। 

मेरी माँ की सीख से ज़्यादा मुझे फेयर एंड लवली के विज्ञापन ने प्रभावित किया। इस विज्ञापन ने मेरी माँ को गलत साबित किया। मैं समझ गयी थी कि चाहे निजी ज़िंदगी हो या करियर, अगर आपको आगे बढ़ना है तो चेहरे पर निखार ज़रूरी है। बार -बार लड़कों द्वारा ठुकराया जाना, माँ ग़लत और फेयर एंड लवली सही सिद्ध हो रही थी। 

फेयर एंड लवली के क्रीम के उपयोग के बाद भी मैं खुद की रंगत निखार नहीं पा रही थी। लगातार ठुकराए जाने के कारण में कुंठा का शिकार भी होने लगी थी। ऐसे में ही मेरी सहकर्मी की बातों ने मुझे बहुत गुस्सा दिलाया, लेकिन मैं खून के घूँट पीकर रह गयी थी। 

रोज़ दिन की तरह मैं ऑफिस से अपने घर आ गयी थी। अगले दो दिन सैटरडे और संडे थे। तब ही टीवी पर जनता कर्फ्यू की घोषणा हुई। उसके बाद लॉक डाउन। मेरा ऑफिस जाना बंद हो गया और इतना ही नहीं लोगों का हमारे घर आना -जाना भी बंद हो गया था। घर और ऑफिस दोनों ही जग़ह मेरे रंग को लेकर होने वाली बातें मुझे अब सुनाई नहीं दे रही थी। मेरे ऊपर काम का बोझ भी बहुत कम हो गया था। छोटी बहिन के कहने पर अपनी रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए मैंने योग और प्राणायाम करना शुरू किया। थोड़ी फुरसत मिलने के कारण किताबें पढ़ना और पेंटिंग जैसे अपने पुराने शौक फिर से पूरे करने लगी। 

अपने लिए जैसे ही जीना शुरू किया, मैं ख़ुश भी रहने लगी थी। उन्हीं दिनों मैंने 'बाला ' मूवी देखी। उसने मुझे सिखाया कि ख़ूबसूरती हममें ही होती है। ख़ूबसूरती के लिए दुनिया की नहीं बल्कि अपने स्वयं की नज़र चाहिए होती है। अगर हम खुद को ख़ूबसूरत मानेंगे तो ख़ूबसूरत होंगे। इस सीख ने मुझ पर जादू सा असर किया और मैं सही में ख़ूबसूरत दिखने लगी। मेरा आत्मविश्वास बढ़ने लगा।अपने छोटे भाई -बहिन को उनके कामों के लिए न कहने में अब मुझे दिक्कत नहीं होती थी। 

लॉक डाउन के बाद ऑफिस खुले, मैं उसी आत्मविश्वास से अपने ऑफिस गयी। अब मैंने सीरत अच्छी करने

और खुद को एक खूबसूरत दिल की मालिक साबित करने के चक्कर में दूसरों को हमेशा हां कहना छोड़ दिया था। मैंने अपनी सहकर्मी की फाइल्स निपटाना बंद कर दिया था। इसी बीच फेयर एंड लवली ने भी अपना नाम परिवर्तित करके ग्लो एंड लवली कर दिया। चेहरे पर चमक ही चेहरे को ख़ूबसूरत बनाती है और चमक आती है प्रसन्नता से तथा प्रसन्न रहने के लिए जीना जरूरी है। जब से मैंने जीना शुरू किया, मैं भी खूबसूरत हो गयी। 

मैंने अपनी माँ को भी बताया कि, "माँ, आपको हमेशा ऐसे कहना चाहिए था कि तुम बहुत ख़ूबसूरत हो, लेकिन तुम्हारा दिल भी ख़ूबसूरत होना चाहिये। सूरत जितनी अच्छी है, सीरत भी उतनी ही अच्छी होनी चाहिए। "


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