achla Nagar

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मैली चाँदनी

मैली चाँदनी

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बात उन दिनों की है जब मैंने 16 साल में कदम रखा था।इठलाते, बलखाती नदी की तरह कल कल की ध्वनि करती हुई, झरने की तरह बहती जा रही थी। इस उमर में कब पैर फिसल जाए पता ही नहीं चलता। इस उम्र में कोई हमें सराहता है तो वही हमें अपना सा लगने लगता है बड़ा अद्भुत का एहसास है ये जीवन के इस दौर का। सभी कुछ रूपहला सा लगता है। 


फिर अचानक से मेरे जीवन में एकदम हलचल सी मच गई, जब मैं एक दिन कॉलेज से लौट रही थी तभी मेरी किताब मेरे बैग से गिर गयी मुझे पता ही नहीं लगा, तभी मेरे पीछे से एक आवाज आई "दीदी" मैंने पलट कर देखा तो एक छोटा मासूम सा बच्चा खड़ा है हाथ में किताब लिए और वह बोला दीदी, एक लड़के की तरफ इशारा करते हुए, उस भैया ने यह किताब दी है फिर बच्चा बोला यह आपकी किताब है मैंने उस किताब पर अपना नाम देखा तो उस पर मेरा ही नाम लिखा था तो मैंने कहा हां यह मेरी ही किताब है इससे पहले कि मैं कुछ कहती छोटा बच्चा एकदम भाग गया मैंने फिर उस लड़के के पास जाकर धन्यवाद कहा, उसने कहा मेरा नाम राकेश है। फिर हम रोज एक दूसरे से हल्की फुल्की बातें करने लगे मुझे एहसास ही नहीं हुआ कि हमारी मुलाकातें कब प्यार में बदल गई। फिर तो हम मिलने लगे हमारे प्यार की पींगे बहुत ऊंची उड़ान भरने लगी मैंने सोचा इससे अच्छा जीवनसाथी मुझे और कोई नहीं मिल सकता फिर मुझे लगा कि जैसे मैं कोई परी लोक में आ गई हूं मुझे अपनी जिंदगी बिल्कुल परियों की कहानी सी लगने लगी।


 एक दिन मुझे राकेश ने कहा कि मुझे पिताजी के साथ कुछ घर के काम से मुंबई 2 महीने के लिए जाना है यह सुनकर मैं बहुत उदास हो गई परंतु राकेश को जाना बहुत जरूरी था तो वह चला गया एक दिन राकेश का मैसेज आया कि मेरा फोन खराब हो गया है, इस पर सिर्फ मैसेज से ही बात हो पाएगी। यह मैं मेरा नया फोन नंबर है। एक दिन एस एम एस आया कि चांदनी मै कल किसी जरूरी काम से वापस आ रहा हूं सिर्फ एक दिन के लिए, क्या तुम मुझे जहां मिलती थी वहां थोड़ी देर के लिए आ सकती हो? चांदनी ने उसी वक्त मैसेज कर दिया हां जरूर। फिर क्या था चांदनी की खुशी से बांछें खिल गई वह झटपट तैयार होकर मिलने चली गई वहां तो सचमुच में बिल्कुल अद्भुत नजारा था सब तरफ फूलों से सजावट थी, मधुर संगीत से वातावरण गूंज रहा था, शाम का झुटपुटा समय था, फिजाओं में जैसे बाहर आ गई थी फिर संगीत की एक धुन सुनाई थी, "बहारों फूल बरसाओ मेरा महबूब आया है"। वह तो ठगी सी रह गई फिर उससे एक आवाज़ आई कि कोने में कुर्सी पर एक रेशमी रुमाल रखा है उसे अपनी आंखों पर बांध लो उसने वह रूमाल अपनी आंखों पर बांध लिया तभी किसी ने उसका हाथ पकड़ा और वह उसके साथ चलती चली गई पर यह क्या उसने मन ही मन में सोच लिया कि यह उसका स्पर्श नहीं है फिर उसने अपने आपको समझाया धत्त तेरे की ऐसा क्यों सोचती है? वह नहीं तो और कौन हो सकता है। चांदनी को उसके स्पर्श में कुछ अश्लीलता महसूस हुई तो चांदनी ने कहा यह क्या हो गया है राकेश तुम्हें, तुम कुछ बोल क्यों नहीं रहे हो फिर उसने अपनी आंखों से वह रूमाल हटा दिया तो सामने किसी अजनबी को देख कर चौक गई वह चिल्लाई तुम कौन हो राकेश कहाँ है परंतु उसने चांदनी की बात बिल्कुल नहीं सुनी और उसके साथ अपनी हवस मिटा कर चला गया ।


वो वहाँ रोती रही और सोचने लगी क्या होगा मेरा फिर उसने निश्चय किया मैं अपने जीवन का ही अंत कर दूंगी यह सोच कर भेज लो घर लौट आयी। फिर अचानक उसी दिन उसके घर की घंटी बजी तो उसने दरवाजा खोला, तो सामने राकेश खड़ा था उसके पीछे उसके माता-पिता भी थे वह मेरा हाथ मेरे माता-पिता से मांगने आए थे राकेश ने पहले से उसको नहीं बताया था कि मैं आज ही आ रहा हूं ।फिर उसके माता-पिता से मेरे माता-पिता की बातचीत हो गई और हमारा रिश्ता पक्का हो गया। यह कैसी भाग्य की विडंबना है कल तक तो मैं राकेश से शादी करना चाहती थी परंतु आज तो मेरे सामने अंधकार छा गया है। अब ना मैं मर सकती हूँ न हीं जी सकती हूँ। राकेश ने सोचा चांदनी को शायद शर्म आ रही है इसीलिए कुछ नहीं बोल रही। जब राकेश और उसके माता-पिता चले गए तब शाम को राकेश का फोन आया कि चांदनी आज शाम को मुझे तुमसे मिलना है चांदनी ने कहा ठीक है और वह फिर उससे शाम को मिलने चली गई जब वह वहां पहुंची तब राकेश किसी से फोन पर बात कर रहा था तो उसे चांदनी के आने का पता ही नहीं चला जब चांदीनी ने उसे पीछे से आलिंगन किया तो राकेश अचकचा गया और पलट कर देखा तो चांदनी की आंखों में आंसू थे वह हैरान रह गया और पूछा, "क्या हो गया है तुम्हें" फिर तो वह और सुबकियाँ बांधकर रोने लगी, उसके बहुत पूछने पर चांदनी ने अपनी पूरी दुख भरी कहानी सुना दी। 


राकेश भी चकरा गया पर अगले ही पल राकेश ने अपने आप को संभाला और उसने बड़े प्यार से चांदनी से कहा, "पगली तुम तो चांदनी हो तुम्हारा काम है चांदनी फैलाना, मेरी चांदनी कभी मैली नहीं हो सकती"। फिर उसने उसे अपनी बातों से आश्वासन दिया कि मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता मैंने तुम्हारी रूह से प्यार किया है ।अरे तुम कौनसी बेकार की बातें लेकर बैठ गई। मैं तुम्हारे लिए चॉकलेट लाया हूं। हमारे लिए आज बहुत खास दिन है ।फिर उन दोनों की 15 दिनों के अंदर शादी भी हो गई। परंतु दोनों की परियों जैसी कहानी का जो घाव है, वह तो वक्त के हाथों ही ठीक होगा। इतनी गहरी चोट का तो इलाज सिर्फ वक्त के मलहम से ही भरेगा। 


हिंदी में एक कहावत है: "वक्त से बड़ा कोई मलहम नहीं है"।


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