निःस्वार्थ प्यार
निःस्वार्थ प्यार


सोना और रुपा दो अंतरंग सहेलियां थी जो एक दूसरे पर जान छिड़कती थी। सोना को जन्म से ही नहीं दिखाई देता था इसलिए सोना बहुत उदास रहती थी पर रूपा उसको हमेशा प्यार करती थी। एक बार बातों बातों में सोना और रुपा प्रकृति के बारे में बातें कर रहे थे , सोना रुपा की आंखों से सारा संसार देखती थी और सब कुछ महसूस भी करती थी।
एक दिन रूपा ने कहा चलो मैं तुमको एक अनोखी जगह ले जाती हूँ, वहां तुमको बहुत ही अच्छा लगेगा,सोना बड़े ही बुझे मन से बोली क्या अच्छा या क्या बुरा.....यह बंद कमरा हो या खुला आसमान मुझे कुछ नहीं पता लगता... उसको रुपा ने बहुत समझाया तो वह राजी हो गई।
फिर दोनों परिवार वालों ने एक दिन समुद्र के किनारे पिकनिक मनाने की योजना बनाई। और दूसरे दिन हम सब मिलकर निश्चित जगह पर पहुंच गये। हमेशा सोना काला चश्मा पहने रहती थी दोनों परिवार के सदस्य इधर-उधर के नजा़रे देखने में मगन हो गए। परंतु रूपा सोना के साथ एक जगह पर बड़े से पत्थर पर बैठ गई और सोना को बताने लगी, देखो हमारे सामने बहुत ही सुंदर यहाँ आकाश चुम्बीय ऊँचा पर्वत है,उसके नीचे बहुत ही विशाल सागर है और हमारे उल्टे हाथ की तरफ बहुत ही सुंदर लहराते हुए पेड़ और पौधे हैं इस समय इतना सुंदर नीलगगन है जिसकी निराली छटा से प्रकृति और भी सुंदर नज़र आ रही है ।
रूपा से प्रकृति का वर्णन सुनकर सोना तो भाव विभोर हो गई और सोना को बिल्कुल ऐसा लगने लगा जैसे कि वह सब कुछ देख पा रही है। जबकि उसको कुछ समझ नहीं आ रहा था कि किसका कौन सा रंग है। सोना ने रूपा से पूछा आकाश किस रंग का होता है, पर्वत कैसा दिखता है, पेड़ पौधे कैसे दिखते हैं.... और जब रूपा ने कहा कि समुद्र के पानी में सूरज की किरणो की चमक इतनी सुंदर लग रही है मानो कि चारों तरफ का वातावरण चमकदार हो गया हो! सोना ने पूछा समुद्र कैसा होता है... सोना के मन में तो न जाने कितने ज्यादा सवाल सागर की लहरों की तरह हिलोरे ले रहे थे मानो अंदर एक सागर समा गया है और उसकी लहरे हिलोरे उठा रही हो।
सोना ने रूपा से कहा मुझे सागर के पानी को छूना है जिससे कुछ महसूस कर सकूं। रूपा ने कहा सागर को छूना तो बहुत मुश्किल होगा हांँ मैं पेड़ पौधों से तुम्हारी जरूर मुलाकात करवाती हूँ फिर रूपा सोना का हाथ पकड़कर पेड़ पौधे के पास चली गई और बोली छूकर देखो.. सोना ने 1/2 पत्ते उसके तोड़ कर देखा तो बोली बड़ी लुभावनी खुशबू आ रही है ।अरे, जरा सा मुझको सागर का पानी भी छूना है तो रूपा बोली तुम इसी पत्थर पर बैठ आओ मैं तुम्हारे लिए अपनी अंजुली में थोड़ा सा पानी लेकर आती हूं जब अंजुलि में पानी रूपा ले रही थी समुद्र से, तभी उसका पाँव फिसला और वह उसमें गिर गई, जोर की छपाक की आवाज आई तो आस पास उन दोनों के ही परिवार के जो सदस्य घूम रहे थे उन्होंने घबराकर सोना के पास आकर पूछा यह कैसी आवाज थी और रूपा कहाँ है तो सोना ने कहा अरे वह तो मेरे लिए समुद्र में पानी जरा सा लेने गई है जब परिवार वाले समुद्र की तरफ देखने लगे, इतने में उधर मछुआरे आ गए थे वो रूपा को बचाने की कोशिश कर रहे थे लेकिन जब तक उसे बाहर निकाला तब तक रूपा मर चुकी थी अब तो जैसे सन्नाटा सा छा गया चारों तरफ, सोना का भी रो रो कर बुरा हाल हो गया उसने कहा मेरी वजह से मेरी बहन जैसी सहेली दुनिया से चली गई अब मैं क्या करूं ।
रूपा के परिवार वाले इतनी टेंशन में थे फिर भी उन्होंने कहा नहीं बेटा तुम्हारी वजह से नहीं हुई, मौत को तो कोई बहाना चाहिए इसलिए वह चली गई अब कोई बात नहीं। अब जब वह लोग अपनी तसल्ली के लिए रूपा को हस्पताल लेकर आए वहां डॉक्टर ने कहा अब यह इस दुनिया में नहीं है।
इतने में ही रूपा के पिता जी ने कहा कि रूपा की एक अंतिम इच्छा थी... एक दिन उसने सिर्फ मुझसे कहा था कि यदि मैं सोना से पहले दुनिया से चली गई तो मेरी आंखें उसको दे देना। क्योंकि शुरू में जब सोना छोटी थी और उसका इलाज जगह-जगह सब करवा रहे थे कि उसकी आंखें आ जाए किसी तरह से, तब एक डॉक्टर ने कहा था इसकी आंखों में इसकी अपनी रोशनी कभी नहीं आ पाएगी हांँ लेकिन कोई उसको अपनी आँखें दान में दे देगा तो जरूर सोना उसकी आँखों से दुनिया देख पाएगी। इतना सुनते ही रूपा के पापा ने कहा फिर तो ठीक है यह तो बहुत ही अच्छा होगा कि मेरी बेटी को मैं अब कभी भी मरा हुआ नहीं समझूंगा वो तो फिर सोना की आंखों में हमेशा ही जिंदा रहेगी और सोना भी उसकी ही आंखों से जैसे आज तक दुनिया देखती है वैसे ही वह दुनिया देखती रहेगी
जब डॉक्टर ने सोना की आँखों में रूपा की आँखों को ऑपरेशन करके लगा दी तब ऑपरेशन कामयाब रहा और जब एक हफ्ते बाद जब सोना की आँखों से पट्टी हटने वाली थीं तब डॉक्टर ने उससे पूछा तुम सबसे पहले किसको देखना चाहोगी, तो उसने कहा रूपा को, तो सब ने उससे कहा तुझे तो मालूम है ना बेटा रूपा अब इस दुनिया में नहीं है तो सोना ने कहा कि मुझे उसकी तस्वीर दिखा दो उसने जब रुपा की तस्वीर देखी तब वह तो खुशी से झूम उठी और बोली अरे वाह! इतनी प्यारी मेरी बहन थी और उस फोटो को अपने सीने से लगाकर फूट फूट कर रोने लगी तब सब ने समझाया आज भी वह तेरी आंखों में जिंदा है।
फिर सबने रुपा को श्रद्धा और प्यार रुपी सुमन अर्पित किए।