Swity Mittal

Abstract Inspirational

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Abstract Inspirational

मायके का एहसास

मायके का एहसास

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"अम्मा! आपकी ये साड़ी कौन लाया? कितनी सुन्दर है ये तो, अरे! वाह अम्मा आपके पास तो इसकी मैचिंग की चूड़ियाँ भी हैं। अम्मा देखो जब हम बड़े हो जायेंगे और हमें लड़के वाले देखने आएंगे तब हम तो आपकी ये ही साड़ी पहन कर उनके सामने जायेंगे। देखना झट से हमें पसंद कर लेंगे"।

अपनी 11 साल की बेटी जूही के मुँह से ये सुनकर सुनीता के चेहरे पर एक प्यारी सी मुस्कान आ गयी!

प्यार से बेटी के माथे को सहलाते हुए बोली अरी!लाडो बिटिया ऐसा क्या हैं इस साड़ी में? कितना बोलती हैं मेरी गुड़िया रानी, अभी से अपनी अम्मा को छोड़ने की बात करने लगी हो,

जब तुम शादी के लायक हो जाओगी तब हम इस से भी अच्छी -अच्छी साड़ियाँ लाकर देंगे अपनी लाडो को लेकिन अभी तो तुम्हारी उम्र ही क्या हैं, अभी तो तुम अपने गुड्डे -गुड़िया का ब्याह रचाओ।

नन्हीं सी जूही माँ की बात को पूरी तरह से तो नहीं समझ पायी, लेकिन माँ की वो गुलाबी रंग की बंधेज की साड़ी उसे इतनी छोटी उम्र में ही इतनी भा गयी थी कि जब भी माँ अलमारी खोलती;जूही झट से उस साड़ी को निकाल कर जैसे तैसे पहनने की कोशिश जरूर करती।

सुनीता जी के भी बहुत सारे अरमान थे अपनी बेटी को लेकर,और हो भी क्यों ना जूही उनकी इकलौती संतान जो थी। जूही के पिता अक्सर काम के सिलसिले में बाहर ही रहते थे,लेकिन सप्ताह की छुट्टी में वो घर आ जाया करते थे, फिर तीनों खूब मस्ती करते थे, उनका जीवन हसीं खुशी बीत रहा था। लेकिन वो कहते हैं ना कि "होनी का लिखा कोई नहीं टाल सकता " कुछ ऐसा ही जूही के साथ हुआ।

एक बार तीनों घूमने के लिये बाहर जा रहे थे कि रास्ते में उनकी गाड़ी का एक्सीडेंट हो गया, काफी दर्दनाक हादसा था ये, जूही तो बच गयी, लेकिन उसके माता-पिता दोनों की मौत हो गयी, जुही के बालमन पर भी इसका गहरा प्रभाव पड़ा, और जो जूही इतनी बातूनी थी वो तो गूंगी गुड़िया की तरह हो गयी, अभी उम्र ही क्या थी उसकी, पूरे बारह साल की तो हुई थी वो और इतनी छोटी उम्र में सिर पर से माँ -बाप का साया उठ जाना किसी दंड से बढ़कर था, उसके लिये

जूही के माता -पिता के गुजर जाने के बाद उसके दादी उसे अपने साथ गांव लें आयी, उन्होंने ही जूही की आगे की परवरिश की।

आज जूही पूरे 21साल की हो चुकी हैं, वक्त कैसे बीत गया, कुछ पता ही नहीं चला, छोटी सी चिड़िया की तरह चहकने वाली जूही अब बहुत ही समझदार और नाप तोलकर बोलने वाली हो गयी, मानों जैसे बचपन के उस हादसे ने उसकी मासूमियत को छीन ही लिया और बचपन की सारी बातें भी अब जूही भूल गयी थी।जूही की दादी की भी उम्र हो चली थी, वो तो बस इतना ही चाहती थी कि किसी अच्छे लड़के से वो अपनी पोती की शादी कर दें, और एक अच्छा परिवार देखकर उन्होंने जूही की शादी कर दी, विदाई के वक्त उन्होंने जूही को काफी सामान दिया और साथ में दी उसकी माँ की संदूक, लेकिन जूही ने कभी उस संदूक को ससुराल में नहीं खोला।

दिन बीतते चले गये, एक दिन जूही की दादी भी चल बसी और अब तो जूही में अपने परिवार में रच -बस गयी थी, आज उसके घर में सब बहुत खुश हैं, क्योंकि जूही ने एक बेटे को जन्म दिया हैं।

लेकिन जब रस्मो रिवाज निभाने का वक्त आया तो, जूही की सास ने कहा, जूही के पीहर में तो कोई नहीं हैं,माँ -बाप तो बचपन में ही गुजर गये थे इसके और अब दादी भी चल बसी, फिर उसके पीहर का नेग कौन लाएगा। इस बात को सुनकर जूही को बहुत दुःख हुआ, जो दर्द आज तक सीने में दबा कर रखा था, मानों किसी ने उसके इन घावों को फिर से कुरेद दिया था, उसकी आँखों से आंसू टपक पड़े। लेकिन जूही के पति राकेश ने अपनी माँ से कहा कि माँ कोई बात नहीं अगर जूही के पीहर का नेग नहीं आ पाएं तो, हम अपनी तरफ से सामान खरीद लेंगे, लेकिन राकेश की माँ जो पुराने ख्यालात की थी,उन्होंने कहा बड़े बूढ़ो ने कुछ रिवाज सोच कर ही बनाये हैं हम उन्हें बदल तो नहीं सकते, और वैसे भी रिवाज़ के मुताबिक पीहर से लाये हुए कपडे पहन कर ही पूजा में बैठते हैं, अब राकेश माँ के आगे ज्यादा कुछ नहीं बोल पाया।

तब जूही की सास ने उसे कहा कि वो अपनी मामी से बात करें, और उन्हें नेग भेजनें के लिये बोले, जूही तो पहले से ही जानती थी कि कोई रिश्तेदार उसे नेग नहीं भेजेगा, वैसे भी रिश्तेदार तो सब होत के संगी हैं, फिर भी सास का मन रखने के लिये उसने अपनी मामी को फोन किया, मामी ने बिना कुछ कहें ही फोन काट दिया। आज जूही को अपनी माँ की बहुत याद आ रही थी,उसे लग रहा था कि काश! माँ उसके सामने आ जायें और वो उनसे लिपट कर रोयें और अपना दिल हल्का कर ले।

उसे दादी का शादी में दिया हुआ संदूक याद आया, जो उसकी माँ की आखिरी निशानी था, आज तक उसने कभी उसे खोलने की हिम्मत नहीं की, लेकिन आज उसने उसे खोल लिया।

जैसे ही उसने संदूक को खोला तो उसमें हाथ से बुने हुए ऊन के दो जोड़ी बच्चे के स्वेटर रखे हुए थे, अब जूही ने धीरे -धीरे संदूक से एक -एक सामान निकालना शुरू किया, तो माँ की चूड़ियाँ, उनकी बिंदिया, कुछ पैंट -शर्ट के कपड़े और कुछ खिलोने ये सब बाहर उसने बाहर निकाल लिये, जब संदूक में से उसने इतनी चीज़ो को बाहर निकाला तो अचानक उसकी नजर एक कपड़े पर पड़ी जिसमें कुछ लिपटा हुआ था,उत्सुकता से जूही ने जल्दी -जल्दी उस कपड़े को खोला तो देखा कि "उसमें एक गुलाबी रंग की बंधेज की साड़ी थी, उस साड़ी को देखते ही जूही का सारा बचपन, माँ के साथ वो नादानी भरी बातें सब उसकी आँखों के सामने घूमने लगी, एक बार तो उसे ऐसा प्रतीत हुआ जैसे कि वो साड़ी नहीं, बल्कि माँ ही उसके सामने आ गयी हो "

जूही उस साड़ी को हाथ में लेकर फफक -फफक कर रो पड़ी, आखिर कितनी यादें जुडी थी उसकी उस साड़ी के साथ, कितने सारे अरमान बुन लिये थे जूही ने बचपन में ही उस साड़ी के साथ, ये माँ की साड़ी ही तो थी, जिसे लेकर उसने अपने आने वाले भविष्य को भी सुनिश्चित कर लिया था, और आज जिंदगी के उस मोड़ पर वो साड़ी उसे मिली जब उसे मायके की कमी महसूस हो रही थी, जिस वक्त उसे अपने मायके के नेग की सबसे ज्यादा जरुरत थी, उस वक्त उसे ये" माँ की साड़ी हाथ में लेकर ऐसे लग रहा था, मानों आज उसका मायका ही उसके सामने खड़ा हैं, आज माँ की साड़ी ने जूही को एक बार फिर से "मायके का एहसास " करवा दिया था।

शादी से पहले तो वो माँ की साड़ी पहन कर लड़के वालों के सामने नहीं जा पायी, लेकिन आज शादी के बाद अपने बेटे के लिये की जा रही पहली पूजा में उसने माँ की वो साड़ी पहन कर सबके मुँह को बंद कर दिया कि उसके मायके से कोई नेग नहीं आएगा आज उसे लग रहा था मानों उसकी अम्मा उसे कह रही हो "देख लो लाडो अब ये साड़ी पहनने की तुम्हारी उम्र हो ही गयी हैं, और उसे अपना आशीर्वाद दें रहीं हो। माँ की उस गुलाबी साड़ी ने उसे उसके मायके से फिर मिलवा दिया था,और मायके का ये एहसास ही काफी था जूही के लिये, जो शायद किसी और के भेजे हुए नेग से उसे कभी नहीं मिलता जो, आत्मीयता और प्यार माँ की उस गुलाबी साड़ी से जूही को मिला था।

दोस्तों ये बात बिल्कुल सच है कि बेटियाँ माँ की परछाई होती हैं, और बचपन से ही उन्हें अपनी माँ की तरह दिखने का शौक होता है। इसलिये छोटी उम्र से ही वो माँ की हर चीज से अपना जुड़ाव महसूस करती हैं। जब तक मायके में माँ होती है, बेटी हर चीज पर अपना हक़ जताती है, लेकिन माँ के चले जाने पर बेटी कब समझदार बन जाती है, ये बात तो वो खुद भी नहीं जानती। सच ही तो कहते हैं, माँ तू हैं तो सब होता है जीवन में, तुझ बिन कुछ ना होता है। मायके की याद में ये दिल मेरा, हर दम कितना रोता है।


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