मेरे बुढ़ापे का खजाना
मेरे बुढ़ापे का खजाना
"अरी! ओ कान्ता ये क्या गरीब घर की बहू लायी हो, तुम अपने इतने पढ़े -लिखें, सुन्दर, और कमाऊ बेटे के लिये । इसके लिये क्या शहर में लड़कियों की कमी हो गयी थी, जो गांव की कम पढ़ी -लिखी लड़की को इसके सिर मँड दिया । हम कितने रिश्ते दिखाये थे तुम्हें अच्छा खासा दहेज भी मिलता और लड़की भी बिल्कुल गोरी चिट्टी आती, पता नहीं का पत्थर पड़ गये तुम्हारी अक्ल को जो ये रास्ते का पत्थर उठा लायी अपने शीशमहल के लिये, देखना एक दिन तुम्हारे घर को भी तोड़ देगी ।"
पड़ोसन जब कान्ता को ये सब सुना रहीं थी, तब कान्ता बोली "हाँ भाभी रिश्ते तो आपने बहुत बताएं थे, पर पता नहीं क्यों हमें अपने लल्ला के लिये कोई ठीक नहीं लगी, माना कि दहेज काफी लाती अपने साथ, परन्तु जो दहेज हमें चाहिए था, वो हमें उनसे नहीं मिल रहा था ।" कान्ता के मुँह से ये सुनकर पड़ोसन मुँह बनाते हुए बोली "अच्छा! ऐसा क्या दहेज दें दिया तुम्हरी बहू के घरवालों ने?"
हमने तो सुना था गांव में इसके बापू खेती करत हैं और भाई अभी छोटा हैं,तो फिर इतना दहेज कहाँ से जुटा लिये, जरा हम भी तो देखें;दहेज!
किधर है दहेज? हमारी आँखे अभी इतनी भी कमजोर ना ही हुई हैं, हमें तो खाली एक कपड़े का बक्सा दिखाई दें रहा है", तब कान्ता बोली "भाभी इस बक्सें में ही रखा हुआ हैं, सारा दहेज, लेकिन वो मैं आपको अभी नहीं कुछ दिनों के बाद दिखाउंगी ।" इतना कहकर वो अपने बहू और बेटे को लेकर घर के अंदर चली गयी ।
कान्ता बहुत ही समझदार और पढ़ी लिखी थी, अपने तीनों बच्चों को भी उसने बहुत अच्छे संस्कार दिये थे, पति की मौत के बाद उसे पति की जगह सरकारी नौकरी मिल गयी थी, इसलिये बच्चों को पालने में कभी पैसों की कमी महसूस नहीं हुई, तीनों बच्चें भी अपने माँ के त्याग और समर्पण की कद्र करते थे, और तीनों ही पढ़ने में बहुत होशियार थे, सब लोग कान्ता और उसके बच्चों की तारीफ करते हुए कभी नहीं थकते थे । दोनों बेटियों की शादी के बाद जब बेटे विनय की शादी की बात आयी तो रिश्तेदारों और सगे सम्बन्धियों ने बहुत सें अमीर घरों के रिश्ते बताएं,और बताएं भी क्यों ना विनय बैंक में मैनेजर जो था और इकलौता बेटा था घर का , लेकिन कान्ता को उनमे सें कोई पसंद नहीं आया कुछ रिश्तेदार ने तो नाराज होकर ये भी कह दिया कि क्या जीवन भर बेटे को कुंवारा ही रखोगी? कुछ ने बातें बनायीं की देखते हैं ऐसी क्या बहू लाएगी? कान्ता ने कभी इन बातों पर ध्यान नहीं दिया।
उसके मन में तो सुरेखा ने पहली नजर में ही अपनी जगह बना ली, सुरेखा सें वो पहली बार पिछली गर्मियों की छुट्टियों में मिली थी, जब उसे स्कूल के शिविर में शामिल होने के लिये 15दिन गांव जाना पड़ा था, सुरेखा भी वहाँ एक स्वयंसेविका की सेवाएं दें रहीं थी । वहीं पहली बार कान्ता और सुरेखा की मुलाकात हुई, और मृदुभाषी सुरेखा एक पल में उसके मन को भा गयी,उसे लगा जिस लड़की की तलाश उसे अपने बेटे के लिये थी, सुरेखा बिल्कुल वैसी ही हैं, और मन ही मन उसने सुरेखा को अपने बेटे की दुल्हन के रूप में पसंद कर लिया । कान्ता वहाँ 15दिन रहीं और सुरेखा के बारे में सब पता कर लिया, शिविर समापन के बाद वो शहर लौट आयी, और उसने अपनी दोनों बेटियों तथा अपने बेटे विनय सें अपने मन की बात कहीं और सुरेखा को अपने घर की बहू बनाने की इच्छा जाहिर की, विनय माँ का बहुत आदर करता था, इसलिये माँ की बात का मान रखते हुए उसने बिना सुरेखा सें मिले हुए और उसे देखें बिना ही शादी के लिये हाँ कर दी, बेटे का जवाब जानकर माँ को इतनी प्रशन्नता हुई की वो खुशी सें फूली नहीं समाई, आज उन्हें परवरिश और दिये हुए संस्कारों पर नाज हो रहा था । वो अपने बच्चों के साथ गांव गयी और बहुत ही सामान्य तरीके सें अपने बेटे की शादी करवा दी, वैसे भी सुरेखा के माता -पिता के पास बहुत पैसा नहीं था, वो बहुत साधारण रहन -सहन वाले थे, विदाई के वक्त सुरेखा के पिता जो की एक किसान थे,ने कान्ता जी सें सिर्फ इतना ही कहाँ कि,
आज आपके जैसे घर में मेरी बेटी की शादी हुई है तो मुझे लग रहा है कि जिस बीज को मैंने आज सें 22साल पहले बोया था, और उसे फसल बनाने में जितनी मेहनत की थी, आज विनय जैसा दामाद पाकर और आप जैसी सोच रखने वाली सास को अपनी बेटी के लिये पाकर मुझे अपनी फसल का पूरा मोल मिल गया हैं । जिस तरह एक हीरे की परख एक जौहरी को होती हैं, उसी तरह गुणों की और संस्कारों की कद्र वहीं व्यक्ति करता हैं, जिसमें पहले सें ये दोनों ही मौजूद हैं, आप मैं अपनी फसल आपके हवाले कर रहा हूँ, अब इस सें अच्छा अनाज और फल प्राप्त करना आप पर ही निर्भर हैं ।
शादी के कुछ दिनों के बाद सुरेखा पूरी तरह सें घर में रच बस गयी थी, उसने घर की सारी ज़िम्मेदारी संभाल ली, और कान्ता जी भी उसे एक माँ की तरह हर बात समझाती थी, उसने ही इस घर को नहीं अपनाया, बल्कि इस घर ने भी सुरेखा को पूरी तरह अपना लिया, विनय को भी अपनी माँ के ऊपर किये गये विश्वास की वजह सें कभी पछताना नहीं पड़ा, बल्कि वो खुद को खुशकिस्मत समझता था, जो उसे सुरेखा जैसी समझदार और सुलझी हुई जीवनसंगिनी मिली, वो आयी जरूर ग्रामीण परिवेश सें थी, लेकिन उसकी सोच और विचार बहुत ही स्वतंत्र थे, जल्दी ही उसने शहर के सारे तौर -तरीके भी सीख लिये । आस -पड़ोस के लोग भी उसके गुणों को देखकर उसकी सराहना करते थे, लेकिन कान्ता की पड़ोसन के मन में अभी भी एक बात खटक रहीं थी, कि शादी के इतने दिन बीत जाने पर भी कान्ता ने उसे दहेज का सामान नहीं दिखाया, आखिरकार एक दिन उस सें रहा नहीं गया और वो पूछ बैठी, अरी! कान्ता अब तो उस बक्सा को खोलकर हमें दहेज का सामान दिखा देवों । तब कान्ता बोली भाभी बक्सा तो हम उसी दिन खोल लेत थे जिस दिन बहुरिया घर में आयी, पड़ोसन आश्चर्य सें बोली क्या?
तो फिर दहेज किधर हैं, हमें तो तुम्हारे घर में कछु नहीं दिखत हैं, सब सामान पहले का ही तो हैं, कान्ता ने हॅसते हुए कहा हाँ भाभी सामान तो वहीं हैं सारा, लेकिन आपके सामने जो हमारी ये बहू खड़ी हैं, ये ही हमारा सबसे बड़ा दहेज हैं, इस दहेज के सामने तो बाकी सारे दहेज फीके हैं, सामान तो कुछ दिनों में टूट जाता हैं या पुराना हो जाता हैं, लेकिन जो संस्कार और गुण इसमें हैं,वो मेरी जीवन भर की धरोहर हैं, और वो तो ऐसी पूंजी हैं जो हर दिन कम ना होकर बढ़ेगी ही, तो फिर आप बताइये इस सें ज्यादा दहेज मुझे अपने बेटे के लिये कहाँ मिल सकता था, क्योंकि ये सिर्फ मेरा दहेज ही नहीं बल्कि
" दहेज से अनमोल बहू है, जो मेरे बुढ़ापे का खजाना है,मेरे लिए ही तो मेरी बहू वो दहेज हैं जिसके संस्कार रूपी खजाने के सामने करोड़ों की सम्पति भी फीकी हैं "
पड़ोसन कान्ता की बात सुनकर निरुत्तर हो गयी, और आज कान्ता मन ही मन सोच रहीं थी की जिस फसल पर उसने विश्वास दिखाया, आज उस फसल ने उसे निराश नहीं किया बल्कि अच्छे और मीठे फल दिये हैं, ऐसे फल जिनकी मिठास जीवन भर उनकी जीभ पर और दिलों में बनी रहेगी, दूसरी तरफ सुरेखा भी यहीं सोच रहीं थी कि आज उसे जो अपनापन और संरक्षण मिला हैं, भविष्य में वो उसी प्रेम सें नये बीजों को रोपेगी । दोनों सास -बहू की आँखों में एक -दूसरे के लिये सम्मान और बढ़ गया था ।