हाँ मेरी बहू हिंदीभाषी है
हाँ मेरी बहू हिंदीभाषी है
मिष्टी बिल्कुल अपने नाम के अनुरूप बहुत मधुर बोलने वाली थी। उसकी वाणी में साक्षात् माँ सरस्वती का ही वास था, शायद उसकी इसी सादगी और मधुरता को देखकर मिलन के परिवार को वो पहली ही नज़र में पसंद आ गयी, और फिर क्या था "चट मंगनी और पट ब्याह।" शादी के कुछ ही दिनों के बाद वो पूरे परिवार की लाडली बन गयी। मिलन भी उसे बहुत प्यार करता और सम्मान देता। मिष्टी की सास मंजूषा जी भी उसे बहुत चाहती थी, और मिष्टी ने भी उन्हें अपनी माँ मान लिया था। मंजूषा जी का समाज में बहुत अच्छा नाम था, और वो अक्सर अपनी सखियों के साथ बाहर जाया करती थी। एक दिन उन्होंने मिष्टी को भी खुद के साथ चलने के लिये कहा, लेकिन पहले तो मिष्टी ने काम का बहाना बनाकर मना कर दिया, परन्तु बार -बार सास के आग्रह करने पर वो उनके साथ जाने को तैयार हो गयी। फिर क्या था दोनों सास- बहु कुछ देर में तैयार होकर बाहर निकल पड़ी। मंजूषा जी की सहेलियाँ उनका होटल में इंतज़ार कर रही थी, जब सब ने मिष्टी को देखा तो उन्होंने उसकी सुंदरता की बहुत तारीफ की, और मंजूषा जी भी अपनी बहु की तारीफ सुनकर खुशी से फूली नहीं समा रही थी। कुछ देर बातें करने के बाद जैसे ही खाने के लिये आर्डर देने का समय आया तो मंजूषा जी की एक सहेली ने मिष्टी को कहा कि, मिष्टी आज तुम हम सब के लिये आर्डर करो, देखें तो सही तुम्हारी पसंद कैसी है। बड़े संकोच के साथ मिष्टी ने वेटर को बुलाया और उसके बाद आर्डर देने लगी, मंजूषा जी की सभी सहेलियाँ मिष्टी के मुँह की तरफ देख रही थी। जब मिष्टी ने सारा आर्डर दे दिया तो मंजूषा जी की एक सहेली ने कहा मिष्टी क्या तुम्हें अंग्रेजी में बोलना नहीं आता हैं, जो तुमने हिंदी में बात की, आजकल तो छोटा बच्चा भी अंग्रेजी बोल लेता हैं, और इतने बड़े फाइव स्टार होटल में क्या तुम पहली बार आयी हो, जो तुम्हें ये भी नहीं पता हैं कि कैसे बात की जाती हैं। उनकी इस बात का जवाब मिष्टी देती उस से पहले ही मंजूषा जी बोली क्यों सिर्फ अंग्रेजी बोलने से ही कोई इंसान पढ़ा -लिखा होता हैं क्या? या अंग्रेजी बोलना ही ये निर्धारित करता हैं की वो बड़े होटल में आया है या नहीं?
"क्या अंग्रेजी में बात करने से ही ये पता चलता है कि आपका पढ़ाई का स्तर क्या है और आप सभ्य है?"
उन्होंने कहा मिष्टी हिंदी भाषी है और हमें तो इस बात पर गर्व है की हमारी बहु आज के ज़माने की भी होकर अपने संस्कारों और भाषा को सम्मान देती है, वो इतनी पढ़ी लिखी होकर भी धरातल से जुड़ी है। भाषा चाहें कोई भी हो वो इंसान को ऊँचा या नीचा दिखाने के लिये नहीं होती है बल्कि अपनी भावनाओं और शब्दों की अभिव्यक्ति के लिये होती है, अगर भाषा से ही किसी इंसान की परख की जाती है और उसके सभ्य होने का पता चलता है तो फिर तो ना जाने कितने लोग भारत में असभ्य होंगे, और हिंदी तो हमारी अपनी भाषा है जिसे विदेशों में भी बहुत सम्मान दिया जाता है और उसे बोलने में हम ही शर्मिंदगी महसूस करते है तो इस से बड़ी लज्जा की बात तो कोई और हो ही नहीं सकती।
मिष्टी की सरलता और गुणवत्ता ने हम सबके दिलों को पहली ही नज़र में जीत लिया था, मंजूषा जी की सहेली ने ये सब सुन ने के बाद मिष्टी से अपने व्यवहार के लिये माफ़ी मांगी। आज मिष्टी को खुद की किस्मत पर नाज हो रहा था की जरूर पिछले जन्म में उसने कुछ पुण्य किये होंगे जो इस जन्म में उसे इतना अच्छा परिवार और माँ जैसी सास मिली। जो सिर्फ कहने को ही माँ नहीं बल्कि माँ की तरह अपनी बेटी का हर कदम पर साथ भी देने वाली है, जिन्हें उसके गुणों की कद्र है।