Swity Mittal

Tragedy

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Swity Mittal

Tragedy

खोयी जीने की उम्मीद

खोयी जीने की उम्मीद

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ट्रिन...ट्रिन.... ट्रिन... जैसे ही मोबाइल में घंटी बजी शारदा जी ने जल्दी से फोन उठाया, देखा तो उनके बेटे राघव का फोन था, उन्होंने जैसे ही हेलो कहा, दूसरी तरफ से आवाज आयी,


"अरे! माँ कहाँ थी आप?"कब से फोन कर रहा हूँ आपको और एक आप हो जिसे फुर्सत ही नहीं है ।कहाँ पर इतना व्यस्त थी?आखिर काम ही क्या हैआपको और पापा को पूरे दिन?बस बैठकर खाना ही है, हर सुख -सुविधा दें रखी है मैंने आपको, और आपको उस बात का कोई एहसान ही नहीं, आप दोनों के पास तो वक्त ही वक्त है, लेकिन मुझे तो इतना काम रहता है कि सांस लेने की भी फुर्सत नहीं है, अगर आप आगे से ऐसे ही फोन नहीं उठाओगी तो फिर मैं फोन करना भी बंद कर दूंगा, मेरा समय बहुत कीमती है!"


राघव एक सांस में सब बोलता चला गया, उसने शारदा जी को तो बोलने का मौका ही नहीं दिया, बस वो तो सिर्फ इतना ही कह पायी नहीं बेटा फोन करना बंद मत करना, आखिर ये फोन ही तो हमारे जीने का सहारा है, तुम्हारी आवाज सुन लेते हैं तो बुढ़ापे में जीने की उम्मीद जगी रहती है, आगे से मैं ध्यान रखूंगी ।

राघव ने औपचारिकतवश इतना ही पूछा आप दोनों ठीक हो ना, शारदा जी कुछ पूछती या कहती उस से पहले तो उसने फोन को भी काट दिया,बेचारी शारदा जी हर बार की तरह हेलो... हेलो.. ही करती रह गयी।


शारदा जी के पति बिहारी जी जो सोफे पर बैठ कर टीवी देख रहे थे, उन्होंने बोला "क्यों तुम उसे भूल नहीं जाती हो? वो अब कभी वापिस नहीं आएगा, उसे हमारी कोई परवाह नहीं है, अरे भई अब वो विदेश में रहता है, इतना पैसा कमाता है, उसे अब हमारी कोई जरुरत नहीं है, वो हमें पैसे भेजकर अपना फर्ज पूरा कर देता है, अब उस से और कोई आशा मत रखो ।"

बिहारी जी बोले "शारदा हमारा राघव कहीं खो गया है, और अब हम उसे चाह कर भी नहीं ढूंढ सकते है, वो हमसे बहुत दूर चला गया है ।"


हर बार की तरह शारदा जी ने राघव का पक्ष लेते हुए कहा कि "आप भी ना कभी अपने बेटे के प्यार को समझ नहीं सकें, अरे ऐसा कुछ भी नहीं है, कहीं नहीं खोया है मेरा राघव!देखना एक दिन वो वापिस जरूर आएगा, और सही तो कह रहा था वो हम दोनों के पास तो समय ही समय है, लेकिन वो तो काम की वजह से व्यस्त रहता है, मेरी ही गलती थी जो मैंने फोन समय से नहीं उठाया और अभी भी वो तो फोन रखना ही नहीं चाहता था, ये तो नेटवर्क की वजह से फोन कट गया"।


बिहारी जी बोले हाँ शायद हर बार नेटवर्क की वजह से ही फोन कट जाता है, उन्होंने मन में सोचा;ये बात बिल्कुल सत्य है कि एक संतान माँ -पिता के त्याग और प्यार को भूल जाती है, किन्तु माता -पिता अपनी संतान को प्यार करना नहीं भूलते, वो आजीवन उसकी सलामती की दुआ ही करते है, जिस प्रकार शारदा जी राघव की परवाह करती है ।बस इसी आशा से दोनों पति पत्नि जीवन जी रहे थे कि आखिर एक दिन उनका बेटा विदेश छोड़ कर हमेशा के लिए उनके साथ रहने के लिए जरूर आएगा और यहीं एक उम्मीद थी जिसे मन में रखते हुए दोनों पति -पत्नि बुढ़ापे में भी अकेले रह रहे थे ।


उनकी ये उम्मीद तो उस दिन पूरी तरह से खो गयी, जिस दिन राघव ने उन्हें फोन पर ही फरमान सुना दिया कि वो अब हमेशा के लिए अमेरिका में ही रहेगा और जल्द ही वो शादी करने जा रहा है, शारदा जी तो ये सुनकर पूरी तरह से ही टूट गयी, फिर भी जैसे -तैसे खुद को संभाला और बोली "बेटा कोई बात नहीं है, तेरी शादी के सपनें तो बहुत देखें थे हमने, लेकिन अगर तुझे अमेरिका में शादी करनी है तो ठीक है, हम वहां आ जायेंगे अपने बेटे -बहू को आशीर्वाद देने के लिए"


माँ की बात सुनकर राघव हँसते हुए बोला "माँ ये कोई मुंबई या पूना नहीं है, ये अमेरिका है, आपको पता भी है कितनी महंगी टिकट होती है प्लेन की, और वैसे भी एक आशीर्वाद ही तो दोगे आप,तो क्यों मैं इतना पैसा व्यर्थ खर्च करुँ, इस से अच्छा तो होगा आप फोन पर ही आशीर्वाद दें देना, वैसे भी मुझे कहाँ इसकी जरुरत है अब, मैं इतनी बड़ी कंपनी में नौकरी करता हूँ, गाड़ी, बंगला, बैंक बैलेंस, नौकर चाकर सब है मेरे पास, आप दोनो की यहाँ कोई जरुरत भी नहीं है"और फिर उसने फोन काट दिया और उस दिन के बाद से कभी वापस मुड़कर अपने माता -पिता को एक बार नहीं देखा,


राघव ने उस दिन ना केवल अपनी जिम्मेदारियों से मुँह मोड़ा, बल्कि उसने अपने माता -पिता की जीने की उम्मीद भी उनसे छीन ली थी, वक्त और बाहरी दुनिया की चकाचोंध में उनका बेटा तो पहले ही कहीं खो गया था, लेकिन आज उनके जीने की वो आखिरी उम्मीद भी खो गयी थी।


राघव ने ऐसा करके ना केवल अपने माता -पिता के जीने की उम्मीद उनसे छीन ली बल्कि हर उन माता -पिता ये को सोचने को मजबूर कर दिया कि क्या उनका अपनी संतान को उच्च शिक्षा के लिए बाहर भेजना उचित है, अपने जीवन की एक -एक पाई जोड़कर वो अपने बच्चों को पढ़ाते है, उनके भविष्य को संवारते है, उन्हें इस काबिल बनाते है कि वो समाज में खड़े हो सकें और बड़े होने पर जब वही संतान उन्हें एक रद्दी पेपर की तरह तोड़-मरोड़ कर फेंक देती है तो उस दिन सिर्फ वो ही नहीं टूटते है बल्कि उनके साथ -साथ वो उम्मीदें भी टूट जाती है जो उन्होंने बच्चे के जन्म से ही बुननी शुरू की थी, उनके वो सारे सपनें चकनाचूर हो जाते है, जो उन्होंने अपने बच्चों के साथ मिलकर देखें थे और साथ ही खो जाती है जीवन जीने की वो उम्मीद जिसके भरोसे उन्होंने अपने बुढ़ापे से लड़ने की सोची थी।



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