Priyanka Gupta

Abstract Drama Inspirational

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Priyanka Gupta

Abstract Drama Inspirational

मातृत्व क्या प्रसव पीड़ा का मोहताज है ?

मातृत्व क्या प्रसव पीड़ा का मोहताज है ?

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"दीपाली तुम्हें अब बच्चे के बारे में सोचना चाहिए। शादी को ४ साल होने को आये हैं। करियर तो बच्चे के बाद भी संभाला जा सकता है। तुम्हारी बायो-क्लॉक भी टिक-टिक कर रही है।" अपनी ननद संगीता के घर पर दो दिनों के लिए आयी दीपाली से संगीता ने कहा।

 "जी दीदी।" दीपाली ने संक्षिप्त सा उत्तर दिया। काश आपकी मम्मी की बायो क्लॉक काम करती तो आप भी शायद नहीं होती। दीपाली ने मन ही मन सोचा।

 "फिर मातृत्व के बिना औरत चाहे कितनी ही ऊँचाइयों पर पहुँच जाए अधूरी ही रहती है।" संगीता ने कहा। 

"अरे पिंकी अभी तक यही खड़ी है। चाय के कप क्या तेरा बाप उठाकर ले जाएगा?" संगीता ने अपने घर काम करने वाली छोटी सी बच्ची से कहा। दीपाली ने संगीता को प्रश्नवाचक नज़रों से देखा।

"अरे तू इन काम करने वाली बच्चियों को नहीं जानती। जितनी ये जमीन के ऊपर होती हैं उससे कहीं ज्यादा जमीन के नीचे होती हैं। इन्हें खींचकर रखना पड़ता है ज़रा सी ढील दी नहीं और ये हमारे सिर पर नाची नहीं।" दीपाली की नज़रों से उभरे सवालों का संगीता ने जवाब दिया। 

संगीता का व्यवहार पिंकी के प्रति अच्छा नहीं था। वह पिछले 2 दिनों से अपने बुरे व्यवहार को न्यायोचित ठहराने की कोशिश ऐसी बातें कहकर ही कर रही थी। पिंकी कहने को तो 15 साल की थी लेकिन लगती थी १२-१३ साल की। सुबह से लेकर देर रात तक संगीता उससे काम करवाती थी। घर में कितने ही पकवान बने हों उसे बासी रोटी ही खाने को देती थी। अक्सर पिंकी रोटी नमक-मिर्च से ही खाती थी। दीपाली जो मिठाई लायी थी संगीता ने पिंकी को खाने के लिए नहीं दी। दो दिन में खराब होने पर फेंक ही दी लेकिन उसे खाने को नहीं दी। 


वाकई में अगर पिंकी किसी का छोड़ा हुआ झूठा भी खा ले तो संगीता उसकी जान निकाल देती थी। 

अभी कल ही तो दीपाली ने देखा था कि "जीजाजी ने अपना टोस्ट प्लेट में ही आधा खाकर छोड़ दिया था और उठ गए थे। जब पिंकी प्लेट उठाने आयी तो उसने वह टोस्ट खा लिया। बेचारी बच्ची को कभी पूरे पेट खाना ही नहीं मिलता तो क्या करे जूठन भी खा लिया। 

संगीता दीदी ने उसके गाल पर एक तमाचा जड़ दिया था और कहा कि "तेरी हिम्मत कैसे हुई मुझसे बिना पूछे कुछ भी खाने की?" 

दीपाली की प्रश्नवाचक नज़रों के जवाब में तब संगीता ने कहा था कि "तुम कामकाजी महिलाओं की यही तो परेशानी है। दुनियादारी की ज़रा भी समझ नहीं रखती हो। आज जूठन उठाकर खा रही है कल रसोई से कुछ भी चीज़ उठाकर खा लेगी। घर में हज़ारों चीज़ें रहती हैं एक बार अपने आप से लेने की आदत हो गयी तो कुछ भी उठा लेगी। तुम इन छोटे लोगों को नहीं जानती हो। इनके साथ सख्ती से पेश आना जरूरी है।"


उसी दिन पिंकी संगीता की कोई रेशमी साड़ी आयरन कर रही थी बेचारी को रेशमी साड़ी पर आयरन करना कहाँ से आएगा। उससे साड़ी जल गयी। संगीता दीदी ने गुस्से में गर्म आयरन उसके पैर पर लगा दी थी। वो तो दीपाली ने संगीता से आयरन छीन ली नहीं तो पता नहीं क्या हो जाता। 

उसके बाद संगीता ने पिंकी से कहा कि "लड़की तेरे वेतन से काट लूंगी पैसे?" संगीता की बातें सुनकर मासूम पिंकी की रुलाई फूट पड़ी थी। समझ नहीं आ रहा था दर्द से रो रही थी या उसको गिनती के मिलने वाले रुपयों में से होने वाली कटौती को लेकर रो रही थी। आज संगीता दीदी से मातृत्व की बातें सुनकर दीपाली के सामने पिछले दो दिनों की घटनायें एक चलचित्र की भाँति घूम गयी थी। 

"समझ रही हो न दीपाली। अब जल्दी से ख़ुशख़बरी दे दो और पूर्णता को प्राप्त करो।" संगीता अभी भी अपनी रौ में बोलती जा रही थी। "दीदी आपको पता है मातृत्व के लिए प्रसव पीड़ा से भी ज्यादा जरूरी क्या है?" दीपाली ने संगीता से पूछा। 

"क्या है?" संगीता ने दीपाली की बातों को हँसी में उड़ाते हुए कहा।

 "ममता का होना। ममत्व से परिपूर्ण ह्रदय का होना जो हर पीड़ित की पीड़ा से द्रवित हो जाए। जो हर इंसान का सम्मान करे। जो अपने से पद पैसे में कमजोर लोगों के भी दर्द तकलीफ को समझे।" दीपाली ने कहा। 

संगीता एकटक दीपाली की तरफ देख रही थी। 

 "और दीदी इसका सबसे बड़ा उदाहरण है मदर टेरेसा जिन्होंने भले ही किसी बच्चे को जन्म नहीं दिया लेकिन वह लाखों बच्चों की माँ थी। उनका ह्रदय ममता और वात्सल्य से सरोबार था। अफ़सोस दीदी आप प्रसव पीड़ा से गुजरने के बाद भी अधूरी रह गयी।" ऐसा कहकर दीपाली अपना सामान पैक करने लग गयी थी।


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