माताजी हमारे घर कि प्रमुख हैं
माताजी हमारे घर कि प्रमुख हैं
आज मृदुला के नए घर के गृह-प्रवेश की पूजा थी। बहुत ही मेहनत और प्यार से ये घर बनवाया था मृदुला और मनोज ने। अपनी सारी पूँजी लगा दी थी। मृदुला की सास ने भी पैसे और समय से खूब मदद की थी। पूरा काम अपनी देखरेख में करवाया था। चाहे धूप तेज हो या सर्द हवाएँ चल रही हों, माताजी मज़दूरों के पहुँचने से पहले पहुँच ज़ाती थीं। मनोज ऑफिस जाने के समय उनके लिए नाश्ता, खाना, चाय, पानी सब दे जाता था। ऐसा नहीं था की मनोज और मृदुला ने उन्हें कहा था घर बनने का काम देखने को, ये ज़िम्मेदारी उन्होंने स्वयं ली थी। मनोज ने सात साल पहले ही अपने पिताजी की सलाह पर, पैसे जोड़ कर ज़मीन का एक छोटा प्लोट लिया था। लेकिन उसपर काम शुरू नहीं करा पा रहा था, कुछ पैसे की कमी और कुछ इस वजह से की कौन खड़ा हो कर बनवाएगा।
वह तो अफिस चला जाएगा, छुट्टी भी सीमित ही मिलेगी और मृदुला बच्चों के पीछे ही दिन भर फँसी रहती है। स्कूल जाने वाले बच्चे हैं पढ़ाई की हानि भी नहीं करा सकते। दो साल पहले मनोज के पिताजी के जाने के बाद से माताजी मनोज के साथ ही थीं। पिताजी का आख़री साल था नौकरी का की अचानक एक दिन कार्यालय से सूचना आई की उनकी तबियत ख़राब हो गई हाई सो अस्पताल ले जाया गया है। सभी घर वाले दौड़ते अस्पताल पहुँचे तो पता चला दिल का दौरा आया और उनका देहांत हो गया। सरकारी नौकरी थी इसलिए कई तरह के पैसे मिले थे। लेकिन मनोज के पिताजी ने अपने रहते घर नहीं बनवाया था, सरकारी मकान में ही रहते थे। उनके जाने के बाद मकान भी ख़ाली करना पड़ा तो माताजी जी मनोज के साथ आ गई। मनोज किराए के मकान में रहता था।
बेटा बहू को घर की चाह थी पर पारिवारिक उलझानों के बीच घर ना बनवाने का दर्द माताजी जल्दी ही भाँप गई क्योंकि यही वजह थी कि मनोज के पिताजी घर ना बनवा पाए थे। माताजी ने घर बनवाने की ज़िम्मेदारी स्वयं पर लेकर मनोज को काम शुरू करवाने को कहा। जब कभी पैसे की दिक़्क़त आई तो अपने पास से निकाल कर उसे पूरा किया।
आज जितनी ख़ुशी मृदुला और मनोज को थी शायद उससे ज़्यादा खुश माताजी थीं।
पूजा थी सो परिवार के सभी लोगों को बुलाया गया था। पूरे विधि-विधान से पूजा प्रारम्भ किराए के मकान से ही शुरू हुई। जब मृदुला-मनोज कलश लेकर घर से निकलने लगे तो मृदुला की माँ ने उसकी सास को इशारे से पीछे रहने को कहा, किंतु मृदुला ने उन्हें आगे अपने पास बुला लिया और सभी नए घर की ओर बढ़ चले।
नए घर में अब प्रवेश की बारी थी। मृदुला को पंडित जी ने आगे बढ़ने को कहा तो वह माताजी को आगे बढ़ने को कहती है। इसपर पीछे से कोई कहता है कि ऐसा करना शुभ नहीं होगा।
अब मृदुला से नहीं रहा गया क्योंकि अबतक कई बार इस तरह की बातें को वह अनदेखी करती आ रही थी।
वह पीछे पलटी और कहा माताजी हमारे घर की वरिष्ठ हैं, प्रमुख हैं। आज हम जिस घर की पूजा कर रहें हैं उस घर का बनना इनकी वजह से ही सम्भव हुआ है। इस घर की हर एक ईंट और रेत का एक एक कण इनकी नज़र से गुजरी है। पिताजी का जाना एक दुर्घटना है। उसमें किसी का क्या दोष। हमारे इस घर के हर विधि में हमारे घर के प्रमुख ही आगे रहेंगे।
इसके साथ माताजी के साथ सभी घर में प्रवेश करे। हाँ पीछे से कुछ खुसफुसाहट होती रही। माताजी और मनोज, मृदुला को पहले ही बहुत मान देते थे लेकिन इस घटना के बाद उसके लिए सम्मान और बढ़ गया।