"मासूम शिखा" भाग–1
"मासूम शिखा" भाग–1
यह कहानी हैं एक ऐसी लड़की के जीवन की जिसने शायद कभी कल्पना भी नहीं की होगी कि जीवन को जीने के इतने अनोखे रंग होते हैं और हर पल सामना करना होता हैं अनजाने खतरों का या कहे परेशानियों का....
"मासूम शिखा" के जीवन की कहानी उस हर एक "मजबूर लड़की" के जीवन से जुड़ी हुई हैं जो "सामाजिक बुराइयों" और "अपने ही लोगों" के बीच रहते हुएं भी किसी से कुछ नहीं कह पाती हैं।
जीवन में चल रही हर समस्या को चुप्पी के साथ सहती जाती हैं और उसके मन की बात को समझने वाला कोई भी नहीं होता हैं....
शिखा,
8वीं कक्षा में पढ़ाई करने वाली एक मासूम सी लड़की थी। उम्र महज 13 साल थी। नई जगह और नए लोग। पढ़ाई में बहुत अच्छी थी लेकिन बुरे विचारों वाले लोगों से शायद बिल्कुल अंजान।
शिखा अपनी कक्षा में सभी के साथ बहुत अच्छे से व्यवहार करती थी और सभी लोगों के साथ मिल–जुल कर रहती थी। उसकी कक्षा में सिर्फ़ लड़कियां ही नहीं बल्कि लड़के भी थे। वह लड़कों से कभी भी बात नहीं करती थी क्योंकि उसे लड़कों से बात करने में बहुत डर लगता था।
लेकिन कक्षा में सभी लोग एक–दूसरे से बातें करते थे और जब भी खाली कालांश रहता था तब लड़कियां और लड़के अंताक्षरी खेला करते थे। शिखा गाना गाने की शौकीन थी वह भी सब लोगों के साथ धीरे–धीरे बात–चित करने लगी।
कक्षा में अब जब भी कोई भी कालांश खाली रहता सभी लोग अंताक्षरी ही खेलते थे। शिखा को अब अच्छा लगने लगा था वो भी सब के साथ बिल्कुल सामान्य तरीके से रहने लगी शायद उसका डर अब थोड़ा–थोड़ा कम होने लगा था।
एक रोज शिखा के पास बैठने वाली कुछ लड़कियां उससे कहती हैं.... शिखा तुम अब सब लड़कों से बात करना बंद कर दो। शिखा को बहुत आश्चर्य हुआ तो उसने उन लड़कियों से पूछा क्यों? तुम लोग भी तो सब एक–दूसरे से बातें करते हो फिर सिर्फ़ मुझे ही क्यों बात करने से मना कर रहे हो?
उन लड़कियों ने शिखा से कहा तुम्हारी आवाज बहुत अच्छी हैं और एक लड़का जो हमारे जानने वाला तो हैं पर बहुत ही बुरा हैं। हम लोग तुझे बताना चाहते थे लेकिन बता नहीं पाएं वो लड़का बहुत दिनों से सिर्फ तुम्हारे बारे में ही बात करता हैं हम से और तुम से बात करने की बात कहता हैं।
शिखा उन लोगों की बात सुनकर बहुत डर गई क्योंकि अगर ऐसी बात उसके पिताजी को पता चल जाती तो वह उसकी पढ़ाई ही छुड़वा देते।
शिखा अब बहुत उदास रहने लगी उसे समझ ही नहीं आ रहा था कि वह अब क्या करे क्योंकि उसने कभी भी किसी को अपना दोस्त नहीं बनाया था। ना ही किसी लड़की को और ना ही किसी लड़के को..
शिखा की परीक्षा भी पास आ गई थी और वह लड़का भी उससे बात करने की कोशिश करता रहता था लेकिन वह सहमी हुई ही रहने लगी।
गुरुजनों ने परीक्षा की तारीख बता दी उसके बाद उन्हें सिर्फ़ परीक्षा देने के लिए ही आना था...
उसी दिन जब शिखा घर जा रही थी तब वह लड़का उसका पीछा करते हुए आ रहा था। शिखा ने जब पीछे मुड़कर देखा तो वह बुरी तरह से डर गई और वह जल्दी – जल्दी अपने घर जा रही थी और पीछे से वह लड़का उसे आवाज लगा रहा था रुको शिखा मुझे तुम से कुछ कहना हैं... मैं तुम से प्यार करने लगा हूं। ये बात सुनकर तो शिखा और भी ज्यादा डर गई।
शिखा के घर जाने के रास्ते में रेलवे स्टेशन आता था उसे पटरियां पार करके जाना पड़ता था उस दिन पटरी पर ट्रेन खड़ी थी लेकिन वह लड़का उसका पीछा कर रहा था और शिखा डर के मारे जल्दी जल्दी चल रही थी लेकिन वह समझ ही नहीं पा रही थी कि ट्रेन चलने वाली हैं वह कैसे जाए।
उसने सोचा अगर यहां से नहीं गए तो वह लड़का उसके साथ कुछ गलत कर लेगा यह सोचकर वह ट्रेन के नीचे से निकल गई। एक पल में ही ट्रेन रवाना हो गई यह शिखा की खुशकिस्मती थी कि उसे चोट नहीं लगी।
हम कह सकते हैं....
कि...शायद मौत उसे छूने के लिए आई और रास्ता बदलकर निकल गई।
उस दिन के बाद शिखा कभी भी स्कूल नहीं गई सिर्फ़ परीक्षा देने गई थीं वो भी अपने पिताजी के साथ और वापस आती थीं उन लड़कियों के साथ।
परीक्षा खत्म हो गई और कुछ समय के बाद परीक्षा के परिणाम भी आ गए लेकिन शिखा स्कूल नहीं गई तो उनके एक शिक्षक घर आए उन्होंने कहा तुम्हारा परीक्षा परिणाम अच्छा आया हैं और स्कूल में सभी बच्चों को सम्मानित किया गया था तुम क्यों नहीं आई?
शिखा ने किसी से कुछ भी नहीं कहा लेकिन वह शिक्षक उसके लिए एक तोहफ़ा लेकर आए पेन... शिखा को बहुत ख़ुशी हुई लेकिन उस लड़के का डर उसके मन में घर कर गया और अब वह हमेशा मायूस और उदास ही रहने लगी। कुछ समय बाद फिर से शिखा का परिवार एक नए शहर में चल गया।
उस जगह से तो चले गए वो लोग पर शिखा के मन का डर खतम ही नहीं हो पाया।
शिखा के जीवन में आगे क्या हुआ पढ़िए अगले भाग में.......
