"माँ"
"माँ"
दुनियां का सबसे खूबसूरत शब्द अगर कोई हैं तो वो शब्द हैं..."माँ"
अगर माँ के लिए दो शब्द बोलने के लिए कहा जाए तो कोई भी नहीं बोल सकता क्योंकि माँ का प्यार तो इतना गहरा होता हैं कि कोई भी व्यक्ति उस प्यार को दो शब्दों में बयां नहीं कर सकता।
यह कहानी हैं...
एक ऐसी ही माँ की जिसकी दुनियां सिर्फ़ उसके बच्चों पर ही आकर ख़त्म हो जाती हैं...
आशा एक गांव में रहने वाली बहुत ही गरीब और नेक औरत थी जो अपने बच्चों के साथ बहुत ही खुशी से रहती थी।
उसका पति बाहर दूसरे शहर में काम करने जाता था और जितने पैसे होते थे उसका कुछ हिस्सा अपनी पत्नी आशा के पास भेज देता था लेकिन आशा के साथ उसकी तीन बेटियां और दो बेटे थे उन पैसों से आशा के घर का गुजारा नहीं हो पाता था। तो आशा ने सोचा क्यों ना मैं भी मजदूरी करने जाऊं जिससे परिवार का पालन पोषण कर सकू...!
आशा कुछ समय बाद मज़दूरी करने के लिए जाने लगती हैं और जो भी पैसे कमाती उन पैसों से अपने परिवार का पालन पोषण करती।
एक रोज उसका पति बाहर से घर आता हैं और जब आशा को मज़दूरी पर जाते हुए देखता है तो वह गुस्सा करने लगता हैं कि तुम्हें क्या जरूरत हैं काम करने की?
आशा कहती हैं कि जो पैसे आप भेजते हैं उन पैसों से घर नहीं चल पाता हैं और मुझे काम करने के लिए जाना पड़ता हैं। आशा की बात सुनकर उसका पति गुस्से से लाल हो जाता हैं और फ़िर अपनी एक बड़ी बेटी को अपने साथ लेकर वापस शहर चला जाता हैं आशा को उसके हाल पर छोड़कर...!
आशा फिर भी निराश नहीं हुई और अपनी मेहनत और ईमानदारी से काम करती रही और अपने बच्चों को पढ़ाई करने के लिए भेजती रही। बाकी सभी बच्चों ने तो कुछ – कुछ समय तक ही पढ़ाई की क्योंकि उनसे अपनी माँ की ऐसी हालत देखी नहीं गई कि माँ दिनभर बाहर काम करती हैं और घर आकर घर का काम करती हैं तो उन्होंने सोचा घर का काम हम कर लेंगे।
उन्हीं बच्चों में एक सब से छोटा बेटा था राघव वह अपनी पढ़ाई भी करता और जब उसे समय मिलता तो मज़दूरी भी करता। धीरे – धीरे समय बीतता गया। एक दिन आशा का पति घर आकर बताता हैं कि उसने बड़ी लड़की की शादी तय कर दी उसी शहर के रहने वाले एक लड़के से जिस शहर में आशा का पति रहता था।
आशा अंदर से दुःखी तो थी कि उसकी बेटी के साथ समय बिताने का भी मौका नहीं मिला और छोटी सी उम्र में उसकी शादी भी होने वाली हैं लेकिन आशा क्या कर सकती थी?
उसने भी कहा... ठीक हैं।
और कुछ समय बाद ही उसकी बड़ी बेटी की शादी हो जाती हैं।
थोड़ा समय ओर बीतता हैं और उसके बड़े बेटे की भी शादी हो जाती हैं लेकिन उसकी बहू बहुत ही खड़ुश प्रवृत्ति की होती हैं वह अपने पति के साथ अलग रहने लग जाती हैं बेचारी आशा कुछ नहीं कर पाती हैं।
अब बारी आई उसकी दो और छोटी बेटियों की जिनकी शादी की तैयारियां भी शुरू हो जाती हैं धीरे–धीरे समय बीतता जाता हैं और छोटी बेटियों की भी शादी हो जाती हैं।
अब आशा के पास सिर्फ़ एक छोटा बेटा रहता हैं और वह दोनों अकेले ही रहते थे। राघव सबसे छोटा था लेकिन वह बहुत अच्छा इंसान था वह अपने माता –पिता की स्थिति को बहुत अच्छे से समझता था इसीलिए दिन में पहले ख़ुद पढ़ाई करता और रात में अपनी पढ़ाई के पैसों के लिए मज़दूरी करने जाता था।
उसकी माँ उसे बहुत प्यार करती थी... प्यार तो माँ अपने सभी बच्चों से करती हैं लेकिन आशा राघव से अधिक स्नेह रखती थीं क्योंकि शायद वह जानती थीं कि उसके पूरे परिवार को अगर सम्भाल कर अगर कोई रख सकता हैं तो वह सिर्फ़ राघव ही था।
कुछ समय बाद राघव की भी शादी हो चुकी थी उसके भी दो बच्चे हो गए।
आशा ने शायद ही ऐसा कोई मंदिर छोड़ा होगा जहां उसने अपने बेटे राघव की नौकरी के लिए मन्नतें ना मांगी हो...!
उठते बैठते बस यही दुआएं करती कि राघव अच्छी सी नौकरी पर लग जाएं...
और देखिए... माँ की दुआएं रंग लाई राघव कड़ी मेहनत के दम पर सरकारी नौकरी लग गया।
राघव सरकारी नौकरी तो लग गया लेकिन उसकी नौकरी भी दूसरे शहर में लगी।
आशा अब पहले से ज्यादा चिंता में रहने लगी क्योंकि राघव की पत्नी भी उसे हर वक्त ताने मारती रहती थी कि आपकी वजह से हम लोगों को दूर –दूर रहना पड़ता हैं।
राघव के मन में कभी भी ऐसी कोई बात नहीं आई क्योंकि वह अच्छे से जानता था कि आज वो जिस मुकाम पर हैं उसका पूरा श्रेय उसकी माँ को ही जाता हैं लेकिन वह इस बात से अंजान था कि उसकी पत्नी उसकी माँ के साथ ऐसा बर्ताव करती हैं।
राघव जब भी छुट्टी मिलती घर आता था और फ़िर सारा समय आशा और अपने परिवार के साथ बिताता था।
लेकिन आशा अब धीरे – धीरे शायद अंदर ही अंदर टूटती जा रही थी क्योंकि उसके परिवार का एक भी सदस्य ऐसा नहीं था जो पूरी तरह से ठीक हो।
उसकी बेटियां भी अपने ससुराल में खुश नहीं थीं लेकिन खुश होने का दिखावा करती थी लेकिन वो सब शायद यह भूल गई कि माँ से कुछ भी नहीं छिपा हुआ होता हैं।
माँ को अपने बच्चों की तकलीफ़ आँखें बंद करके भी महसूस हो जाती हैं।
आशा की हालत दिन–दिन बिगड़ती चली गई और एक दिन अपने दिल की सारी परेशानियों को अपने दिल में ही समेट कर भगवान के पास चली गई।
आशा जिसका पूरा जीवन दुःख और तकलीफ़ में ही बिता लेकिन उसने कभी भी हार नहीं मानी हर कदम पर परेशानियों का सामना मुस्कुराते हुए किया।
लेकिन कभी भी किसी से भी शिकायत नहीं की।
सच में... अगर माँ हैं तो दुनियां हैं।
माँ के बिना तो घर का हर कौना सुना – सुना लगता हैं और घर...
घर नहीं लगता बल्कि मकान बनकर रह जाता हैं।
