"बेटी की विदाई"
"बेटी की विदाई"
सच में....
ना जाने यह "विदाई" शब्द किसने बनाया होगा..?
कहते हैं...
एक पुरुष अपने पूरे जीवन में कभी भी किसी के सामने और किसी भी परिस्थिति में हो "रोता" नहीं हैं लेकिन जब बात बेटी की हो तब उसकी नींद भी उड़ जाती हैं और बेटी को परेशानी में देख कर उसकी आंखों से आंसू भी निकल जाते हैं।
देव और कविता दोनों बहुत ही अच्छे स्वभाव के लोग थे लेकिन बहुत ही गरीब थे। वह दोनों अपना घर छोड़कर दूसरे शहर जाते हैं और वहां किराए के मकान में रहने लगते हैं।
देव बहुत मेहनती इंसान था वह बहुत ज्यादा मेहनत करता था उसकी सबसे बड़ी खूबी थी.... वह अपने काम के प्रति बहुत ही ईमानदार था। धीरे–धीरे नए शहर में उसकी अपनी एक बहुत अच्छी पहचान बन गई।
उसके चार बच्चे थे... दो बेटियां और दो बेटे।
देव ने अब किराए के मकान में रहते हुए खुद के लिए एक जगह खरीद ली और अपना खुद का मकान बना लिया। कुछ समय बाद वह अपने घर में आ गए और वहीं रहने लगे।
देव की पत्नी बहुत ही अच्छी थी और मेहनती भी थी उसने देव से कहा आप किराए पर गाड़ी चलाते हो अब हम ऐसा करते हैं कि खुद का गाड़ी ले आते हैं। देव को कविता की बात सही लगी और उसने एक पुरानी गाड़ी खरीदी और उसे बिल्कुल ठीक करवाया और वह दिन रात मेहनत करता रहा।
एक दिन कविता ने कहा मेरे मन में एक विचार हैं..
देव ने कहा बताओ..!
कविता ने कहा आप बाहर काम करते हैं क्यों ना हम अपने घर पर एक दुकान बना ले... देव को कविता की बात सही लगी और उसने अपने घर पर एक दुकान बना ली।
अब कविता और देव दोनों मेहनत और ईमानदारी से काम करने लगे। अब देव का परिवार गरीब स्थिति से निकल कर कुछ हद ठीक हो चुका था और होता भी क्यों नहीं दोनों एक दूसरे से बहुत प्यार जो करते थे और एक दूसरे का सम्मान भी करते थे।
धीरे–धीरे समय बीतता जा रहा था अब उनके बच्चे भी बड़े हो गए। देव ने समय रहते हुए पहले अपने बड़े बेटे की शादी कर दी और कुछ समय बाद अपनी दोनों बेटियों का रिश्ता तय कर दिया।
कुछ समय बाद शादी का दिन भी आ गया देव और कविता दोनों बहुत खुश थे लेकिन उनकी आंखों में नमी थी क्योंकि बेटी के माता–पिता होना कोई आसान बात नहीं हैं।
वह दोनों अपने बच्चों से बेहद प्यार करते थे लेकिन उनकी आंखों की नमी बता रही थी कि वह अंदर से कितने डरे हुए और सहमे हुए हैं क्योंकि एक पिता अपनी बेटी को "फूलों का माली" बनकर पालता हैं और जब शादी का दिन आता हैं तब उसे यह डर सताने लगता हैं कि दूसरे घर परिवार में जाने के बाद उसकी बेटी की देखभाल सही तरीके से होगी भी या नहीं।
उसे एक बेटी की तरह रखा जाएगा या फिर वह सिर्फ़ एक बहुँ बनकर ही रह जाएगी...!
इस दुनियां में अगर एक बेटी के जनम के समय सबसे ज्यादा ख़ुशी किसी को होती हैं ना तो वो ख़ुशी सिर्फ़ एक पिता को ही होती हैं।
बेटी के लिए पिता ही उसका सुपर हीरो होता हैं जो दुनियां की महंगी से महंगी चीज या दुनियां भर की सारी खुशियां अपनी बेटी को दे सकता हैं।
देव भी बिल्कुल ऐसा ही पिता था।
देव की दोनों बेटियों की शादी हो जाती हैं और समय हुआ विदाई का... जो शख्स कभी भी किसी भी परिस्थिति में ना तो घबराया ना ही जीवन में हार मानी लेकिन अपनी बेटियों की विदाई के समय सबसे ज्यादा रोने वाला शख़्स सिर्फ़ देव ही था लेकिन कहते हैं ना बेटी को अपने पिता के घर से विदा लेकर दूसरे घर परिवार जाना ही होता हैं।
कुछ समय बाद देव अपनी दोनों बेटियों को विदा तो करता हैं उस पल उसके दिल की हालत कैसी होगी शायद ही कोई समझ पाया होगा।
इस दृश्य को देखने के बाद तो कोई पत्थर दिल इंसान ही होगा जिसकी आंखों से आंसू ना आएं होंगे।
सच में..
ना जाने यह "विदाई" शब्द किसने बनाया होगा?
