ढलती हुई हर शाम का इंतज़ार
ढलती हुई हर शाम का इंतज़ार
अजीब सी उलझन हैं मेरे मन की...
ना जाने क्यों...?
शाम मुझे बेहद खूबसूरत लगती हैं लोग सुबह की किरणों को देख कर खुश होते हैं पर मुझे हर सुबह के बाद ना जाने क्यों शाम होने का इंतज़ार रहता हैं..!
हर पल जैसे किसी के आने का इंतज़ार हो बिल्कुल उसी तरह मुझे ढलती हुई हर शाम का इंतज़ार करना अच्छा लगता हैं।
कुछ भी याद नहीं हैं मुझे कि इस ढलती हुई शाम के साथ कौन सी यादें जुड़ी हुई हैं मेरी लेकिन फ़िर भी जब सूर्य पश्चिम की ओर जाता हुआ नज़र आता हैं तो मन बहुत विचलित सा रहता हैं।
जैसे... किसी के लौटकर आने का इंतज़ार हो मुझे।
काश!
कोई शाम ऐसी हो कि तुम्हें भी अपने साथ लेकर आए प्रिय...
मेरे मन की हर रोज़ बढ़ती हुई बैचेनी और उलझन को सुलझाए प्रिय...
सुनने में ये सारी बातें एक कहानी जैसी लगती हैं पर हकीकत वहीं समझ पाएगा...
जिसने गुजरता हुआ हर लम्हा किसी के इंतज़ार में बिताया होगा...
मुझे तुम से बेहद प्यार हैं ये मेरा सबसे बड़ा सच हैं। अब हर बात को तो लफ्ज़ों में बयां नहीं किया जा सकता ना।
पता नहीं जीवन में यह समय आएगा भी या नहीं...
लेकिन मुझे तुम्हारे साथ बहुत सारा समय बिताना हैं उस हर एक लम्हें को सुकून के साथ जीना हैं जिस लम्हें में सिर्फ़ हमारा प्यार और उस प्यार का खूबसूरत एहसास शामिल हो।

