अंतर्राष्ट्रीय बालिका दिवस विशेष
अंतर्राष्ट्रीय बालिका दिवस विशेष
आज के समय में हम सब बेटियों को आगे बढ़ाने की बात तो करते हैं लेकिन क्या सच में इसमें हमारा योगदान रहता हैं?
समाज में आज भी कई ऐसे रूढ़िवादी लोग मौजूद हैं जिनके कारण बेटियों को आज भी आगे बढ़ने का अवसर नहीं मिल पा रहा हैं। उनकी प्रतिभा उस चार दिवारी के अंदर ही सिमट कर रह गई हैं। हर एक बेटी को अगर अपनी प्रतिभा दिखाने का एक अवसर मिले तो वह समाज में अपनी एक अलग पहचान बनाने में सक्षम हैं।
समाज के लोग ना जाने क्यों इस बात को स्वीकार करने के लिए तैयार ही नहीं हैं कि बेटियां भी बेटों की तरह कार्य कर सकती हैं...
अगर बेटियों को भी अवसर मिले तो वो भी अपने घर,परिवार,समाज और देश का नाम रोशन कर सकती हैं। परन्तु जब कोई लड़की या औरत अपने घर–परिवार के लोगों का भरण–पोषण करने के लिए या किसी व्यवसाय के लिए घर से बाहर निकलती हैं तो समाज के लोग उसे बहुत ही नीच या गलत भाव से देखते हैं। उसे सब के समक्ष इस प्रकार जलील करते हैं कि उसकी कला या कार्य करने की क्षमता चार–दिवारी के अंदर ही सीमित होकर रह जाती हैं।
ना जाने क्यों लोग कहते हैं कि बेटियों को भी स्वतंत्र रूप से जीवन जीने का अधिकार हैं...!
एक बार अपनी नज़रों को समाज की तरफ घुमाकर तो देखिए कि क्या बेटियां पूर्ण रूप से स्वतंत्र हैं...?
बेटियों की आजादी की बात तो बहुत दूर हैं क्या वह हमारे इस समाज के बीच में रहकर सुरक्षित हैं..?
आज अगर कोई लड़की या कोई औरत घर से बाहर निकलती हैं तो उसके मन में एक डर बना रहता हैं कि घर से निकलने के बाद ऐसी कोई घटना न घटित हो जाए जिससे वह समाज के सामने अपना मुंह न दिखा सके। तो फिर हम कैसे कह सकते हैं कि बेटियों को भी स्वतंत्र रूप से जीवन जीने का अधिकार प्राप्त हैं बेटियां तो आज के समय में स्वयं के घर या समाज में भी सुरक्षित नहीं हैं।
बात करते हैं हम बेटियों की रक्षा की...
तो फिर क्यों उन्हें जन्म से पूर्व गर्भ में ही मार दिया जाता हैं?
और इत्तेफाक से किसी के घर में बेटियां होती भी हैं तो लोगों की एक छोटी सोच...
वंश का नाम आगे बढ़ाने के लिए एक बेटा भी होना चाहिए...
ऐसी सोच रखने वाले लोग क्या सच में बेटियों के हित में सोच सकते हैं?
हां... समाज में पहले जिस तरह से नारी जाति का सम्मान नहीं किया जाता था वह सोच अब कुछ हद तक बदल चुकी हैं लेकिन पूरी तरह से नहीं बदली हैं।
समाज और देश को अगर एक नई दिशा की ओर आगे बढाना हैं तो बेटे–बेटी के बीच के अंतर को सब से पहले मिटाना होगा।
तभी हम कह सकते हैं कि...
हमारे समाज और हमारे देश में बेटियों को स्वयं का जीवन स्वतंत्र रूप से जीने का अधिकार हैं।
