"मान्य महारानी"
"मान्य महारानी"
राजा महाराजा के जमाने में लोगों कि कहावत थी
कि राजा माने वहीं महारानी।
हर एक शाही राज परिवार में अनेक रानियां हुआ करती थीं।
उसमें एक मान्य महारानी हुआ करती थीं।
राजा महाराजा साहब उसके साथ
राज़ सिंहासन पर विराजमान होते थे।
राज महल में मान्य महारानी साहिबा का
हुक्म चलता था।
इस पद प्राप्ति हेतु प्रयास होते रहते थे।
और राज़ महल में अनेक चालें चली जाती थीं।
इसमें पारंगतता रानियां दासीयां में रणवासे से
सफलता प्राप्त करने कि होड़ लगी रहती थी।
यह एक तरह से राज़ महल में गृह युद्ध होता था।
इसमें पारंगतता रानियां दासीयां
रणवासे से राज़ दरबार तक को
प्रभावित करने कि कोशिश करतीं थीं।
इसमें कई बार राज परिवारों में
बड़े विवाद पैदा हो जाते थे।
इसमें कई तरह-तरह के जतन किये जातें थे।
जो कि कुछ संदेहास्पद भी होते थे।
कई बार राज परिवार को राजाओं राज़ दरबारियों
को मौत के घाट तक उतार दिया जाता था।
ऐसीअनेकों शाही राजघरानों कि कहानीयां हैं।
इसलिए न्यायप्रिय शाही शासनकाल में
मान्य महारानी साहिबा कि भी
महत्वपूर्ण भूमिका होती थीं।
मान्य महारानी साहिबा एक प्रकार से
गृहमंत्री का पद कार्य संभालें हुऐ होती थीं।
राज़ दरबार के सभी लोगों के ख़ान पान
कि व्यवस्था सहितअन्य कार्य भी होते थें।
श्रीराम को वनवास भरत कोअयोध्या राजगद्दी
संभालने में मान्य महारानी साहिबा
कैकयी कि महत्वपूर्ण भूमिका थी।
जो जगजाहिर मान्य महारानी
साहिबा कैकयी रघुकुल राज़ परिवारअयोध्या
का ग़लत फैसला था।
ऐसे ही लाखों उदाहरण इतिहास में भरें पड़े हैं।
इसलिए कई न्यायप्रिय पुर्व शाही राजघरानों में
मान्य महारानी साहिबा काओहदा पद
सम्मानित महत्वपूर्ण भूमिका में नजर आएंगे।