मान-मर्यादा के दायरे
मान-मर्यादा के दायरे
संजय की नजर में नारी जाति का मान घर की चहारदीवारी में पति, बच्चों और घर के बड़े-बुजुर्गों की सेवा के द्वारा मान मर्यादा में रहने में हैं। इसके अलावा उसका अपना कोई अस्तित्व या वजूद उसके नजरिए में बेमानी है । पति के अलावा किसी पराए मर्द से मिल-बैठ कर हँसना-बोलना-बतियाना उसको बिल्कुल पसंद नहीं था । उसके अनुसार औरत जात का सज-संवर कर दफ्तर में पराए मर्द से हँस-बोल कर बात करना, इस पढ़े-लिखे समाज का आधुनिकता के नाम पर अपनी सभ्यता और संस्कृति पर कुठाराघात हैं । क्योंकि नारी जात मान-मर्यादा और दायरे में रहती ही शोभा देती हैं । कुछ इसी तरह का व्यवहार वह अपनी पढ़ी-लिखी पत्नी रेखा से चाहता था। उसे हर समय ऐसा लगता था जैसे रेखा से शादी करके उसने उस पर बहुत बड़ा उपकार किया हैं। कभी-कभार
रेखा विरोध भी करती । लेकिन गृह क्लेश से बचने के लिए घर गृहस्थी, समाज और बच्चों की सोच में कड़वा घूंट भरकर चुप रह जाती ।
वहीं एक दिन बाजार में इत्तफाक से संजय की बॉस आशिमा मिल जाती है ।
संजय रेखा से, मिलो इनसे यह मेरी बॉस आशिमा गिरधर है । बड़ी होशियार, समझदार और सलीकेदार है। फिर उसके साथ हँस-हँस बोलता-बतियाता हुआ उसका सारा सामान खरीदवा कर गाड़ी में रखवा आता है तथा हाथ हिला कर बाय-बाय करता हुआ, "मैडम जी, भविष्य में भी मेरे लायक कोई सेवा हो तो अवश्य याद कीजिएगा।"
रेखा से रहा नहीं जाता और वह गुस्से में, "संजय, अगर मैं किसी मर्द से बात कर लूं तो तुम्हें नारी मर्यादा, सभ्यता और संस्कृति पर कुठाराघात, पराया मर्द और समाज याद आ जाता हैं। पर, तुम तो बड़े हँस-हँस कर उस मैडम से बतिया रहे थे।"
संजय, "अरे! वह तो बॉस है।"
रेखा, "हाँ बॉस तो थी । पर थी तो वह नारी जात और तुम पराए मर्द ।" फिर तुम्हारे उसूल - "सभ्यता-संस्कृति पर कुठाराघात, मान-मर्यादा के दायरों का क्या…?"