स्वेटर
स्वेटर
हाड़ कंपकंपाती कड़ाके की सर्दी में गाड़ी धोने वाला सोनू बिना स्वेटर के बड़े इत्मीनान से सोसाइटी में कतार में लगी गाड़ियों को पाइप से धोने में मस्त था । गीले से बचने के लिए उसने मोजे और जूते सड़क किनारे लगा दिए । उसे देखकर सिर से पैर तक कपड़ों में लदे हुओं की भी कंपकंपी छूट रही थी ।
तभी वीरेन बाबू ने तरस खाकर - "सोनू ,इतनी सर्दी में तुम्हारी स्वेटर कहाँ है..?"
सोनू - "साहब, कल धोई थी, अभी सूखी नहीं है।"
"दूसरी डाल लेते ।"
सोनू - "साहब, एक ही है।"
वीरेन जल्दी से अपना वार्डरोब खोल कर, असमंजस की स्थिति में, अपनी बीस-पच्चीस स्वेटरों में से किसी का भी मोह त्याग नहीं पा रहा था। एकबारगी तो- "चलो छोड़ो, उसका गुजारा तो बिना स्वेटर के हो ही रहा है । फिर, मैं उसे अपनी कीमती और प्यारा स्वेटर क्यों दूँ.. ।" लेकिन अगले ही पल तुम्हारे एक स्वेटर के दान से उसके तन-बदन को कंककंपाती सर्दी से निजात मिल जाएगा । वह तुम्हें दुआ देगा और तुम्हें पुण्य की प्राप्ति होगी। अत: अपने मन पर पत्थर रखकर अपनी प्यारी स्वेटर सोनू को उपहार स्वरूप दे दी ।
सोनू भी कीमती स्वेटर पाकर फूला नहीं समाया और "साहब, आपका भला हो" कहकर उसने झट से स्वेटर पहन ली ।
लेकिन अगले रोज सोनू को बिना स्वेटर के देखकर वीरेन का पारा सातवें आसमान पर पहुँच गया और वह गुस्से में चिल्लाने लगा - "क्या सोनू , आज फिर बिना स्वेटर के…, क्या तुम लोगों ने तरस बटोर कर माँगने का धँधा बनाया हुआ है …?"
सोनू - नहीं साहब, कल घर जाते वक्त एक बेचारा बीमार, फटेहाल बूढ़ा सड़क पर ठिठुर रहा था । मेरे से ज्यादा स्वेटर की उसे जरूरत थी। इसलिए उतारकर उसे पहना दी । मेरे पास तो एक..स्वेटर.. है…ही... , धूप निकलते ही सूख…। उसने अभी अपनी बात पूरी ही नहीं की थी कि वीरेन बड़बड़ाता हुआ - "तुम लोगों का ना, कुछ नहीं हो सकता ।"
स्वेटर
हाड़ कंपकंपाती कड़ाके की सर्दी में गाड़ी धोने वाला सोनू बिना स्वेटर के बड़े इत्मीनान से सोसाइटी में कतार में लगी गाड़ियों को पाइप से धोने में मस्त था । गीले से बचने के लिए उसने मोजे और जूते सड़क किनारे लगा दिए । उसे देखकर सिर से पैर तक कपड़ों में लदे हुओं की भी कंपकंपी छूट रही थी ।
तभी वीरेन बाबू ने तरस खाकर - "सोनू ,इतनी सर्दी में तुम्हारी स्वेटर कहाँ है..?"
सोनू - "साहब, कल धोई थी, अभी सूखी नहीं है।"
"दूसरी डाल लेते ।"
सोनू - "साहब, एक ही है।"
वीरेन जल्दी से अपना वार्डरोब खोल कर, असमंजस की स्थिति में, अपनी बीस-पच्चीस स्वेटरों में से किसी का भी मोह त्याग नहीं पा रहा था। एकबारगी तो- "चलो छोड़ो, उसका गुजारा तो बिना स्वेटर के हो ही रहा है । फिर, मैं उसे अपनी कीमती और प्यारा स्वेटर क्यों दूँ.. ।" लेकिन अगले ही पल तुम्हारे एक स्वेटर के दान से उसके तन-बदन को कंककंपाती सर्दी से निजात मिल जाएगा । वह तुम्हें दुआ देगा और तुम्हें पुण्य की प्राप्ति होगी। अत: अपने मन पर पत्थर रखकर अपनी प्यारी स्वेटर सोनू को उपहार स्वरूप दे दी ।
सोनू भी कीमती स्वेटर पाकर फूला नहीं समाया और "साहब, आपका भला हो" कहकर उसने झट से स्वेटर पहन ली ।
लेकिन अगले रोज सोनू को बिना स्वेटर के देखकर वीरेन का पारा सातवें आसमान पर पहुँच गया और वह गुस्से में चिल्लाने लगा - "क्या सोनू , आज फिर बिना स्वेटर के…, क्या तुम लोगों ने तरस बटोर कर माँगने का धँधा बनाया हुआ है …?"
सोनू - नहीं साहब, कल घर जाते वक्त एक बेचारा बीमार, फटेहाल बूढ़ा सड़क पर ठिठुर रहा था । मेरे से ज्यादा स्वेटर की उसे जरूरत थी। इसलिए उतारकर उसे पहना दी । मेरे पास तो एक..स्वेटर.. है…ही... , धूप निकलते ही सूख…। उसने अभी अपनी बात पूरी ही नहीं की थी कि वीरेन बड़बड़ाता हुआ - "तुम लोगों का ना, कुछ नहीं हो सकता ।"