Archana kochar Sugandha

Others

4  

Archana kochar Sugandha

Others

माँ जो हूँ

माँ जो हूँ

1 min
335



दफ्तर में जरूरी मीटिंग में व्यस्त होने के कारण सुरभि आकाश का फोन नहीं उठा सकी। सोच रही थी दफ्तर से घर जाते हुए आराम से आकाश से बात कर लेगी। लेकिन ट्रेन में भीड़ तथा शोर के कारण फोन करना संभव नहीं हो पाया । 


एकदम से चिंतातुर - हे भगवान ! सब कुछ खैरियत में हो, क्योंकि इस दौरान आकाश की पाँच कॉल आ चुकी थी ।


घर पहुँचते ही सबको सकुशल पाकर सुरभि ने रााहत की साँस ली ।


अकाश - "मम्मा, आप फोन नहीं उठा रहे थे । मुझे आपकी बहुत चिंता हो रही थी।" 

फिर चाय-पानी देने के पश्चात मस्का लगाते हुए, उसने कॉलेज जाने के लिए नई बाईक की फरमाइश उसके आगे रख दी। थोड़ी सी ना-नुकर के पश्चात सुरभि ने हाँ बोल दी ।


अकाश खुशी से सुरभि के गले लग कर झूमते हुए - हे.. हे.. , मेरी माँ को मनाना बहुत ही आसान है तथा जोश-जोश में - "मैं मम्मी को एक मिनट में मूर्ख बना सकता हूँ ।" 


तभी सुरभि नर्मी से कड़क लहजे में - मूर्ख नहीं हूँ मैं और हाँ, कभी भी माँ को मूर्ख समझने की भूल भी मत करना । बस ममता के आगे विवश हूँ, क्योंकि संतान के मोह में अँधी माँ जो हूँ । 


मां जो हूं।


Rate this content
Log in