मुज़फ्फर इक़बाल सिद्दीकी

Abstract

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मुज़फ्फर इक़बाल सिद्दीकी

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माँ का फर्ज

माँ का फर्ज

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पेरलाइज़्ड अटैक के कारण माँ की हालत दिन पर दिन गिरती जा रही थी। दवाओं का अब उनके ऊपर बहुत ज़्यादा असर नहीं हो रहा था। वृद्धावस्था के कारण डॉक्टर भी जितनी सेवा हो सके करने की हिदायत के साथ अपना फ़र्ज़ अदा कर रहे थे। पहले उनका चलना फिरना बंद हुआ। फिर तो एक दिन ऐसा अटैक आया कि आवाज़ भी चली गई। ऐसे में उनकी सेवा, सेवादार के विवेक पर ही निर्भरबेटे मयंक और बहू शीतल अत्यधिक देखभाल करते। साथ में बच्चे भी, जिससे जो बन पड़ता कर रहा था। लेकिन जब भी सीमा दीदी देखने आती उनको शीतल की तीमारदारी में हमेशा कोई न कोई कमी ही नज़र आती।

मयंक, जब भी मैं आती हूँ। कभी उनकी चादर गन्दी दिखती है। कभी उनकी चोटी ही नहीं होती। तुम लोग अगर देखभाल नहीं कर सकते तो साफ़-साफ़ क्यों नहीं कह देते, कि माँ अब तुम लोगों पर एक बोझ बन गई है।

नहीं दीदी, ऐसी बात नहीं है। शीतल और बच्चे सभी उनका ध्यान रखते हैं जिससे जो बन पड़ता है, करते हैं। अनदेखी जैसी कोई बात नहीं है। हो सकता कभी कोई कमी रह गई हो। एक तो शीतल अकेली है उसको घर, बच्चे, खाना सभी कुछ तो देखना रहता है। दीदी आप बता दिया करो कोई कमी दिखती है तो हम लोग कर देंगे। मयंक ने बहुत ही विनम्रता पूर्वक कहा।

लेकिन सीमा का गुस्सा शांत नहीं हुआ था। वह तो आज जैसे सबको खरी-खोटी सुनाने को ही आई थी। पास के मोहल्ले में जो रहती थी।

मयंक, जब भी मैं माँ की अनदेखी की बात करती हूँ। तुम हमेशा शीतल के पीछे खड़े नज़र आते हो। अगर तुम सब के बस का नहीं है, तो मैं ले जाती हूँ उन्हें अपने पास।

दीदी, दरअसल मुझे तो घर के अलावा दफ्तर भी देखना होता है। जितनी देर मैं घर में रहता हूँ, देखभाल करता हूँ। फिर शीतल उन्हें अच्छे से नहला-धुलाकर खाना खिलाती है। आप बेफिक्र रहिये। आपको कुछ ग़लतफ़हमी हुई है।

नहीं मयंक, मैं क्या झूठ बोल रही हूँ। जो देख रही हूँ, वही तो बोल रही हूँ। तुम्हें तो अब हम सबकी बातें भी बुरी लगने लगीं। तुम्हारी माँ हैं वह। तुम उनकी सेवा करके कोई अहसान नहीं कर रहे उन पर।

दीदी जितनी मेरी माँ हैं, उतनी आपकी भी माँ हैं। आपकी परवरिश में भी उन्होंने कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी। अब तो आपके भी बच्चे बड़े हो गए। माँ तो कहीं नहीं जाएगी। लेकिन कल से आप भी अपने घर के काम निपटा कर रोज़ यहाँ आ जाया करो। और जो कमी हम लोगों की सेवा में लगती है उसको पूरा कर दिया करो। अच्छा ऐसा करते हैं। कल से उनको नहलाने-धुलाने का काम आप संभाल लो। आप स्वयं करोगी तो माँ को भी अच्छा लगेगा। और हम सबको भी।

लेकिन मयंक मुझे तेरे जीजा जी से रोज आने की अनुमति लेनी पड़ेगी।

अब इसमें अनुमति की क्या बात दीदी। जीजा जी भी कोई नए-नवेले तो हैं नहीं। जैसी आप माँ को अपने पास रखना चाह रहीं थी तब भी तो उनसे पूछना पड़ता। वैसे ही अब पूछ लेना। मना लेना उनको। आप का भी कुछ फ़र्ज़ तो बनता है न।


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