माँ बेटी
माँ बेटी


मैं तुम्हें नहीं छोड़ूँगी। अपनी मां पर हाथ उठाया तूने, राक्षस है तू। पापा की मौत को अभी सात दिन भी नहीं हुये और यह कुत्ता सब को सम्भालने की जगह मम्मी को धक्का दे रहा है। आज तो आर या पार हो कर रहेगा। “ सौ नम्बर डायल करती हूँ अभी।" आप मम्मी बीच में मत बोलिये , आज देखती हूँ कितना बड़ा गुंडा है ? रितु रोते हुये बोली।
खोल दरवाज़ा ! खोल ! अरमान बाहर से दरवाज़ा भड़भड़ाते हुये चिल्लाया।
अब तो सौ नम्बर डायल करना ही पड़ेगा। रितु चिल्ला कर बोली।
हाँ !! कर देखता हूँ कौन रोकता है और कैसे रोकता है मुझे, मेरा हिस्सा लेने से। पुलिस / कोर्ट मैं भी खूब जानता हूँ, सारी उम्र यही किया है। एक बार दरवाज़ा तो खोल फिर बताता हूँ।
बेटा, मामा जी और चाचा को बुला ले फ़ोन कर के। पुलिस में जाना ठीक नहीं, लोग क्या कहेंगे। अभी इनको गये एक हफ़्ता भी नहीं हुआ। विनीता ने सुबकते हुये लाचारी से रितु की ओर देखा।
आप लोगों की कमज़ोरी का फ़ायदा उठा कर यह शेर हो जाता है, इसको ठीक करने का एक ही तरीक़ा है, डंडा।
बेटा तेहंरवी तक रुक जा ! उसके बाद जैसा तू कहेगी वैसा ही करेंगे। मामा और चाचा को बुला, कुशल को भी बुला ले, एक जवान लड़का रहेगा तो थोड़ा दबेगा यह दुष्ट। पैदा होते ही मार देती तो यह दिन ना देखने पड़ते। विनीता होठ काटती हुई बोली। अंदर कोई बाँध टूट रहा था।
ठीक मम्मी। पर इसको मैं छोड़ूँगी नहीं। रितु फ़ोन मिलाते बोली।
मामा जी जल्दी घर आ जाओ आप।
क्या हुआ बेटा ! कुलदीप की आवाज़ में घबराहट थी।विनीता दीदी तो ठीक है ना ?
मम्मी ठीक है ! आप आ जाइये, फिर बताती हूँ। रितु ने मोहन चाचा और कुशल को भी बुला लिया।
अरमान थक कर चला गया।
फ़्रीज़ से पानी की बोतल निकाल रितु ने विनीता को दी। पानी पी लीजिए।
बेटा मैं तुझसे माफ़ी माँगती हूँ, तेरी ज़िन्दगी ख़राब कर दी हम लोगों ने। तुम्हें शादी से पहले सब बता देना चाहिये था, पर इकलौते बेटे के प्यार में अन्धे हो गये थे हम दोनो। लगा शादी के बाद सुधर जायेगा। बेटे मुझे माफ़ कर देना, विनीता ज़ोर ज़ोर से रोने लगी।
मम्मी पानी पियो आप। ऐसा कुछ नहीं, जितना प्यार पापा जी और आप ने किया, कोई भी अपनी बहू को नहीं कर सकता। रितु ने गिलास में पानी डाल विनीता को पकड़ाया। सब ठीक हो जायेगा।
कैसे ठीक हो जायेगा ? चार साल हो गये शादी को कोई बच्चा भी नहीं हुआ। रोज़ रोज़ की मार पीट, बेटा मैं तुम्हारी गुनहगार हूँ। भगवान मुझे कभी माफ़ नहीं करेगा। गिलास पकड़े विनीता बोली।
अच्छा आप पहले पानी पी लो। रितु गिलास को उसके होठों से लगाते हुये बोली।
आधा गिलास पी विनीता ने साइड टेबल पर रख दिया।
पीठ पर लगी है ना ? दिखाइये।
ज़्यादा नहीं है। हल्का सा है।
दिखाइये। रितु ने विनीता का कुर्ता उठाया, बाप रे !! सूज गया है। बर्फ़ से सिकाई करती हूँ।
रहने दे ! एक दर्द की गोली दे दे।
ख़ाली पेट? गैस बन जायेगी। ब्रेड मक्खन दे दूँ ? तब तक सिकाई कर देती हूँ, रूमाल में बर्फ़ लपेटते हुये रितु बोली।
टिरटिर घंटी बजी, रितु ने दौड़ कर दरवाज़ा खोला। सामने कुलदीप, मोहन और कुशल खड़े थे। आइये मामा जी।
क्या बात है बेटा ? तू बहुत घबराई हुई है। मोहन ने पूछा
बैठिये चाचा जी। मैं मम्मी को बुला लेती हूँ।
विनीता आवाज़ सुन कर ख़ुद आ गयी।
गुड्डी !! पानी ले आ बेटा। रितु तू भी बैठ विनीता ने गुड्डी को आवाज़ दी।
क्या बात है मामी जी, कुशल ने पूछा।
बेटा अरमान ने आज मुझे धक्का दे कर गिरा दिया। राक्षस पैदा हो गया है घर में।
क्यों ? उसका दिमाग़ ख़राब हो गया है, बुलाओ उसको कुलदीप ग़ुस्से से बोला, कहाँ है ?
अपने कमरे में होगा, या बाहर चला गया होगा। गुड्डी अरमान किधर है ? बुला ला उसे।
यह तो बहुत ग़लत हो रहा है। मोहन बोला। भाई साहब को शुरू से बोला सिर पर मत बैठाएँ इसको। पर भाई साहब सुनते ही नही थे।
अरमान आ कर बैठ गया। उसकी लाल आँखें बता रही थी, कि उसने जम कर शराब पी है।
यह क्या है अरमान ? सोहन भाई साहब को गुजरे एक हफ़्ता भी नहीं हुआ, और तुम पीने लगे। भाभी पर हाथ उठाया तूने।
कुछ तो शर्म कर।
रहने दो चाचा, तुम्हारी क्या नीयत है, मैं सब समझता हूँ। मुझे पागल सिद्ध कर सारी जायदाद हड़प लोगे। और तुम आये क्यों, जायदाद हड़पने ही ना।
देख लो भैया। ऐसी औलाद, इसके लिए इतनी मन्नते माँगी, व्रत किये। बोलने की तमीज़ नहीं तुम्हें। बड़ों से ऐसे बात करते हैं ?
देख अरमान, अब जीजा जी नहीं रहे ! सब की देखभाल तुम्हें ही करनी है, कुलदीप ने उसको समझाना चाहा। सारा कारोबार सम्भालना है। मम्मी की, रितु की देखभाल करनी है।
तो मुझे सारा हिसाब दिलवा दीजिए। जितना सोना है, मकान है। बैंक अकाउंट सब। मैं सब का ध्यान रखूँगा। अरमान जोश से बोला।
सब तुम्हारा ही तो है, भाई। कुशल बोला।
तू चुप बैठ। छोटा है, सारे अकाउंट मम्मी के नाम। फ़र्म में रितु, मम्मी और मैं बराबर के हिस्सेदार। इकलौता बेटा मैं, हिस्सेदार तीन।
सब लोग घर के ही तो हैं। इनकम टैक्स की वजह से पार्ट्नर बनाये जाते है। कुलदीप ने समझाया।
मैं दे दूँगा टैक्स। आप इन दोनो का हिस्सा मुझे दिलवा दीजिए। सब का ख़्याल भी रखूँगा।
ठीक है। तेहंरवी तक तो रुक जा। फिर बैठ कर बात कर लेंगे।
और मम्मी को धक्का क्यों दिया ? रितु जो चुपचाप बैठी थी, अब उसे ग़ुस्सा आने लगा था। और तुम सब कुछ ले कर उड़ा दो। ताकि हम लोग दाने /दाने को मोहताज हो जायें।
यह ठीक बात नहीं अरमान, मोहन बोला। भाई साहब ने सोच समझ कर सब किया है।
तुम ही समझाये हो चाचा। अरमान दांत पीसते हुये बोला। सबसे पहले तो तुम्हारा ही खून करूँगा मैं, अरमान मोहन पर झपटा और गला पकड़ कर मोहन को गिरा दिया। कुशल और कुलदीप ने किसी तरह छुड़ाया। अरमान अपने कमरे में घुस गया।
रितु ने सौ नम्बर डायल कर दिया।
रहने दे बेटा, पुलिस ना बुला मोहन गला सहलाते हुए बोला।
भैया उसको बुलाने दो, विनीता ठण्डी आवाज़ में बोली। पानी सिर के ऊपर से गुज़र गया।
थोड़ी ही देर में पुलिस की गाड़ी आ गयी।
आपने फ़ोन किया था ?
जी रितु बोली। मेरे पति अरमान ने मोहन चाचा को गला दबा कर मारने की कोशिश की।
कोई और था गवाह ?
हाँ मैं भी सामने ही थी।
आप?
मैं अरमान की माँ हूँ।
दीदी ऐसा न करो, कुलदीप बोला। इकलौता बेटा है तुम्हारा।
मर गया वो मेरे लिये। हम लोग तो उसकी मार खा लेते थे,अब वो मोहन भैया को भी मारेगा, कल आपको मारेगा। आप चले जाओगे तो रितु को कौन बचायेगा। अपनी बेटी की हिफ़ाज़त मेरी ज़िम्मेदारी है।
सोच लीजिए माता जी, तीन सौ सात का केस बनेगा। आसानी से ज़मानत नही होगी। घर का मामला है। दरोग़ा जी बोले।
उसकी ज़मानत नहीं होनी चाहिये, अब मैं अपनी बहु की ज़िंदगी दाँव पर नहीं लगने दूँगी। इसकी शादी उस दानव से करा कर पहले ही बहुत सजा दे चुकी हूँ, अब और नहीं। आप उसको गिरफ़्तार करिये। और कुलदीप या मोहन भैया आप को मेरी कसम उसकी ज़मानत नहीं लोगे आप। एकदम शांत स्वर में विनीता बोली, एक एक शब्द मानो किसी प्रतिज्ञा में डूबा।
रितु विनीता से चिपक कर रोये जा रही थी। पर विनीता की आँखों ख़ुश्क थी।
पुलिस वाले अरमान को ले गये। देख लूँगा सब को। दरोग़ा ने कस कर एक झापड़ मारा। पुलिस के सामने धमकी देता है, बेटा एक धारा और बढ़ी। जिस जीप में बिठा कर अरमान को ले गये, विनीता उस जीप को ओझल होने तक देखती रही, फिर कुलदीप से चिपक कर रोने लगी, भैया मैंने ठीक किया ना ? अपनी बच्ची के लिये। कुलदीप, मोहन और कुशल के जाने के बाद विनीता और रितु देर तक सुबकती रही। मानो एक दूसरे को दिलासा दे रहीं हों।