Ruchi Singh

Abstract

4  

Ruchi Singh

Abstract

मां.. आपने ऐसा क्यों किया?

मां.. आपने ऐसा क्यों किया?

5 mins
444


"बहु रीता शनिवार को आ रहे हो ना तुम लोग? तुम्हारी सुरभि दीदी भी आ गई है गर्मी की छुट्टियां बिताने।"

" जी मम्मी जी"

" और हां... बेटा हम सोच रहे हैं कि उस दिन सत्यनारायण भगवान की कथा भी करा लेंगे।"

" ठीक है मम्मी जी। मै आ जाऊंगी, आज तो ऑफिस है। शनिवार, इतवार हम आपके साथ ही बिताएंगे। सोमवार को सीधे वही से चिया को क्रैच छोड़ते हुए ऑफिस चली जाऊंगी।"

" ठीक है बेटा फोन रखती हूं " कहकर रमा जी ने फोन रख दिया।


अशोक जी व रमाजी का एक बेटा अमर, बहू रीता व पोती चिया है। तथा उनकी एक बेटी सुरभि है, जो गर्मी की छुट्टियों में अपने बच्चों के साथ आई है। रमा जी के बेटा, बहू गुड़गांव में किराए के फ्लैट में रहते हैं। उनकी नौकरी वहीं है तो ग्रेटर नोएडा से अप डाउन करना मुश्किल होता था। इसलिए मम्मी जी के कहने पर रीता अपने परिवार के साथ वहीं रहती है। अक्सर ही शनिवार, इतवार को अपनी मम्मी जी के पास आ जाया करती। 


शाम को ऑफिस से लौटते समय रीता व अमर सीधे ही आ गए और साथ में 3 साल की पोती चिया भी। चिया को देख सब खुश हुए। दादी-दादी कहते रमा जी के पीछे दौड़ रही थी । रमा जी व अशोक जी बहुत खुश है, आज उनका पूरा परिवार इकट्ठा है। रमा जी व सुरभि ने सारा खाने का इंतजाम कर लिया था। रीता बहू ने आते ही जल्दी से हाथ धो के सब को खाना खिलाया। खाने के बाद सब बैठ के खूब बातें किए, चिया से खेलें, उसके बाद सब लोग सोने चले गए।


अगले दिन रीता ने सुबह उठकर किचन संभाल लिया। सुरभि दीदी व उनके बच्चों के पसंद का खाना बनाया। सब बहुत चाव से खाना खाए। पूरा दिन यूं ही बीत गया। रमा जी रात में बोली "रीता व सुरभि तुम दोनों कल सुबह जल्दी उठकर तैयारी कर लेना।"

" ठीक है मम्मी जी"

 रीता व सुरभि ने सुबह जल्दी उठकर सारी तैयारी कर ली। रमा जी फिर बोली "तैयारी तो तुम दोनों ने कर ली। जाओ अब कपड़े बदल लो। पूजा का समय हो रहा है पंडित जी व सारे मेहमान आते होंगे। रीता ने बोला "ठीक है मम्मी जी" कहकर चिया को लेकर चली गई। सुरभि भी नहाने चली गई। 


 रीता चिया को तैयार कर खुद एक साधारण सी साड़ी पहन तैयार हो गई। तभी रमाजी उसके कमरे में कुछ पूछने गई। उन्होंने देखा रीता बहुत ही सिंपल साड़ी पहनी है।

 "अरे और कुछ पहन ले बेटा"  

"मैं और कुछ लाई नहीं। यही रखी थी यहां पर, तो यही पहन लिया।" 

"मैं अभी और साड़ी लेकर आती हूं। रमा जी अपनी अलमारी से साड़ी निकालने लगी तभी उनकी नजर सुरभि की खुली अटैची पर पड़ी। जिसमें उनकी पसंद की पिछले साल की दी हुई साड़ी दिख रही थी। उन्होंने वह साड़ी निकाल कर ले जाकर रीता को दे दिया। रीता पहन के तैयार हो गई। पूजा मे जब सुरभि ने अपनी साड़ी भाभी को पहने देखा तो उसको बहुत ही खराब व बुरा लगा। दिनभर सुरभि को यह कचोटता रहा। जब पूजा निपट गई सब लोग चले गए। तब रात में वो अपनी मां से बोली 

"मां आपने ऐसा क्यों किया ? "क्या हुआ बेटा"

 आपने भाभी को मेरी साड़ी क्यों दी। मुझे कितनी पसंद थी मेरी यह साड़ी।"

"अरे बेटा यह तो तुम्हारी पुरानी साड़ी है।

" तो क्या हुआ? अभी तक तो मैंने यहां अपने मायके में नहीं पहनी थी। अब तो सब उसे भाभी की ही समझेंगे।"


 रमाजी समझाते हुए बोली "बेटा रीता अच्छी साड़ी लाना भूल गई थी। वह बहुत ही सिंपल सी साड़ी पहन के तैयार भी हो गई पर मुझे वो साड़ी अच्छी न लगी।"

" पर"

" पर वर कुछ नहीं। वह भी तो तेरी बहन जैसी है। एक दिन पहन ली तो क्या हुआ? मैं तो अपनी ही साड़ी देने वाली थी। पर तेरी अटैची में यह साड़ी पर नजर पड़ी। जो कि मुझे पसंद थी तो मैंने यही दे दिया। और भी सुंदर -सुंदर नई साड़ियां भी तुम्हारे अटैची में, मुझे दिखी। मैंने बिना तुमसे पूछे उसे दे दिया क्योंकि उस समय तुम नहाने गई थी। बेटा तुम नंद भाभी दो ही लोग तो हो। तुम्हारी भी तो कोई बहन नहीं। अब तुम दोनों को एक दूसरे के साथ मिलकर रहना चाहिए। देखो वह भी हम सब का कितना ध्यान रखती है। तू कभी उससे कोई चीज मांगे, तो क्या वह तुम्हें मना कर देगी। तो क्या तुमको भी उसे अपनी चीज़ें नहीं देनी चाहिए।"

" जी मां.... आप सही कह रही है" सुरभि ने कुछ सोचते हुए बोला।

 अब सुरभि को मां की बातें समझ में आ गई थीं। दिनभर की मन की मलिनता अब धुल चुकी थी। सुरभि को अपनी सोच पर पछतावा हुआ। तभी दौड़ती हुई चिया, बुआ- बुआ कहते कमरे में आई और बोली "बुआ मुझे लोरी सुनाके सुलाओ ना। मैं आज आपके पास ही सोऊंगी। सुरभि उसको गोदी में लेकर प्यार करने लगी।


 रीता भी पीछे से साड़ी लेकर आई और सुरभि को साड़ी देते हुए "थैंक्यू दीदी" बोली और कहा "आज आपने यह साड़ी मुझे पहनने को दी। मुझे बहुत ही अच्छी लगा।" सुरभि मां को देख कर मुस्कुरा दी। उसे समझ में आ गया था मां ने यही बोल कर दिया होगा की सुरभि ने तुम्हारे लिए भेजा है।


 रीता चिया से बोली "चलो बेटा ....बुआ जी को सोने दो। आज काम में थक गई होंगी" कहते ही चिया कूद कर रीता कि गोदी में आ गई और रीता, चिया को लेकर चली गई। 



Rate this content
Log in

Similar hindi story from Abstract