Ruchi Singh

Tragedy

4  

Ruchi Singh

Tragedy

गलती सिर्फ मेरी तो नहीं थी!!

गलती सिर्फ मेरी तो नहीं थी!!

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घर के बाहर से आई अपनी मां को परेशान और चिंतित देख अनीता ने अपनी मां से पूछा "मां क्या हुआ" 


राधा जी पास पड़ी चारपाई पर बैठ थोड़ी देर सोची।

 संकोच में धीमी आवाज में शादी के 4 साल बाद मायके आई अपनी बेटी से बोली "अनीता तुम घर से बाहर मत निकला करो। ना ही अपनी बेटी को बाहर जाने दिया करो। लोग देखते हैं तो बातें बनाते हैं। तेरी बेटी पर भी गलत असर पड़ेगा। जब लोग उल्टी-सीधी बातें कहेंगे।"


मां की बात सुनते ही अनीता मुंह बनाकर बोली" पर मां मैं क्या करूं???" 

" क्यो तूने इतनी बड़ी गलती की। अब तो जिंदगी भर यह दाग तेरे दामन में लगा ही रहेगा।" मां ने भी थोड़े ऊंचे स्वर में बोला।


"मां 21वी सदी चल रही है तो भी।"


" हां बेटा औरतों के दामन में लगा लांछन कभी समाज के द्वारा खत्म नहीं किया जा सकता। हर समाज में पुराने लोग अभी भी मौजूद हैं जो इस तरह की मानसिकता रखते हैं। और लड़कियों पर उंगली उठाते हैं ।"मां ने अनीता को समझाते हुए बोला।


"पर मां गलती सिर्फ मेरी तो नहीं थी? गलती भी क्यों हम बालिग थे। यदि हमने अपनी इच्छा से शादी की तो क्या गुनाह किया?"अनीता बोली।


 "बेटी देख... तू भी अब समझदार है। सब कुछ ठीक था पर तुम्हारी शादी करने का तरीका गलत था। तुम भाग गई।"

"मां यह कैसे बोल रही हो।"


" बेटा यह मेरे नहीं यह समाज के शब्द है"अनीता की मां राधा जी ने दुखी होते हुए कहा।


" मां... भागा कुशाग्र भी था मेरे साथ।"

" हां बेटा पर लोग उसको कुछ नहीं कहेंगे। लड़का है ना। हमेशा तेरे को ही बोलेंगे। यह हमारे समाज की एक कड़वी सच्चाई है। जब लड़की भाग जाती है तो कुछ लोग जिंदगी भर यही बात पर घुमा फिरा के ताना मार ही देते हैं। कभी लड़की को ना सही तो उसके बच्चों को।"


" मां मुझे भी अब कुछ- कुछ समझ में आने लगा है मुझसे गलती हो गई। अब मैं क्या कर सकती हूं।"अनीता दुखी होकर चारपाई पर बैठते हुए बोली।


अनीता को दुखी देख कुछ सोचते हुए राधा जी ने अनीता से पूछा "बेटा सच-सच बताना... तू खुश है ना... कुशाग्र के साथ अपनी शादी से।"


" हां मां ठीक ही है... थोड़ी बहुत लड़ाई-झगड़े तो हर पति पत्नी में होते हैं। वैसे ही होते है कभी-कभी।"


" तो ठीक है बेटा। तुमने अपनी पसंद से शादी की है तो तुम्हें अपनी शादी को पूरी तरह निभाने की कोशिश करना होगा।"

"जी मां" अनीता ने लंबी सांस भरते हुए बोला।


"मम्मी... पापा मुझसे कब बातें करेंगे? अब तो मेरी शादी को 4 साल हो गए। और मैं पहली बार घर भी आई हूं अपनी बेटी को लेकर।" अनीता ने दुखी होते हुए बोला।


"बात करेंगे... पर अभी लगता है कुछ वक्त लगेगा। पैसा तो ज्यादा नहीं था हमारे पास। तेरे पापा ने जिंदगी भर इज्जत ही कमाई थी।इज्जत ही सबसे बड़ी थी उनके लिए। तेरे पापा बचपन से तुमको कितना चाहा... विश्वास किया... पर उसके बाद भी तूने आंखों के धूल झोंक इतना बड़ा धोखा दिया। कहते-कहते राधा जी के आंखों के कोर से आंसू उनके गालों पर लुढ़क पड़ा। अनीता भी रोते हुए बोली" मां मुझे माफ कर दो। प्लीज आप ऐसा मत बोलो।"


" बेटी मै तो कुछ नहीं बोलूंगी। पर समाज ना बोले यह कैसे संभव है। जब तू शुरू -शुरू में चली गई थी, तब तो यह समाज हमें इतने ताने मारता था । ऐसा लगता था कि जहां से हम गुजरते हैं लोग हमारे बारे में बातें कर रहे हैं। कैसे अपमान का घूंट पीकर एक-एक दिन करके हमने अपने समय काटा है।"

 राधा जी रोए जा रही थी और अपने अंतर्मन के अंदर छिपे दर्द का व्याख्यान अपनी बेटी के आगे आज पहली बार खुले मन से कर रही थी। 

"मां माफ कर दो मुझे.. सॉरी मां गलती हो गई। इससे ज्यादा मैं कुछ नहीं कह सकती।" कहकर अनीता अपनी मां की आंखों के आंसू पूछने लगी।


 तभी घंटी बजी ।बगल वाली आंटी जी आ गई अनीता से मिलने। "कैसी है अनीता। "

"मैं ठीक हूं आंटी।" अनीता उठकर जाने लगी।

 "बैठ ना... मैं तो तेरे से ही मिलने आई हूं।" अनीता बैठ गई।

" और सब ठीक है तुम्हारे ससुराल में।"

" हां आंटी जी।"

 थोड़ी देर में बातों ही बातों में आंटी जी ने अनीता से बोला "तुमने अच्छा काम किया... एक लड़का पसंद कर लिया। देख हमारी बेटी तो अभी तक पड़ी हुई है। हमें समझ नहीं आ रहा... कैसे उसकी शादी करें? और कहां ?? तू तो बढ़िया है बिना दहेज के भागकर अपने ससुराल चली गई।" आंटी जी ने ताना मारते हुए बोला।


अनीता ने बात घुमाते हुए बोला "हां... ससुराल में सब बहुत अच्छे हैं मेरा बहुत ध्यान रखते हैं।"


आंटी ने वही बात को फिर बोला "अनीता तुम भाग गई, पर अपने बाप का सर शर्म से झुका कर चली गई ।पूरी बिरादरी में, पूरे मोहल्ले में, पहली लड़की तुम रही ....जिसने ऐसा काम किया।चल कोई बात नहीं।"आंटी जी ने मुंह बनाते हुए बोला।


" बेटा मोहिनी को कुछ खिला दे।सो के उठ गई है वह।" बात को काटते हुए राधा जी ने बोला।


 अनीता कमरे में जाकर अपनी बच्ची मोहनी में बिजी हो गई।पर उसकी आंखों में आंसू और दिल में बेचैनी थी। क्या उमर थी .. दिल के क्या जज्बात थे। जिस पर वो कंट्रोल नहीं कर पाई ।और बिना शादी के घर के चारदीवारी के बाहर बिना बताए कदम रख दिया। जिंदगी की इतनी बड़ी गलती कर दी लेकिन अब तो सिर्फ पछतावा था और कुछ भी नहीं। जिंदगी की गाड़ी आगे बढ़ रही थी खुशी -खुशी। पर पीछे मुड़कर देखने पर एक अतीत का काला साया था। जिससे खुद को हमेशा बचाना था उसको।


  





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