आत्मसंतुष्टि!!
आत्मसंतुष्टि!!
पैरालाइसिस के चलते अस्पताल में भर्ती मां को देख बेचैन करण बहुत ही दुखी था। उनको पैरालाइसिस अटैक पड़ा था। आधे शरीर ने काम करना बंद कर दिया था। डॉक्टर ने बताया छुट्टी के बाद इनको अकेले मत छोड़िएगा। इनको किसी ना किसी की जरूरत रहेगी। मां की ऐसी हालत देख अपनी पत्नी सुरभि को करण जॉब न करने को कहता है। सुरभि ने अभी 2 महीने पहले ही जॉब करना शुरू किया था।
सुरभि चिंता करते हुए कहती है, "हम अपने साथ ही मां को रख लेंगे। और किसी मेड को लगाकर उनकी सेवा करा देंगे। करण मुझे बहुत मुश्किल से एमबीए करने के बाद जॉब मिली है। शादी के बाद मैंने इतनी पढ़ाई की और अब मैंने जॉब शुरू की। तुम मुझे जॉब छोड़ने को मत कहो।"कहते कहते सुरभि की आंखें नम हो गई।
"पर ऐसा कैसे हो सकता है। जब तक कोई घर वाले नहीं हो, तो मां-बाप की सेवा कैसे हो सकती है? पिताजी भी तो कितने बीमार रहते हैं। और नौकरों के सहारे यह तो मुमकिन ही नहीं। मां की ऐसी हालत हो गई है इसलिए हमारी जिम्मेदारी बनती है। अब हमें ही इनको देखना है। और अभी छोटे भाई मानव की शादी को भी एक दो साल है। इसलिए और सारी जिम्मेदारी हमारी ही बनती है", कहते कहते करण की आंखों में आंसू आ गये।
करण की बात सुन सुरभि ने अपने को संभालते हुए करण के कंधे पर हाथ रखते हुए मन मार के बोली "तुम दुखी मत हो। कल ही मैं अपना रिजाइन लेटर दे दूंगी।" सुरभि के आंखों में आंसू थे। हालात से समझौता कर आज दिल पर पत्थर रख वह अपने कैरियर की आहुति दे रही थी। सोची कुछ दिनों में मां की हालत संभल जाएगी। तो मैं फिर से अपनी जॉब स्टार्ट करने की कोशिश करूंगी।
सुरभि अपने सास-ससुर की दिनभर सेवा में लगी रहती। उनके कामों में व्यस्त रहती। अब सासू मां धीमे- धीमे काफी बेहतर हो गई थी। शरीर काम करने लगा था। कुछ दिनों बाद सुरभि ने बेटे को जन्म दिया। धीरे-धीरे सुरभि बहुत व्यस्त होती गई। इन सब की सेवा व काम-धाम में सुरभि का समय कहां चला जाता था । पता ही नहीं चलता।
कुछ सालों के अंतराल पर करन के प्रमोशन पर प्रमोशन होते गये। सुरभि बहुत खुश तो होती पर मन में सोचती कि काश... मैं भी यदि अभी जॉब कर रही होती। तो कोई अच्छे पद पर कार्यरत रहती। पर यह ज़िम्मेदारियां.... सोच कर मन मसोस के रह जाती।
अब सासू मां गायत्री जी, सुरभि की सेवा से और समय के साथ दवाइयों से बिल्कुल ठीक हो गई थी।
दूसरी तरफ मानव ने भी अपनी पसंद की लड़की से शादी कर ली.... और रिया को घर ले आया । मेरठ में ही पूरा परिवार साथ रहने लगा था। मानव और रिया सुबह-सुबह ऑफिस चले जाते हैं रात में ही घर आते।
सुरभि की सासू मां गायत्री जी शादी के बाद सुरभि को बोलती कि मानव के साथ-साथ अब तुम रिया के लिए भी नाश्ता बना देना। उसका लंच पैक कर देना। गायत्री जी इन बातों को सुन कभी- कभी सुरभि का अंतर्मन मसोसता था। पर कुछ बोलती ना थी। चुपचाप सब काम कर देती थी।
कभी-कभी गायत्री जी सुरभि से सीधे ढंग से बात भी नहीं करें। कभी-कभी छोटी-छोटी बातों पर उसको उल्टा सीधा सुनाएं। सुरभि को यह एहसास होने लगा था कि गायत्री जी रिया को ज्यादा चाहती है।
कुछ महीनों बाद रिया की ऑफिस में कामों की तारीफ करते सासु मां सुरभि को कुछ ना कुछ सुना दे।
गायत
्री जी अक्सर ही सुरभि को कुछ ना कुछ सुनाने लगी। एक दिन सासु मां की बातों पर सुरभि को बहुत गुस्सा आया। आज उसने आव देखा न ताव इतने दिन की भड़ास निकाल दी।
उसने जोर-जोर से गुस्से में बोला "काश मैंने अपनी जिम्मेदारियों से मुंह मोड़ लिया होता। तो आज मैं ना जाने किस पद पर होती। मुझे भी शायद करण के बराबर ही सैलरी मिल रही होती। मै भी शायद आज सम्मान के साथ जीती। मुझे भी घर में रिया की तरह इज्जत और प्यार मिलता। घर की और बड़ों की जिम्मेदारी अपने ऊपर होने पर मैंने अपना कैरियर तो बर्बाद कर दिया। अगर मैं अपनी जिम्मेदारियों से मुंह मोड़ लेती तो आज मैं एक सफल वर्किंग वूमेन तो कहलाती।" सुरभि रोते हुए बोली।
उसकी जोर-जोर से आवाज सुन धीरे-धीरे घर के सब लोग इकट्ठे हो गए।
उसने फिर हिचकी ले, रोते हुए बोलना जारी रखा।
"किसी का किया धरा तो कुछ ही दिनों में लोग भूल जाते हैं। पर अपनी पहचान से शायद आज मुझे आत्मसंतुष्टि मिलती। वह शायद मेरे लिए व समाज के लिये तो सही रहता। मैं करण की बातों में ना आती। मैं जिम्मेदारियों से मुंह मोड़ लेती तो मैं भी एक सफल इंसान होती।"
सुरभि की बातें सुनकर गायत्री जी को वो पुराने दिन याद आ गये। आंखों में आंसू के साथ वह बोलने लगीं "माफ कर दे बेटी। यदि मैंने तुझे कुछ भला बुरा कहा। मुझे माफ कर दे।" कहते हुए उसको चुप कराने लगी।
मन में गुबार भरी सुरभि आज ना जाने क्यों चुप होना ही नहीं चाह रही थी। उसने फिर बोला "अपने बच्चे के लिए और सासू मां आपके लिए नौकरानी रख देती। किसी भी तरह काम कराती। तो आज घर के बड़े जो इतने आराम तलब हो गए मेरी वजह से। वह वैसे भी ना होते। अपनी जिम्मेदारियां समझते और मैं भी आजादी से अपनी जिंदगी जीती। शायद मैंने गलत किया। काम तो सब हो जाते हैं। समय निकल गया तो आप अपने मुकाम को जिसे छूने की चाहत हो। वह नहीं पूरी कर पाते। शायद गलती मेरी ही थी। जो मैंने अपनी जिम्मेदारियां ईमानदारी से निभाई। "कहके सुरभि पुनः रोने लगी।
तभी पास खड़ी रिया धीरे से बोली "दीदी मेरे ऑफिस में वैकेंसी निकली है। मैं आपके लिए बात कर लेती हूं। आप भी मेरे साथ....।"
आंखों में आंसू लिए करण भी बोला "मैं कल ही तुम्हारे लिए अपने ऑफिस में बात करता हूं। हम दोनों साथ चलेंगे। मुझे नहीं पता था कि तुम अंदर ही अंदर इतना दुखी हो। मुझे माफ कर दो सुरभि।"
सब की बाते सुन गायत्री जी बोली कि बहू अब घर की जिम्मेदारी मेरी है। मैं देख लूंगी। तू भी अपने मन से जिंदगी जी। यह मैं चाहती हूं। तूने मेरे लिए बहुत किया। अब मैं चाहती हूं। तू अपने लिए कुछ कर।"कह सुरभि को गले से लगा लिया।
बातें सुनकर सहसा ही सुरभि के चेहरे पर एक मीठी सी मुस्कान आई। उसे लगा उसने कहकर अपना जी तो हल्का कर लिया। पर सब उसके दर्द को समझ रहे हैं। अब वह भी अपनी जिंदगी की नई शुरुआत करेगी।
उसने बोला "नहीं मम्मी जी मैं सुबह उठकर काम करके तब ऑफिस जाया करूंगी।"
तभी रिया बोली "नहीं दीदी हम दोनों मिलकर काम कर लिया करेंगे और तब ऑफिस जाएंगे।" रिया की समझदारी भरी बातें सुनकर सब हंस दिए।
उनके परिवार में आई कड़वाहट सासू मां, करण और रिया के सहयोग से मिनटों में ही खत्म हो गई।