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Ruchi Singh

Inspirational

4.6  

Ruchi Singh

Inspirational

मेरी बहू तो जॉब करती है

मेरी बहू तो जॉब करती है

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"कहां जा रही है बहू?"

"मम्मी जी मैं आ कर बताती हूं"

"अरे बता कर तो जा"

 रमा दौड़ती- भागती अपना बैग उठाया और जल्दी से गाड़ी निकालती है।

" अरे इतने दिनों बाद गाड़ी से ?"

" बस मैं आती हूं" कहकर रमा बिना बताए घर से चली जाती है ।


रमा के घर में रमा उसके सास, ससुर और पति अमित रहते हैं जो अक्सर ही अपने काम से घर के बाहर रहते हैं। रामा की एक ही नंद है जो की बड़ी है और उसकी शादी हो चुकी है।रमा की शादी को 2 साल हो गए हैं। रमा अपने परिवार के साथ बहुत खुश है। उसके सास -ससुर अधिक उम्र के हैं ससुर राकेश जी रिटायर्ड और स्वस्थ हैं पर सासू मां सुधा जी को दिल की बीमारी है।


 4 घंटे बाद रमा घर लौटी। उसके ससुर उसके साथ थे जो की बुरी तरह से घायल थे। माथे पर पट्टी बंधी हुई थी हाथ में फ्रैक्चर हो गया था। सुधा जी अपने पति की ऐसी हालत देखकर बिल्कुल घबरा गई।

"अरे आपको यह सब क्या हुआ? कैसे हुआ? कब हुआ? बदहवास वह एक के बाद एक प्रश्न करती जा रही थी। "

"अरे मम्मी जी अब सब ठीक है। आप घबराइए नहीं। आप बैठ जाइए.. सब बढ़िया है।" रमा ने उन को समझाते हुए बोला।

 राकेश जी भी बोले "मैं बिल्कुल ठीक हूं बस यह हेयरलाइन फ्रैक्चर है जो कि जल्दी ही ठीक हो जाएगा। सिर पर थोड़ी गहरी चोट है कुछ टांके आए हैं जो कुछ दिनों में कट जाएंगे।"राकेश जी ने सुधा जी को बोला।


 सुधा जी घबराहट के मारे रोने लगी। फिर बोली "अरे पर यह सब कैसे हो गया। मुझे तो किसी ने कुछ बताया ही नहीं।"

 रमा जल्दी से पानी लेकर आई और वह अपने सास-ससुर को पानी देते हो बोली इसीलिए मम्मी जी मैं आपको कुछ भी नहीं बता कर गई दी थी क्योंकि आप घबरा जाती।


फिर रमा ने बताया "मुझे एक अनजान व्यक्ति का फोन आया ...जो कि पापा जी के मोबाइल से कर रहा था और कह रहा था कि सड़क पर इनका एक्सीडेंट हो गया है। उन्होंने यह नंबर दिया है आपसे बात करने को। तो मैं आपको फोन कर रहा हूं। मम्मी जी इसीलिए बिना बताए आपको मैं चली गई। यदि मैं आपको बताती तो आप घबराती रहती। घबरा तो मैं भी गई थी लेकिन मुझे तो हिम्मत दिखानी थी ना। वैसे भी अमित शहर में नहीं है।" सुधा अपनी प्यारी बहू रमा की बातें सुन बहुत ही गर्व महसूस कर रही थी‌।


 उन्होंने कुछ सोचते हुए लंबी सांस भरते हुए कहा "अच्छा है तूने साल भर पहले ड्राइविंग सीख ली थी। देख काम आ ही गई।"

 "हां मम्मी जी कुछ दिनों से मुझे गाड़ी चलाने से मुझे कॉन्फिडेंस भी आ गया था। और पापा जी का एक्सीडेंट वीरान जगह हुआ था। वहां पर आने-जाने के ज्यादा साधन नहीं दिख रहे थे। और हां अपनी गाड़ी से मैं सही समय पर पहुंच गई। 

>डॉक्टर ने बोला "आप इनको और थोड़ा देर मे लाती तो काफी बिल्डिंग हो जाती। फिर इनको कोमा में जाने का डर था। सर पर गहरा घाव है पर चिंता की कोई भी बात नहीं है। डॉक्टर ने सिटी स्कैन करके बता दिया है सब सही है।"रमा ने हंस के समझाते हुए अपनी सासु मां को बताया।


 सुधा जी भी रमा को देखकर खुशी से मुस्कुराने लगी। आज उनकी बहू ने इतनी समझदारी से एक बेटे जैसा काम किया।राकेश जी को देखने दो दिन बाद पड़ोस के वर्मा जी आए। उनकी बहू बैंक में जॉब करती थी। उनको अपनी बहू के इस बात पर बड़ा गर्व था कि मेरे बेटा बहू दोनों ही कमाते हैं। और वह बातों -बातों में अपनी बहू की कमाने की तारीफ करते ही रहते। और कहीं ना कहीं रामा को नीचा दिखाने की कोशिश करते थे।अमित की बिल्कुल भी इच्छा नहीं थी कि रमा नौकरी करें। पढ़ी-लिखी तो थी वह। पर अमित कहता था तुम घर में ही रहो। नौकरी करने के लिए मैं काफी हूं। तुम मेरे मां-बाप और अपना ध्यान रखो। खुश रहो और जिंदगी का मजा लो। मेरे लिए यही काफी है।रमा को भी नौकरी करने की कोई खास इच्छा नहीं थी। उसे अपनी सीधी- सरल जिंदगी पसंद थी इसलिए उसने भी नौकरी करने की कोई भी जिद नहीं की। वह अपने सास-ससुर के साथ मजे से घर में आराम से रहती थी। 


उस दिन भी वर्मा जी अपनी बहू की तारीफ कर रहे थे। उनकी बातों से अब रमा थोड़ी हर्ट होती थी। यह बात सुधा जी को भी महसूस होने लगी थी। इसलिए सुधा जी बातों ही बातों में उस दिन वर्मा जी को बोली कि "मेरी बहू नौकरी नहीं करती है तो क्या हुआ? वैसे तो बहुत ही सुशील, संस्कारी तथा होशियार है। समय के साथ सही निर्णय लेकर हम लोगों का पूरा ध्यान रखती है। आज राकेश जी हम लोग के सामने हैं तो सिर्फ रमा की वजह से है। डॉक्टर ने बताया कि यदि थोड़ी और देर हो जाती तो राकेश जी का बचना मुश्किल था वह कोमा में भी जा सकते थे। और रमा नौकरी नहीं करती। उसमें उसकी और अमित दोनों की इच्छा है। जरूरी नहीं है कि घर में सभी लोग नौकरी करें। राजेश जी कि इतनी अच्छी पेंशन आती है। साथ ही मेरा बेटा भी इतना अच्छी नौकरी में है। गांव में हमारी इतनी प्रॉपर्टी भी है तो हमें नहीं लगता कि रमा को नौकरी करना जरूरी है।" आज सुधा जी की बात सुनकर वर्मा जी अपना सा मुंह लेकर रह गए।


 सबके सामने सुधा जी के मुंह से अपनी बड़ाई सुन रमा अंदर ही अंदर बहुत ही खुश और गौरवान्वित महसूस कर रही थी। उसे लगा जब मेरे परिवार वाले मुझसे खुश है तो मुझे और कुछ नहीं चाहिए।


दोस्तों! आज समाज का प्रचलन हो गया है कि जो लोग नौकरी करते हैं लोग उसको ऊंचा दर्जा देते हैं। पर ये मन की इच्छा और पति- पत्नी का मिलकर लिया गया फैसला होता है। यदि किसी महिला की इच्छा नहीं है तो नौकरी करना जरूरी भी नही।


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