Ruchi Singh

Abstract Inspirational

4.0  

Ruchi Singh

Abstract Inspirational

बहू जॉब वाली!!

बहू जॉब वाली!!

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नीता और मानव एक ही ऑफिस में काम करते थे। ऑफिस में दोनों की आंखें चार हुईं, दोस्ती हुई और कब दोस्ती प्यार में बदल गई पता ही नहीं चला। दोनों एक दूसरे का हमसफर बनने का वादा कर चुके थे। घरवालों की रजामंदी से दोनों की बहुत ही धूमधाम से शादी हुई। और नीता अपनी आंखों में शादी के बाद के हसीन सपने संजोए मानव के घर खुशी-खुशी आ गई।

मानव एक निम्न मध्यमवर्गीय परिवार का लड़का था। मानव के घर में उसके माता-पिता और एक बड़ी बहन कनक थी। जो थोड़ी मुंहफट थी और जिसकी शादी हो चुकी थी।

मानव को उसके मां बाप ने पढ़ा लिखा कर इस काबिल बनाया कि वह आज इतने अच्छे पद पर था। पर मानव की मां की सोच बहुत ही संकीर्ण थी। साथ ही वो गुस्से वाली भी थी।

दूसरी तरफ नीता खुले विचारों की लड़की थी। मानव के परिवार वालों के साथ पूरा एडजस्ट करने की कोशिश करती थी। मानव की मां का पूरा ध्यान रखती थी। शादी होकर आई नीता मानव के परिवार के रीति-रिवाजों और इच्छा के अनुसार रहना शुरू कर किया।

मानव की मां चाहती थी कि वह साड़ी पहने... सिर पर पल्ला रखे और एक भारतीय नारी की तरह वह अच्छे से रहे। ऑफिस जाते समय सूट पहन सकती है। उनके घर परिवार वाले सब आस पड़ोस में ही रहते थे। तो उनकी बहू को देखकर किसी बात पर छींटाकशी ना करें। परिवार में नीता के खिलाफ कुछ बातें ना हो.... इसीलिए वह चाहती थी कि वो हमेशा सादगी से रहे। पूरे परिवार में पहली बड़ी बहू बन के आई थी नीता।

शादी के कुछ महीने बाद नीता, 1 दिन ऑफिस मायके से लाई हुई जींस-टीशर्ट में जाने को तैयार हुई। सासू मां ने देखते ही उसको भला बुरा कहना शुरू कर दिया। उन्होंने बोला कि लोग देखेंगे तो क्या करेंगे? तुम इस घर की बहू है... बहू की तरह रहो। साड़ी पहनो, सूट पहनो... उसमें मनाही नहीं है, पर जींस यह कोई अच्छा लगता है लड़कों की तरह तैयार होकर ऑफिस जाओगी। एक ही स्वर में क्रोध में सासू मां ने इतना सुना दिया।


नीता को बहुत ही बुरा लगा। उसने हिम्मत करके बोला "पर मां आज कल तो सभी पहनते हैं।"

" पहनते होंगे ...पर हमारे घर की बहूएं नहीं पहनती।" "कहकर नीता की सास ने बात काट दी।

नीता दुखी मन से वापस कपड़े बदल, सूट पहन के ऑफिस गई।

नीता अपने ऑफिस में अच्छी पोस्ट पर थी। वहां पर विदेश के लोग भी आते थे और अधिकतर लोग वेस्टर्न ड्रेसेस ही पहनते थे। इसलिए नीता को भी यही इच्छा होती थी कि वह भी वेस्टर्न पहने।

मानव के घर में उसे कोई भी तकलीफ नहीं थी , पर कपड़ों के लिए पाबंदी के कारण उसे थोड़ी दिक्कत महसूस होने लगी थी।

मानव भी कुछ नहीं कहता अपनी मां को। नीता को लगता है कि वेस्टर्न कपड़े पहनने में सुविधाजनक भी है और जल्दी से मैं ऑफिस के लिए तैयार भी हो जाती हूं। तो कभी-कभी वेस्टर्न भी पहन लिया करू।

पर सासू मां की इच्छा के आगे उसे झुकना ही पड़ा। मनमार वह सूट पहनकर ही ऑफिस जाया करती।

नीता की शादी के कई महीनों बाद नीता की नंद कनक अपने मायके कुछ दिन के लिए रहने आई । वह अपने मायके पहली बार जींस टॉप पहन की ही आई थी। सासु मां अपनी बेटी को देख बहुत ही खुश होकर बोली "कनक तेरे तो दो इतने बड़े-बड़े बच्चे हो गए। फिर भी तुम बिल्कुल लड़की जैसी ही लग रही है। बहुत ही फिट.... मेंटेन.....। कोई कहीं नहीं सकता कि इतने बड़े बच्चों की मां हो तुम। बहुत ही अच्छा लग रहा है तेरे ऊपर ...बेटा यह ड्रेस। सासु मां ने खुशी-खुशी कहा।

नीता भी खड़े हो सासु मां की बातें सुन रही थी, और उसे बुरा लग ही रहा था पर उसने कुछ कहा नहीं।

दो-तीन दिन ऑफिस जाते समय रोज सूट पहन कर जाते देख कनक ने नीता से पूछा "भाभी आप जींस टॉप क्यों नहीं पहनती हो? ऑफिस में कितना आराम रहता है उससे।

" हां दीदी पर"

" पर क्या ....भाभी वही पहना करो। अब जाकर मैंने पहनना शुरू किया देखा बहुत ही आराम मिलता है। देखो मैं आपके लिए लाई भी हूं।" कनक ने नीता को समान पकड़ाते हुए मुस्कुरा कर कहा।


"पर दीदी.... मम्मी जी तो मना करती हैं"

तभी कनक ने मम्मी से पूछा "क्यों मम्मी आप भाभी को क्यों मना करती हो? जब मैं पहनी थी... आपको अच्छा लग रहा है तो भाभी के पहनने में क्या बुराई है?"

" पर बेटा ....बहू पहनेगी तो परिवार के लोग क्या कहेंगे ? हमारे घर की बहू कहां पहनती हैं जींस टॉप।" सासू मां ने चिंता करते हुए कहा।

" मम्मी परिवार की पहली बहू जॉब वाली आई है। अब जमाना बदल गया है। जब सूट, साड़ी कपड़े हैं तो जींस टॉप भी कपड़े हैं। इसमें हम लोगों को आराम भी मिलता है और सुविधा भी लगती है। मैं तो अपने ससुराल में यह पहनने लगी हूं और मुझे अब बहुत आराम लगता है। मेरी सासू मां कुछ भी नहीं कहती। आप भी भाभी को पहनने दो। अब यह आपकी बहू नहीं बेटी ही है। लोगों का क्या... लोग कुछ दिन बातें करेंगे और फिर चुप हो जाएंगे। भाभी को जिसमे सुविधा हो, आप उन्हें वह करने दो। दिल की साफ कनक एक बार में सब बात कह डाली।"


मां ने कनक की बातें सुन दबे मन से कनक की बातों में हामी भरी। उन्होंने कहा "ठीक है जैसा तुम दोनों चाहो।"

"लो भाभी आप कल यही ड्रेस पहन के ऑफिस जाना" कह कनक अपनी लाई हुई ड्रेस नीता को पकड़ा दी। अगले दिन नीता कनक का दिया गिफ्ट पहन के ऑफिस जाने को तैयार हुई।

सासु मां ने भी देखा और कहा "रात भर मैंने बहुत सोचा तब मुझे लगा.... शायद तुम दोनों सही कहती हो। समय के साथ यह आज की जरूरत है। कपड़े चाहे कोई भी हो ....सभी अच्छे होते हैं। जिसमे सुविधा लगे... वही पहनना चाहिए। बहुत ओपन ना हो। शरीर को ढकने वाले कपड़े वही अच्छे होते हैं।" सासु मां ने कुछ समझते व कुछ समझाते हुए कहा। इतनी पुरानी मानसिकता को बदलने में कुछ तो टाइम लगता हैं।

"अरे वाह मम्मी आप तो बड़ी समझदार हो गई। "कनक ने मजाक में चुटकी लेते हुए कहा।

" हां... कनक कल रात भर बैठकर मैंने तुम दोनों की बातों पर विचार किया। मुझे लगा मुझे भी अब समय के साथ बदलना चाहिए। अब तुम ही तो मेरी अपनी हो। तुम्हारी इच्छाओं को पूरा करना मेरा कर्तव्य है।" कह के नीता और कनक को सासू मां ने अपने गले से लगा लिया। गले से लगते ही नीता ने बोला "थैंक यू मम्मी जी.... थैंक्यू कनक दीदी।"


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