आंखों में आंसू
आंखों में आंसू
"मम्मी मैं नहीं नहाऊंगी.... आज बहुत ठंड है। और धूप भी नहीं निकली है। कितनी ठंड पड़ रही है।" 10 साल की पीहू गुस्से में बोल रही थी।
मम्मी समझाते हुए बोली "नहीं बेटा आज नहाना जरूरी है। आज तो मकर संक्रांति है। इस दिन तो बहुत बड़ा नहान होता है। सब लोग इस दिन नहाते हैं।
इलाहाबाद में संगम में लोक सुबह से ही डुबकियां लगाने लगते हैं। सूर्य देवता को अर्क दिया जाता है। आज पूरे भारत में अलग-अलग भागों में अलग-अलग नाम से कोई ना कोई त्यौहार जैसे पोंगाल, बिहू, मकर संक्रांति, खिचड़ी आदि मनाया जाता है। 14 जनवरी को मकर संक्रांति हिंदुओं के एक पर्व के रूप में मनाया जाता है। और तुम्हें ठंड लग रही है। देखो भैया नहा के छत पर पतंग उड़ाने चला गया। अब तुम भी नहा के रानी बिटिया बन जाओ। बेटा चाहे तुम कल ना नहाना... पर आज तो नहा लो। जिद मत करो।"
" ठीक है मां... आप कह रही है तो मैं जल्दी से नहा कर आती हूं ।"
पीहू ऐसा कह नहाने चली गई। नहाने के बाद आई उसने देखा मम्मी काले रंग की दाल और चावल की खिचड़ी बना रही है।
"मम्मी आज खाने में खिचड़ी?"
सीमा मुस्कुराई और बोली "हां बेटा आज के दिन खिचड़ी जरूर खाई जाती है। और देख तू नहा के कितनी रानी बिटिया हो गई।"
कमरे में ढेर सारा सामान देख पीहू ने पूछा "मम्मा इतना सामान क्यों? कोई आने वाला है क्या?"
कुछ दान भी करना था इसलिए सीमा बहुत ढेर सारा सामान लेकर आई थी। कुछ खाने पीने का और साथ में कुछ कंबल भी। और उसमें खाने पीने का सामान गजक, मूंगफली, तेल गुड़ फल लेकर आई थी।
सीमा ने बोला "बेटा गरीबों को दान बहुत अच्छा माना जाता ह
ै" खाने पीने का सामान सीमा जाकर मंदिर में बांट आई।
रात में खाना खाने के बाद सीमा अपने पति आलोक के साथ गाड़ी में बैठ कर अपने लाए हुए कंबलों को लेकर सड़क पर निकल गई। बेटा आरब ने पूछा" मम्मा हम लोग इतनी रात में कहां जा रहे हैं?"
" बेटा इसी समय सही जरूरतमंद लोग मिलेंगे। रात के 10:00 बज रहे थे और सीमा और अनिल फुटपाथ पर गरीब लोगों को ढूंढ रही थे कि कौन कहीं ठंड में ठिठुर रहा है तो हम उन्हें कंबल दे दे।
इस बार सीमा ने सोच रखा था कि मैं ऐसे लोगों को ढूंढ के बाटूंगी जिनके पास कपड़े कम हो। जगह-जगह लोग सो रहे थे कोई आग सेक रहा था। उनको किसी विकलांग, किसी जरूरतमंद को कंबल दिए।
उसके पास तीन कंबल बचे थे। वह एक जगह रुके। वहां पर पतले से कंबल में लगा कोई दो लोग सो रहे हैं। कंबल में जो लोग सो रहे थे वह रिक्शेवाले थे। सीमा के पति अनिल ने जाकर उनको उठाया और बोला "कंबल ले लीजिए?"
सीमा देखकर आश्चर्यचकित रह गई कंबल के अंदर से 3 लोग निकले। पतले कंबल में 3 लोग अपने ठंड मिटाने की कोशिश कर रहे थे। सीमा ने उनको अपने तीनों कंबल दिए। उन लोगों ने बहुत ही मन से आशीर्वाद दिया। पीहू और आरव को भी आशीर्वाद दिया।
बोला कि आपके बच्चे बहुत खुश रहे। वह रिक्शेवाले वाकई गरीब थे। उनके पास घर भी नहीं था साथ में कंबल भी।
यह सब देख सीमा की आंखों में आंसू आ गए। उसने सोचा मैं हर साल ऐसे ही अपने दान का सामान फुटपाथ पर लोगों को ढूंढ -ढूंढ के ही बांटेंगी । साथ ही भगवान का बहुत-बहुत शुक्रिया अदा किया कि भगवान ने उनको इतना संबल बनाया है कि वह कुछ लोगों को कुछ दे सके। उनकी सहायता कर सके।